दिल्ली में डॉ. ज्ञानेश्वर मुले की सकरात्मक आन्दोलन की गूँज  

डॉ. कन्हैया त्रिपाठी
डॉ. कन्हैया त्रिपाठी

 भारत के लोगों की निगाहें दिल्ली की और लगी रहती हैं और भारत की जनता यह चाहती है कि दिल्ली से कुछ अच्छी ख़बरें आएँगी। ऐसी ख़बरें जो केवल राजनितिक न हों अपितु कुछ ऐसा सन्देश देने वाली हों, जो हमारे समाज व राष्ट्र के लिए ऊर्जा का स्रोत बन जाए। ऐसी कोई वेब आने की उम्मीद भारत की जनता करती है। मूवमेंट ऑफ़ पॉजिटिविटी एक ऐसी ही वेब है जो इस बार दिल्ली से भारत में ही नहीं दुनिया में अपने होने का एहसास दे रही है। लोगों को निश्चय ही ऐसा लगेगा कि दिल्ली में हमेशा कुछ अच्छा होता है और इस बार भी दिल्ली से सकारात्मक बयार से भारत को विकसित भारत बनाने की दिशा में हम आगे बढ़ेंगे। दिल्ली में इस सकारात्मक ऊर्जा को संयोजित व संवर्धित करने के लिए सक्रिय डॉ. ज्ञानेश्वर मुले चर्चा में हैं।

मूवमेंट ऑफ़ पॉजिटिविटी के सूत्रधार पासपोर्ट मैन डॉ. ज्ञानेश्वर मुले जो कि वर्तमान में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सम्मानित सदस्य हैं ने यह बीड़ा उठाया है कि वह सकारात्मक भावनाओं को एकत्रित करेंगे। डॉ. ज्ञानेश्वर मुले ने डॉ. ज्ञानेश्वर मुले फाउंडेशन की स्थापना की है। इस फाउंडेशन के माध्यम से मूवमेंट ऑफ़ पॉजिटिविटी और क्रिएटिव माइंडसेट के लोग अपने-अपने क्षेत्रों में सामाजिक बदलाव के लिए कार्य कर रहे हैं। डॉ. मुले स्वयं सबसे सीधा संपर्क बनाते हैं. सबसे मिलते हैं। सबको प्रेरित करते हैं. सबमें ऊर्जा भरते हैं कि समाज के लिए, अपने लिए और कुछ दूसरों के लिए करने के लिए हम एक साथ आयें। हम एक साथ रहें। हम एक साथ जियें। यह जो जीवन पद्धति विकसित हो रही है वह भारत के लिए भारतीय भविष्य के लिए एक उम्मीद की, आशा की प्रदीप्ति है।

ज्ञानेश्वर मुले ने महाराष्ट्र में चंगुलपण चलबल यानी अच्छाई का अभियान जब शुरू किया था तो उन्होंने सोचा भी नहीं था कि एक दिन यह आन्दोलन देश के लोगों को इस प्रकार जोड़कर एक शृंखला बना देगा। आज वही हुआ है। अच्छाई का अभियान भारत के जनमानस में घुलता जा रहा है और लोग जुड़ते जा रहे हैं। दिल्ली में अच्छाई के अभियान का असर हुआ है। डॉ. ज्ञानेश्वर मुले फाउंडेशन द्वारा संचालित मूवमेंट ऑफ़ पॉजिटिविटी के जरिये थर्ड नेशनल समिट ऑन लीडरशिप इन पॉजिटिविटी का आयोजन न केवल ऐतिहासिक सम्मलेन के रूप में होने जा रहा है अपितु यह सकारात्मक सोच, विचारधारा व समझ रखने वाले लोगों को नई दिशा देने जा रहा है। इस समिट में देश के पूर्व उप राष्ट्रपति वैंकय्या नायडू इस बार इस मूवमेंट में सिरकत कर संवाद स्थापित कर रहे हैं और भारत की पॉजिटिव वेब डॉ. ज्ञानेश्वर मुले के साथ सूत्रबद्ध कर रहे हैं। सबसे पहले यह समझने की आवश्यकता है कि आज जब दुनिया में तनाव, मुश्किलें, संघर्ष अपना भयावह रूप लेते जा रहे हैं। नकारात्मक ऊर्जा वाले संसद भवन में भी उपद्रव करने के लिए आतुर हैं, ऐसे समय में डॉ. ज्ञानेश्वर मुले व उनके लाखों सहयोगी  दिल्ली में ही एकत्रित होकर ऐसी ताकतों को न केवल ललकार रहे हैं अपितु उनसे यह उम्मीद कर रहे हैं कि नकारात्मक वैचारिकी से समझौता करने वाले लोग नकारात्मकता को छोड़ सकारात्मकता की और आयें और समाज निर्माण के लिए सक्रिय हों।

बीते एक दशक में पृथ्वी पर जलवायु समस्या, युद्ध और अन्य संघर्ष बढ़े हैं। भारत में भी अनेक चुनौतियाँ ऐसी हैं जो हमारे विकास के लिए बाधा बनी हुई हैं।भारत के लोगों के आपसी कलह बढ़ने के पीछे और इन मुशीबतों के पीछे कहीं न कहीं हमारे नकारात्मक विचार हैं. ऐसे में मूवमेंट ऑफ़ पॉजिटिविटी एक ऐसी मसाल है जिसके जरिये हमारे समाज की विकास व सहिष्णुता की धारा विकसित हो सकती है। एक ऐसे माहौल का निर्माण कर सकती है जिसके माध्यम से हम अपनी नई दिशा तय कर सकते हैं और नए सन्देश व संभावनाओं के साथ आगे बढ़ सकते हैं। भारत के बुरे स्वप्न तभी ख़त्म हो सकते हैं जब सकारात्मक धारा वाले लोगों का आपसी मिलन होगा. संवाद होंगे। वैचारिक धरातल पर एक राय बनेगी। एक दिशा तय होगी। एक दिशा में काम करने की सहमति बनेगी। यह सहमति बनाना आज के समय में चुनौती है लेकिन दिल्ली कि यह समिट आशा की एक नई ज्योति है जिसके माध्यम से यह प्रत्याशा है कि भारत में यह सम्मलेन सबके लिए सहयोगी साबित होगा. ज्ञानेश्वर मुले आखिर चाहते भी यही हैं कि लोग एकमत हों। एक साथ आयें। एक साथ समाज के लिए कुछ करें. सबके लिए जियें। सबके लिए अपनी ऊर्जा का उपयोग करें। यह जो एकीकरण की प्रवृत्ति है कदाचित सबके मन में विराजित हो तो देश का नक्सा बदल सकता है।

हमारे लिए आज डॉ. ज्ञानेश्वर मुले इसीलिए एक मिसाल बनते जा रहे हैं और अच्छाई का अभियान हमारी ज़रूरत बनता जा रहा है. हमारे देश में आखिर आज यह जरूरत बने भी कैसे नहीं? सब तो चाहते हैं कि सब सुखी हों। डॉ. ज्ञानेश्वर मुले इसलिए अलग दिख रहे हैं क्योंकि वह केवल कामना नहीं करते बल्कि वह कर्मशील व्यकित्व हैं जो यह चाहते हैं कि लोग हमारी कामना से नहीं कर्म से जानें। निःसंदेह यह उनका प्रयास यदि भारत और पृथ्वी पर फैलता है तो एक ऐसे लोगों की बहुलता दिखेगी जो भारत ही नहीं अपितु दुनिया में सकारात्मक वेब के साथ खड़े मिलेंगे। सहयोग के साथ मिलेंगे। आत्मीयता के साथ मिलेंगे और हमारी यह संकल्पना हमारे लिए संजीवनी के रूप में लगने लगेगी.

फ़िलहाल दिल्ली में होने वाली नेशनल समिट जो सकारात्मक भावनाओं वाले लोगों के साथ घटित हो रही है, यह केवल सामान्य घटना नहीं मानी जा सकती बल्कि ऐसी चीजों की पुनरावृत्ति की मांग होगी, ऐसी प्रत्याशा है। यह इसलिए भी हो सकती है क्योंकि सब तो ऊब चुके हैं अपने साथ रोज के अवसाद से, तनाव से, संघर्ष से, मनमुटाव से, कलह से और बेवजह की अनबन से। वे सब चाहते हैं कि हमारी जिंदगी बहुत ही भाग्य से हमें मिली है यदि इसे दूसरों के लिए लगा दिया जाए तो कितनी खूबसूरत सी बात होगी। इस्लिय्ते सब चाहते हैं कि यह घटना बार-बार घटे। लोग सकारात्मक होने, सकारात्मक करने और सकारात्मक सोचने के लिए आगे आएं. इस समिट का एक सन्देश आज के समय में यह भी जा रहा है कि यदि हमें देश को विकास के मार्ग पर ले जाकर विकसित राष्ट्र की श्रेणी में पहुँचाना है तो हमें खुद को पहले बदलना पड़ेगा। यह हमारे लिए आत्मानुशासन की कसौटी भी है और देश के तरक्की का पैमाना भी है। डॉ. ज्ञानेश्वर मुले का यह अच्छाई का अभियान इसलिए ऐसे नेतृत्व को जन्म देने की क्षमता रखता है जिससे भारत का भविष्य भी तय होना है और पृथ्वी पर शांति भी फैलनी है।

शांति के लिए करुणा, सहयोग व मैत्री इस सकारात्मक समिट का मुख्य उद्देश्य प्रतीत होता है. यह प्रतीत होता है कि एक उपयोगी दुनिया के निर्माण की यह एक यात्रा है. सकारात्मक समिट के इस महाकुम्भ में भारतीय जनमानस को एक बार यह समझने की घड़ी है कि इस महासम्मेलन के निहितार्थ क्या हैं और हम वास्तव में क्यों एकमत होने के लिए, कुछ करने के लिए, कुछ सोचने के लिए, कुछ साथ-साथ चलने के लिए सोच रहे हैं। यह बुद्ध की आध्यात्मिक यात्रा भी प्रतीत होती है और गाँधी समेत हमारे देश के सकारात्मक सेनानियों के अन्तश्चेतना भी प्रतीत हो रही है। निःसंदेह डॉ. ज्ञानेश्वर मुले बुद्ध की साधना से भारत के सकारात्मक यात्रा के राही बनकर जिस कसौटी पर खुद को परखते हुए आगे बढ़ चले हैं, उसका असर तत्काल भले न दिखे लेकिन आने वाले समय में बड़े बदलाव के साथ अपने नए-नए अध्याय का सूत्रपात करने की सामर्थ्य बनाए हुए है। आवश्यकता यह है कि आज की युवा पीढ़ी भागदौड़ से मुक्त होकर इस महान यात्रा में सहयात्री बने।

लेखक भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं। आप केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में चेयर प्रोफेसर, अहिंसा आयोग व अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं।

 

 

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