अवध के राम है चराचर जगत के स्वामी

         बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

वेदों मे पवित्र ऊँ कार मैं हूं-श्री कृष्ण (गीता)

प्रणव (ॐ), पूर्ण परात्पर ब्रह्म का एकाक्षर मंत्र हैं…यह सृष्टि का कारक है….पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु, आकाश पंचतत्वों का कारक है…सबके भीतर समाया भी है । जिस प्रकार हाथ मे अंगूठा न हो तो खाना,पीना,लिखना,अस्त्र शस्त्र संचालन सभी असंभव है…अंगूठे को ब्रह्न का प्रतीक मानते हैं….उसी तरह हर मंत्र को प्रकाशित करने के लिए प्रणव लगाना जरूरी है । यह पवित्र वेद है…इसकी साधना से वेदों का ज्ञान होता है…इसी से ऋक,साम.यजु, अथर्ववेद प्रकट हुआ ।श्वांस ऌेते समय ‘सो’..सांस निकालते समय ‘हम्’ की आवाज निकलती है…सोहम् की निरंतर आवृत्ति होती रहती है…यही हमारा प्राण तत्व है । सोहम् की आवृत्ति न होना मृत्यु है….इसी सोहम् से सह निकल जाता है तो ऊँ शेष रह जाता है।

प्रकृति मे निरंतर ऊँ कार का स्पंदन होता रहता है…इसका स्वर गूंजता है…हमारे  शरीर के भीतर अनहद नाद के रूप मे इसके ही स्वर गूंजते रहते हैं जिनमे योगी नित्य निरंतर रमण करते हैं। पर इस पवित्र नाम को इसकी अपार ऊर्जा को सहन कर पाना सबके वश की बात नहीं…इसका निरंतर जप करने वालों को लोभी ,विषयासक्त,अशौचावस्था मे रहने का निषेध है…इसलिए यज्ञोपवीत इस मंत्र के स्पंदन जन्य ऊर्जा को संयमित करता है…सिर के पृष्ठ भाग मे चोटी ऊर्जा बिखरने नहीं देता…भौहों के मध्य भाग मे स्पंदन होने लगता है और मेधा शक्ति जागृत होने लगती है उसे शीतल बनाये रखने के लिए..मलयागिरि का चंदन लगाते हैं…हर चक्र ऊर्जस्वित होते है…हर चक्र पर भी चंदन लगाने का विधान है।  इतना विधि निषेध हर व्यक्ति नहीं पालन कर सकता…इसलिए इसका विकल्प भी ऋषियों ने निकाला…उन्होंने ‘राम’ मंत्र को उसके विकल्प के रुप मे जप करने की प्रेरणा दी…राम मंत्र जपने के लिए..कोई विधि निषेध नहीं… हर समय हर अवस्था मे हर जाति वर्ग का व्यक्ति…इसे जप सकता है।

वर्ण विपर्यय से राम…आ र म हुआ…र अक्षर का संस्कृत के सूत्र से उ बन जाता है। इस प्रकार आ उ म हुआ पुनः सूत्र लग कर ओम् =ऊँ , होजाता है…यह पवित्र वैदिक मंत्र ऊँ कार हुआ । राम सुरक्षा कवच से घिरा ऊँ है…इसलिए इसके लिए अलग से सुरक्षा घेरे की जरुरत नहीं…स्त्री पुरुष वैश्य शूद्र ब्राह्मण क्षत्रिय सभी इसके मंत्र का जप कर सकते है…बिना नहाये सोते जगते नींद आलस्य किसी भी अवस्था मे राम नाम लिया जा सकता है । इसी लिए भगवान शिव ने ..देवर्षि नारद ने और अन्य संतों ऋषि मुनियों मे कहा..’ राम सकल नामन ते अधिका ‘ । हमे इनमे से किसी नाम की साधना करनी चाहिये। इससे सृष्टि का रहस्य खुलेगा ..सभी विद्याओं की जानकारी होगी…इसके जप -आवृत्ति से प्रकृति की शक्तियों का दोहन होगा और  उसका उपयोग करने में हम सक्षम होंगे ।

हरि आए.. प्रकृति और पुरुष जगा

नित्य होता है प्रमु से मिलन

प्रात: काल नींद खुली तो हरि याद आए.. रात में बिस्तर पर पड़ते ही नींद के झोंको के साथ हरि का झोंका आता है।बातें करवट से दाहिनीं नाड़ी चलने लगती है..पाचन क्रिया शुरु होती है। उस समय शरीर में रज और तम जगता है ,गहरी नींद आती है तोऔ बाहर प्रकृति रुप होकर और आत्म अंश से प्रभु मातृवत भीतर का सारा शरीर सहलाते हैं,जिससे रुग्ण अंग दुरुस्त होते हैं। रक्त संचार सही होता है। भोजन पचता है। सभी अंगों की  सक्रियता रहती है। मस्तिष्क से रक्त संचार नीचे के अंगों में जाकर उन्हें सक्रिय करता है,स्वयं मस्तिष्क नींद में विश्राम करता है‌। धन्य है प्रभु क्या सिस्टम बनाया है?सुबह होते ही स्वत: करवट दायां होता है। सतोगुण तैरने लगता है। रक्त संचार मस्तिष्क की तरह बढ़ चलता है और हम जग जाते हैं।

नारायण की स्वत: संचालित क्रिया जन्म से मृत्यु तक चलती रहती है। मृत्यु के पश्चात  मिट्टी मिट्टी में,जल जल में,वायु वायु में और तेज तेज मे मिल जाता है। आकाश आकाश तत्व में.इस तरह हम प्रकृति के कण कण में ओतप्रोत होजाते हैं। हम आजीवन सूक्ष्म शरीर भी भगवत् तत्त्व में मिल जाय.. इसी की साधना करते हैं। मन बुद्धि चित्त और अहंकार भी महत तत्व मे मिल जाय तथा आत्मा परमात्मा में मिल जाय यही मोक्ष चाहते है। नहीं मिलता तो फिर एक जन्म और लेकर धरती का चक्कर लगाते हैं।

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