देश के प्राण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम

  • विजयदशमी -अधर्म और अन्याय के प्रति-संघर्ष
  • राम राज्य में लोक हित सर्वोपरि
  • सीता अपहरण: लंकाधिपति का अमर्यादित आचरण

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

देश के प्राण स्वरुप मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं। लंकाधिपति रावण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र था,जो सप्तर्षियों मे एक हैं। शिव भक्त होने के साथ वह वेद वेत्ता,कर्मकांड का ज्ञाता,तंत्र मंत्र में निष्णात महान ज्योतिषी भी था। महान बलशाली रावण कठोर तप करने वाला, अनेक दिव्यास्त्रों से संपन्न शरीर से ही बलिष्ठ नहीं मायावी शक्तियों से आगर था। अनेक ऋषि यज्ञ यागादिक से रावण की शक्तियों की काट तैयार करने मे लगे थे। उन्हें रावण की आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने वाले किसी सुयोग्य पात्र की तलाश थी। रावण को खटका था कि रघुवंश मे पैदा होने वाला कोई राजा ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। इसलिए कई पीढ़ियो से रघुवंशियो को वंश को ही खत्म करने की फिराक मे था।

पौराणिक आख्यान बताते हैं कि वह बारंबार रघुवंशियों से टकरा जाता था किंतु परास्त होकर उसे लौटना पड़ता था। वशिष्ठ उस वंश के राजपुरोहित थे। दशरथ को वृद्धावस्था तक संतान नहीं हुई। तो उसने समझ लिया था कि इसके बाद इस वंश से खतरा टल गया। परंतु दशरथ के अनुरोध पर ऋष्य श्रृंग से मखौड़ा में यज्ञ कराकर दशरथ की तीनो पत्नियो ने चार संतानें पा लीं। तो वह चौंका। उसने इन संतानों की हर गतिविधियो पर निगाह रखनी शुरु की। विश्वामित्र को अपने दिव्यज्ञान से राम लक्ष्मण को अपराजेय रावण पर विजय पाने की क्षमता का एहसास हुआ। तो इन्होंने परखना चाहा‌ और राम लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा करने के लिए दशरथ जी से दोनो पुत्र मांग लिए‌। ताड़का वध करने और यज्ञ मे विघ्न डालने वालों को भगाने मे सफल रहे राम लक्ष्मण को विश्वामित्र ने भूख प्यास सहन करने की क्षमता और अनेक विद्याये दीं। देवर्षि नारद ने शक्ति उपासना और मुनि अगस्त्य ने सूर्य की शक्तियों को पाने का रहस्य समझाया‌।

राम का वनवास,ऋषिमुनियों का मिलन,सीता अपहरण आदि घटनायें रावण से राम के टकराने का कारण बने। देवासुर संग्राम मे देवताओं का साथ देते हुए राजा दशरथ स्वयं विश्वामित्र का साथ देने के लिए तत्पर थे, किंतु विश्वामित्र को यह मंजूर न था। उन्हें तो भवितव्यता में अवसर की तलाश थी। वशिष्ठ जी के समझाने पर राजा दशरथ राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र को सौपने के लिए राजी हुए।परिणाम सबके सामने है।

राम ने अयोध्या की प्रजा को बिना प्रभावित किए और अयोध्या की सेना का बिना प्रयोग किए ही रावण पर बानर भालुओं की मदद से विजय पाली। वे बानर भालू अपने भोजन की व्यवस्था स्वयं कर लेते थे। गदा,पेड़ और पत्थर ही उनके अस्त्र शस्त्र थे। सुग्रीव व विभीषण से मैत्री, राम के राजनैतिक सूझ बूझ का परिचायक था। इस कार्य मे हनुमान की महती भूमिका रही‌।
जामवंत, सुग्रीव ,हनुमान, नल नील आदि मल्लयुद्ध व गदा आदि से युद्ध मे माहिर थे । वे पेड़,पत्थर आदि हर तरह से युद्ध में निष्णात थे। हनुमान ने सीता जी का पता लगाते हुए श्रीलंका मे जाकर रावण की बुद्धि ,विद्या और राजनैतिक सूझ बूझ की थाह लगा ली। लंकादहन करके राक्षसों मे दहशत भी फैलाने मे कामयाब रहे । विभीषण की राम से मैत्री करा कर युद्ध की अपनी रणनीति से भी राम को वाकिफ करा दिया। अंतत: राम रावण को मारने मे सक्षम हुए। विभीषण को लंकाधिपति बना कर राम ने आसुरी शक्तियों को भी अपने अधीन कर लिया। लोकतंत्र की स्थापना ही राम का उद्देश्य था। रामराज्य कायम करते हुए उन्होंने राजपरिवार के बजाय लोक को महत्व दिया। आजीवन धर्म की प्रतिष्ठा ,अन्याय का विरोध और लोक का संरक्षण ही उनका ध्येय रहा।लोक को महत्व देते हुए स्वयं राम ने राज तंत्र को गणतंत्र बना दिया। इस तरह वे देश के प्राण बन गए। उन्होंने घर परिवार ओर समाज मे समानता के सिद्धांत को कायम करने पर बल दिया‌।

नीलकंठ : दशहरे के दिन नीलकंठ का दर्शन शुभ माना जाता है। बताया जाता है कि रावण शिव भक्त था,भगवान शिव से उसे दिव्यशक्तियां मिली थीं। राम ने शिव की उपासना करने के पश्चात लंका विजय का अभियान शुरु किया। शिव ने नीलकंठ के रूप मे राम को दर्शन दिये थे। समुद्र मंथन मे हलाहल विष निकलने पर‌ शिव ने उस हलाहल का पान कर विष के प्रभाव से सृष्टि की रक्षा की थी। तभी से नीलकंठ शिव का स्वरुप माना जाता है।

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