गौरी गणेश की पूजा के साथ छट्ठ माता से पुत्र के दीर्घायु की कामन

  • हलषष्ठी (ललही छठ) को है बलराम जयंती
  • हल से जुते खेत का उत्पाद नही होता प्रयोग
  • तिन्नी का चावल ,भैंस का दूध दही घी का उपयोग
  • खेत से जुड़े आयुधों की पूजा

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

लखनऊ। हलषष्ठी (ललही छठ) का व्रत आज 5सितंबर को है। हमारे पूर्वांचल मे इसे तिनछट्ठी पूजा कहते हैं। पुत्रवती महिलायें यह व्रत करती हैं। इसमे हल जुते खेत  की कोई सामग्री प्रयोग नहीं होती। चूंकि हल बैल जोतता है,गोवंश का है, अत:गौ का दूध ,दही ,घी भी पूजा मे प्रयोग नहीं होता। गन्ना खेत मे होता है, अत: उसके उत्पाद गुड़ चीनी का भी प्रयोग नहीं होता। भैंस के घी, दही का प्रयोग होता है। पानी मे पैदा होने वाले तिन्नी का चावल,बिना जुते खेत का महुआ नींबू,हरी ,मिर्च,साग का प्रयोग होता है।

पुत्रवती महिलायें आंगन मे सरोवर बना कर गोबर से लीप देती हैं। बगल मे कुश गाड़ देती हैं उसके आगे गोबर और सुपाड़ी रख कर गौरी -गणेश के रूप मे उनकी पूजा की जाती है। कुश को लाल या पीले कपड़े से लपेट कर  सिंदूर महुआ,तिन्नी का चावल आदि से छ्ट्ठी माता की पूजा होती है और कुश मे छ: गांठ बांधी जाती है। तिन छट्ठी माता से पुत्र के दीर्घायु की काम़ना की जाती है।

बलराम जयंती: अधिकांश जगहों पर बलराम  का जन्मदिन होने के कारण श्रीकृष्ण बलराम का चित्र रख कर उनका पूजन साथ ही कृषि उपकरण हल मूसल आदिका पूजन किया जाता है। हल-मूसल बलराम जी का आयुध है‌। ज्ञातव्य है कि भाद्रपद शुक्ल छट्ठ को ही नंद बाबा के घर बसुदेव पत्नी रोहिणी जी के पुत्र के रूप मे बलराम जी पैदा हुए थे। जिनका एक नाम हलधर था। पूजन के बाद महिलायें तिन्नी का भात,साग,मिर्चा नींबू दही आदि का एक बार सेवन करती हैं।

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