मुर्मु ने टंकारा में ज्ञान ज्योति तीर्थ का किया शिलान्यास

मोरबी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सोमवार को गुजरात में मोरबी जिले के टंकारा में महर्षि दयानंद सरस्वती के 200वें जन्मोत्सव- स्मरणोत्सव कार्यक्रम में उनकी की स्मृति में साकार होने वाले ज्ञान ज्योति तीर्थ का शिलान्यास किया। गुजरात प्रांतीय आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से आयोजित इस समारोह में देश के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आर्य समाज के स्वयंसेवक और लोग उपस्थित रहे। तीन दिवसीय स्मरणोत्सव के समापन अवसर पर मुर्मु ने कहा कि महर्षि दयानंद की यह 200वीं जयंती पूरे देश के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है। हमारी भारत भूमि एक धन्य भूमि है, जिसने महर्षि दयानंद सरस्वती जैसी अद्भुत विभूतियों को जन्म दिया है। आध्यात्मिक पथप्रदर्शक अरविंद ने महर्षि दयानंद के बारे में कहा था कि वे मनुष्य और संस्थानों के मूर्तिकार थे। आज आर्य समाज के लगभग 10 हजार केंद्र मानवता के विकास और कल्याण के लिए कार्यरत हैं।

उन्होंने कहा कि लोकमान्य तिलक, लाला हंसराज और लाला लाजपत राय जैसे महान क्रांतिकारियों पर स्वामी जी के आदर्शों का गहरा प्रभाव था। स्वामी और उनके असाधारण अनुयायियों ने देश के लोगों में एक नई चेतना और आत्मविश्वास का संचार किया था। काठियावाड़ की धरती की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि, महर्षि दयानंद के बाद की महात्मा गांधी का जन्म हुआ था। स्वामी ने समाज सुधार का बीड़ा उठाया था और ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक अमर ग्रंथ की रचना की थी। वहीं, महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीति में जन-जन को जोड़ने के साथ उसे आध्यात्मिक आधार भी दिया था एवं ‘सत्य के प्रयोग’ नामक पुस्तक की रचना की थी। ये दोनों रचनाएँ हमारे देशवासियों ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता का मार्गदर्शन करते रहेंगे। काठियावाड़ में जन्में इन दोनों महापुरुषों के जीवन से देशवासियों और पूरी मानव जाति को प्रेरणा मिलती रहेगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि देश की सोई हुई आत्मा को जगाने, समाज को उन्नति एवं समानता के आदर्शों से जोड़ने और देशवासियों में आत्मगौरव की भावना का संचार करने में सौराष्ट्र की इस भूमि ने पूरे राष्ट्र को सही दिशा दिखाई है। महर्षि दयानंद की समाज सुधार की गतिविधियों का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि महर्षि दयानंद ने 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में व्याप्त अंध विश्वासों और कुरीतियों को दूर करने का बीड़ा उठाया था। उनकी जगाई हुई चेतना से रूढ़ियों एवं अज्ञान रूपी अंधकार दूर हुआ है। इसके साथ ही, उनके द्वारा फैलाया गया ज्ञान का प्रकाश तब से लेकर आज तक देशवासियों का मार्गदर्शन करता रहा है और आगे भी करता रहेगा। स्वामी ने बाल विवाह और बहुपत्नी प्रथा का कड़ा विरोध किया था। वे नारी शिक्षा और नारी स्वाभिमान के प्रखर हिमायती थे। आर्य समाज कन्या विद्यालयों और छात्राओं के लिए उच्च शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना के माध्यम से महिला सशक्तिकरण में अमूल्य योगदान दे रहा है।

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी का मानना था कि, अस्पृश्यता को दूर करने के लिए महर्षि दयानंद का अभियान काफी महत्वपूर्ण था। गांधी ने भी महर्षि के अस्पृश्यता उन्मूलन अभियान को सर्वाधिक महत्व दिया था। उन्होंने यह विश्वास भी व्यक्त किया कि अगले वर्ष जब आर्य समाज की स्थापना के 150 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, तब आर्य समाज से जुड़े सभी लोग स्वामी जी के पूरी दुनिया को श्रेष्ठ बनाने विचारों को कार्यरूप देने के लिए निरंतर आगे बढ़ते रहेंगे। स्वामी जी के मानवता और सर्वसमावेशिता के आदर्शों का अनुसरण करते हुए देश के जनजातीय क्षेत्रों में विद्यालय चलाए जा रहे हैं। आदिवासी युवाओं के लिए कौशल विकास केंद्र चलाए जा रहे हैं। इन स्कूलों और केंद्रों के साथ निःशुल्क आवास एवं शिक्षा की सुविधा भी दी जाती है।

वहीं, राज्यपाल आचार्य देवव्रत के प्राकृतिक खेती के लिए निष्ठापूर्ण प्रयासों की सराहना करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि, आचार्य देवव्रत प्राकृतिक कृषि के क्षेत्र में अमूल्य मार्गदर्शन कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती मानवता के भविष्य और स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। स्वच्छ जल और उपजाऊ मिट्टी के बिना शरीर स्वस्थ नहीं रह सकता। प्राकृतिक खेती अपनाने से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने में भी मदद मिलेगी। राष्ट्रपति ने महर्षि दयानंद सरस्वती के जन्मोत्सव के अवसर पर टंकारा आने के लिए मिले अवसर को अपना सौभाग्य बताया। उन्होंने पूरे देशवासियों की ओर से इस पावन भूमि एवं महर्षि दयानंद जी को वंदन किया। उन्होंने इस समारोह के आयोजन के लिए दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा और महर्षि दयानंद सरस्वती स्मारक ट्रस्ट-टंकारा तथा सभी आर्य संगठनों की सराहना की।  (वार्ता)

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