अयोध्या का चित्रगुप्त धाम फिर एक बार कर रहा राम के निमंत्रण का इंतजार : दिनेश खरे

  • कायस्थ संघ अंतर्राष्ट्रीय ने की चित्रगुप्त धाम के जीर्णोद्बार की मांग
  • प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, अमित शाह व चंपत राय को लिखा पत्र

लखनऊ। धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर वर्तमान में, सरयू नदी के दक्षिण, नयाघाट से फैजाबाद, राजमार्ग पर सिथत तुलसी उधान से लगभग 500 मीटर पूरब दिशा में, डेरा बीबी मोहल्ले में, बेतिया राज्य के मंदिर के निकट है। नयाघाट से मंदिर की सीधी दूरी लगभग एक किमी. होगी।  धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर कायस्थों के चारों धामों में दूसरे स्थान का महत्व रखता है। यह अतिविशिष्ट धाम अपने ही विकास की बाट जोह रहा है। एक तरफ पूरी अयोध्या में चहुंओर विकास की गंगा बह रही है। तो दूसरी ओर अयोध्या के कटरा में यह चित्रगुप्त धाम अत्त्यंत जीर्ण-शीणा हालत में हैं। इसके विकास की मांग अब कायस्थ संघ अंतर्राष्ट्रीय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गृहमंत्री अमित शाह, राम जन्मभूमि न्यास के ट्रस्टी चंपत राय को पत्र लिखकर इसके जीर्णोद्बार की मांग की है। न्यास के अध्यक्ष दिनेश खरे का कहना है कि जब पूरी अयोध्या में विकास की गंगा बह रही है। तो इस मंदिर का भी जीर्णोद्बार होना चाहिए।

पूरी दुनिया से चित्रगुप्त के वंशज यहां दर्शन-पूजन एवं अपनी कामना की पूर्ति के लिए आते हैं। आज की तारीख में यह मंदिर सरकार की ओर देख रहा है। जब भगवान राम त्रेतायुग में आये थे। तो उन्होंने यह मंदिर अपने हाथों से बनवाया था आज जब एक बार फिर तकरीबन 500 सालों बाद रामलला को अपना घर मिल रहा है तो उन्हीं के बनाये इस मंदिर पर भी उनके लोगों द्बारा उसी तरह विकास कराया जाना चाहिए। ताकि चित्रगुप्त भी उनके इस प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पहुंचे। कहीं ऐसा न हो कि उनके प्राण-प्रतिष्ठा में सारे लोग आयें और फिर चित्रगुप्त न आये तो बड़ी मुसीबत होगी । कायस्थ संघ अंतर्राष्ट्रीय के अलावा कायस्थ जागरण संस्थान भारत, अखिल भारतीय चित्रांश महासभा, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा एवं अन्य कायस्थ संस्थाओं ने भी एक स्वर में मंदिर जीर्णोद्बार की मांग उठायी है।

कहते है, जब भगवान राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत थे। भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की व्यवस्था करने को कहा। गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं। ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवी-देवता आ गए तब भगवान राम ने अपने अनुज भरत से पूछा चित्रगुप्त  नहीं दिखाई दे रहे है, इस पर जब उनकी खोज हुई। खोज में जब चित्रगुप्त जी नहीं मिले तो पता लगा कि गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त  को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था, जिसके चलते भगवान चित्रगुप्त नहीं आये। इधर भगवान चित्रगुप्त सब जान तो चुके थे, और इसे भी नारायण के अवतार प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे। फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया।

सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे, प्राणियों का का लेखा-जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजना है। तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्बारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमा याचना की।  अयोध्या महात्मय में भी इसे  धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता। इसके बाद नारायण रूपी भगवान राम का आदेश मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग चार पहर (24 घंटे बाद) पुन: कलम की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया। ऐसा माना जाता है, कि तभी से कायस्थ समाज दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं, और यम-द्बितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है। इस घटना के पश्चात ही, कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ भी कायस्थों को ही है। इस कहानी से निम्न लिखित सवालों का जबाब देने योग्य होंगे आप… आखिर ऐसा क्यूँ है की पश्चिमी उत्तरप्रदेश में कायस्थ दीपावली के पूजन के कलम रख देते है और फिर कलम दवात पूजन के दिन ही उसे उठाते है?

Purvanchal

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