राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर रखा जाता है। इस दिन महिलाएं संतान की दीर्घायु के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। साथ ही बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए महिलाएं द्वारा अहोई माता का पूजन किया जाता है, जिसके प्रभाव से संतान सुख और उसके उज्ज्वल भविष्य का आशीर्वाद मिलता है। इसके अलावा व्रत में तारों का विशेष महत्व है। मान्यता है कि जब आसमान में तारे दिखाई देने लगते हैं, तब उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। फिर महिलाएं अपने व्रत का पारण करती हैं। ऐसा करने पर अहोई माता प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
अहोई अष्टमी तिथि
पंचांग के मुताबिक अहोई अष्टमी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ रही है। इस बार यह तिथि 13 अक्तूबर 2025 को देर रात्रि 12:24 मिनट से प्रारंभ होगी। इसका समापन 14 अक्तूबर 2025 को सुबह 11:09 मिनट पर है। ऐसे में अहोई अष्टमी का व्रत 13 अक्तूबर को रखा जाएगा।
ये भी पढ़े
पूजा शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी के दिन पूजा का शुभ समय शाम 5:53 मिनट से प्रारंभ होगा और शाम 7 बजकर 8 मिनट तक बना रहेगा।
अहोई अष्टमी पर तारों को अर्घ्य देने का समय शाम 6 बजकर 17 मिनट तक है।
पूजा विधि
अहोई के दिन सुबह ही स्नान कर लें और माताएं कोरे वस्त्रों को धारण करें।
इसके बाद घर में गंगाजल का छिड़काव करें और दीवार पर कुमकुम से अहोई माता की तस्वीर बना लें।
फिर आप अहोई माता के समक्ष दीपक जलाकर थाली में कुछ फूल, फल और मिठाई रख लें।
इस दौरान आप दान की चीजें और पूजन की सामग्री को भी रख लें।
अब माता के सामने घी का दीपक जलाएं और बच्चों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करें।
इसके बाद शाम को तारे निकलने के बाद उन्हें अर्घ्य दें।
फिर घर में बने पकवानों का भोग माता को अर्पित करें।
अंत में बड़ो का आशीर्वाद लेकर व्रत का पारण करें।
अहोई अष्टमी व्रत का क्या महत्व है?
अहोई अष्टमी का व्रत मातृत्व प्रेम और संतान की मंगल कामना का प्रतीक है। अहोई अष्टमी के दिन माताएं अपनी संतान की सुख-समृद्धि, अच्छी सेहत, उज्ज्वल भविष्य और लंबी उम्र के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत में जल तक ग्रहण नहीं किया जाता है, जिससे इसकी तपस्या और भी विशेष मानी जाती है।
ये भी पढ़े
अहोई अष्टमी का व्रत कैसे तोड़ा जाता है?
अहोई अष्टमी व्रत का पारण तारोदय होने पर तारों का दर्शन करके होता है। संध्या काल में व्रती माताएं अहोई अष्टमी माता की पूजा कर तारों का दर्शन करके उन्हें जल का अर्घ्य देती हैं, तभी व्रत का महत्व पूरा माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अहोई अष्टमी व्रत पारण में तारों को करवे से अर्घ्य दिया जाता है।
