अबकी प्रयोगशाला नही बनेगा लोकसभा क्षेत्र देवरिया

  • 1996 से ही बाहरी लोगों के नेतृत्व का दंश झेल रहा यह क्षेत्र

राघवेंद्र मिश्र

देवरिया। उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा से सटे अतिमहत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र देवरिया के लोग अब बाहरी प्रत्याशियों के नेतृत्व से त्रस्त हो चुके हैं। वर्ष 1996 से ही बाहरी लोगों को केवल सिंबल के सहारे चुनने वाले इस क्षेत्र के लोग इस बार अलग ही मन बना चुके हैं। ऐसे समय में जबकि भाजपा का आंतरिक सर्वे भी चल रहा है, यहां के लोग बहुत खुल कर अपनी राय रखने लगे हैं। सामान्य प्रतिक्रिया यही है कि इस बार पार्टी अपने स्थानीय कार्यकर्ता में से किसी को टिकट देगी तो ही बेड़ा पार होगा। यदि फिर से कोई बाहरी चेहरा स्काई लैब की तरह प्रक्षेपित होगा तो उसे प्रबल विरोध झेलना पड़ेगा और नुकसान होगा।

इससे पहले कि इस क्षेत्र के लोगों की राय पर बात हो, पहले यह जान लेते हैं कि असली माजरा है क्या। दरअसल देवरिया लोकसभा सीट के क्षेत्र में देवरिया जिले की तीन और कुशीनगर जिले की दो विधानसभा सीटें आती हैं। यहां के लोग बताते हैं कि देवरिया सीट से किसी को भी भाजपा का टिकट मिल जाना ही जीत की गारंटी मान ली गई है क्योंकि वर्ष 1996 से ऐसा ही हो रहा है। बताया जा रहा है कि 1996 से पहले यहां रामायण राय और मोहन सिंह बारी बारी से चुनाव जीतते थे लेकिन 1996 में भाजपा ने जनरल श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी को टिकट दिया और वह लगातार विजय पाते रहे। जानकार लोग बताते हैं कि जनरल साहब के लगातार चुनाव जीतने की असली वजह होती थी कि उनके पिता सूरति नारायण मणि त्रिपाठी की विरासत के साथ ही उनके भाई श्री बाबू की स्थानीय राजनीति में बहुत पकड़ थी। जनरल साहब सेना से आए थे लेकिन पारिवारिक आधार ने उन्हें हर बार विजय दिला दी वरना उनकी गिनती आज भी देवरिया के लोग बाहरी में ही करते हैं।

जानकारों के अनुसार जनरल साहब का टिकट काट कर भाजपा ने कलराज मिश्र को 2014 में यहां से उतारा और वह भी जीत गए। फिर 2019 में भाजपा ने रमापति राम त्रिपाठी को यहां से उतार दिया और सीट पर वह काबिज हो गए। कलराज मिश्र और रमापति राम त्रिपाठी का देवरिया अथवा कुशीनगर जिले से कोई संबंध नहीं है। लोग कहते हैं कि 1996 से 2019 तक के इस प्रयोग ने देवरिया संसदीय क्षेत्र को बहुत पीछे कर दिया है।

बताया जा रहा है कि देवरिया संसदीय क्षेत्र में देवरिया सदर, रामपुर कारखाना और पथरदेवा विधानसभा सीटें देवरिया जिले की हैं जबकि फाजिलनगर और तमकुही की विधानसभा सीटें कुशीनगर जिले से आती हैं। लोगों का यह गंभीर आरोप है कि लगातार बाहरी नेताओं की जीत के कारण यह क्षेत्र बहुत पिछड़ गया है। भाजपा और इसके आनुषंगिक संगठनों के कार्यकर्ता हर चुनाव में पार्टी के कारण बाहरी नेताओं को विजय तो दिला देते हैं लेकिन जीतने के बाद नेता कार्यकर्ताओं की अथवा पार्टी के समर्थको की सुधि तक नहीं लेते। इसी वजह से इस बार कार्यकर्ता पहले से ही मुखर होकर बाहरी के विरोध में हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि देवरिया में ही संगठन और विचारधारा में बहुत सक्षम चेहरे हैं जिनको अवसर देना उचित होगा। इस बार यदि बाहरी आया तो परिणाम अच्छा नहीं होगा।

Purvanchal

गोरखपुर में भू-माफिया का आतंकः अधिकारियों के रवैये से क्षुब्ध परिवार पलायन को मजबूर

चार साल से न्याय के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं महर्षि श्रवण वेद विद्यापीठ के प्रबंधक मुख्यमंत्री के गृहजिले में आतंक मचा रहे हैं भूमाफिया, विद्यालय अपनी संपत्ति बेचकर छोड़ना चाहता है गोरखपुर खजनी तहसील के ग्रामसभा सांखडाड पांडे से संचालित होता है महर्षि श्रवण वेद विद्यापीठ विद्यालय की जमीन पर दबंगों का […]

Read More
Purvanchal

इंडिया गठबंधन की तरफ से जनता लड़ रही चुनावः दिग्विजय

मोदी झूठ बोलते हैं और तेजी से पल्टी भी मार लेते हैः सिंह यशोदा श्रीवास्तव महराजगंज। मोदी जितनी तेजी से हिंदू-मुस्लिम के बीच नफरती भाषा का इस्तेमाल करते हैं,उतनी ही तेजी से पल्टी मार जाते हैं। अपनी सभाओं में वे कहते हैं कि कांग्रेस वाले हिंदू महिलाओं का मंगलसूत्र छीन कर ज्यादा बच्चे वालों को  […]

Read More
Purvanchal

बदला मिजाज: अरे ये कैसा जुनून हर रिश्ते का खून, टूटते संयम के साथ टूट रहा भरोसा भी

राजधानी लखनऊ और देवरिया जिले में हुई घटना से फिर दहला दिल नन्हे खान देवरिया। महत्वाकांक्षा अब रिश्तों पर भारी है। बदलते परिवेश में संयुक्त परिवार की अवधारणा खत्म होने के साथ ही आपसी विश्वास भी दरकता जा रहा है। लालच, तनाव, आपसी खींचतान, नफ़रत, शक या फिर वजह कुछ और हो, लेकिन कड़वा सच […]

Read More