रंजन कुमार सिंह
चीते और तेंदुए में बुनियादी फ़र्क़ है। तेंदुए के शरीर पर पीला और काला मिश्रित गुलाब के आकार की सजावट वाली Rosette डिज़ाइन दिखते हैं। इसके उलट चीते के कोट पर केवल काले धब्बे होते हैं। चीते की पूँछ लगभग सीधी होती है, तेंदुए की मुड़ी होती है। इस पूँछ की वजह से चीता 120 किलोमीटर की रफ़्तार तक दौड़ सकता है। चीते के चेहरे के दोनों तरफ़ लकीर होती है, तेंदुए में नहीं होती।
भारत में चीते विलुप्त हैं, तेंदुए अच्छी संख्या में हैं। 2021 में भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा हुई गणना के अनुसार, ‘भारत में गुलदार या तेंदुओं की संख्या 12,852 तक पहुंच गई है। 2014 में हुई गणना में 7,910 तेंदुए थे। पांच साल की अवधि में तेंदुओं की संख्या में 60 प्रतिशत वृद्धि हुई है। गणना के अनुसार मध्य प्रदेश में 3,421 तेंदुए, कर्नाटक में 1,783 तेंदुए और महाराष्ट्र में 1,690 तेंदुए, दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा पाए गए हैं।’
तेंदुए की संख्या को लेकर तथ्यान्तरण हिमालय वाले इलाक़े में है। उत्तराखंड में ही मात्र 893 बताए गए हैं, जबकि राज्य सरकार के वन विभाग के रिकार्ड में यह संख्या 2008 तक 2335 थी। उत्तराखंड के वन एवं पर्यावरण मंत्री के कार्यालय के अनुसार, ‘राज्य में तेंदुए की संख्या लगभग चार हजार पार कर चुकी है, जिनमें से 75 को मानवभक्षी घोषित किया जा चुका है। आज़ादी से पहले देश में चीतों की संख्या एक हज़ार बताई गयी थी, चीते धीरे-धीरे विलुप्त हो गए। 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया।
पूरी दुनिया में जो 7100 चीते बच गए हैं, उनमें अधिकतर उत्तरी अफ्रीका और ईरान में हैं। 1970 के दशक में ईरान के शाह ने कहा था कि हम भारत को चीते देने के लिए तैयार हैं। लेकिन बदले में आपसे हमें शेर (Lion) चाहिए। सरकार ने इसे होल्ड पर रखा और दूसरे विकल्प की तलाश शुरू हुई। इस देश की नौकरशाही का हाल देखिये, नामीबिया से चीते लाये जायेंगे, इसे तय करने में 50 साल लगे। ये चीते भारतीय वातावरण में रम जायेंगे, और मध्यप्रदेश का कूनो नेशनल पार्क इसलिए, क्योंकि वहां खाने-पीने की कमी नहीं है। मानव आबादी भी पार्क की परिधि से बाहर है।