जनभावना का सम्मान

डॉ दिलीप अग्निहोत्री


लखनऊ। गीता प्रेस का शताब्दी समारोह उसकी गरिमा के अनुरूप रहा। देश के प्रधानमंत्री इसमें सहभागी होने के लिए पहुँचे। इसके लिए उन्होंने अपने को धन्य माना। कुछ समय पहले ही प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने गीता प्रेस को गांधी शांति सम्मान हेतु नामित किया था। वस्तुतः गीता प्रेस का सम्मान एक विचारधारा के अनुरूप है। जिसमें राष्ट्रीय गौरव समाहित है। गीता प्रेस के अमूल्य और विलक्षण योगदान के प्रति आदर भाव है। दूसरी तरह वह विचारधारा है जिसको कांग्रेस के वरिष्ठ ने जयराम रमेश ने प्रकट किया। जयराम रमेश ने कहा कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना वास्तव में एक उपहास है। यह गोडसे व सावरकर को सम्मानित करने जैसा है। ऐसे बयान दो कारणों से सम्भव है। पहला यह कि उन्हें गीता प्रेस की कोई जानकारी नहीं है, दूसरा यह कि उन्हें देश के बहुसंख्यकों की भावनाओं की कोई समझ नहीं है। ऐसे लोगों को केवल वोटबैंक राजनीति के अलावा कोई बात समझ नहीं आती है। कई वर्षों तक केंद्र में मंत्री रहे व्यक्ति को गीता प्रेस की जानकारी ना हो यह सम्भव नहीं लगता। गीता प्रेस का कार्यक्षेत्र इतना सीमित भी नहीं है। देश भर में इसकी बीस शाखाएं हैं।

देश के हर कोने में रेलवे स्टेशनों पर हमें गीता प्रेस का स्टॉल  है। पंद्रह अलग-अलग भाषाओं में यहां से करीब सोलह सौ प्रकाशन होते हैं। गीता प्रेस अलग-अलग भाषाओं में भारत के मूल चिन्तन को जन-जन तक पहुंचाती हैं। कांग्रेस नेता का बयान सुनियोजित था। UPA काल से ही इस प्रकार की राजनीति चल रही है। इसके अंतर्गत ही हिन्दू आतंकवाद का झूठा शब्द गढ़ा गया था। ऐसे ही लोगों के कारण ही गीता प्रेस को राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार नहीं दिया गया था। कांग्रेस द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर स्थापित राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार के पिछले साल  गीता प्रेस का नामांकन हुआ था। अशोक गहलोत ने गीता प्रेस को राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार के लिए नामित किया था। जूरी के सदस्य वरिष्ठ नेता डा। कर्ण सिंह ने इसका समर्थन किया था। लेकिन गीता प्रेस को पुरस्कार प्राप्त नहीं दिया गया। दूसरी तरफ राष्ट्रवादी विचारधारा है। जिसको गोरखपुर में नरेंद्र मोदी ने अभिव्यक्त किया। उन्होंने कहा कि

गीता प्रेस भारत को जोड़ती है तथा भारत की एकजुटता को सशक्त कर गीता प्रेस एक तरह से ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को प्रतिनिधित्व देती है। नरेंद्र मोदी ने गीता प्रेस में चित्रमय शिवपुराण एवं नेपाली भाषा में शिवपुराण पुस्तक के विमोचन किया था। उन्होंने कहा था कि गीता प्रेस विश्व का एक ऐसा एकमात्र प्रिण्टिंग प्रेस है, जो सिर्फ एक संस्था नहीं, बल्कि एक जीवन्त आस्था है। गीता प्रेस का कार्यालय करोड़ों लोगों के लिए किसी भी मन्दिर से कम नहीं है। इसके नाम में भी गीता है और इसके काम में भी गीता है। जहां पर गीता है, वहां पर साक्षात कृष्ण हैं और जहां पर कृष्ण हैं, वहां पर करुणा, कर्म भी है। वहां ज्ञान का बोध भी है और विज्ञान का शोध भी है। क्योंकि गीता का वाक्य है ‘वासुदेवः सर्वम्’ अर्थात सब कुछ वासुदेव में है सब कुछ वासुदेव से ही है। 1923 में गीता प्रेस के रूप में जो आध्यात्मिक ज्योति प्रज्ज्वलित हुई, आज उसका प्रकाश पूरी मानवता का मार्गदर्शन कर रहा है।

देश के हिन्दू परिवारों में रामचरितमानस और श्रीमद् भगवद गीता रहती है। इनका प्रकाशन करने वाली गीता प्रेस के प्रति जन-मानस का पूरा सम्मान रहता है।उमा भारती ने कहा कि गीता प्रेस गोरखपुर का भारतीय संस्कृति, हिंदुत्व एवं अध्यात्म में हमेशा अद्वितीय योगदान रहा। हिंदू समाज के सभी धर्मग्रंथ सरल,त्रुटिहीन एवं कम कीमत पर उपलब्ध कराए गए। घर-घर में रामायण और गीता उनकी बदौलत भारत में सबको एवं विश्व में उपलब्ध कराई। उनका किसी विवाद से कभी सरोकार नहीं रहा, उनके योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार भी कम पड़ेगा। जयराम रमेश जैसे स्तर के लोग जो कांग्रेस के बड़े पदों पर बैठे हैं को शायद यही पता ना हो कि गीता प्रेस गोरखपुर में छपता क्या है। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि गीता प्रेस का विरोध हिंदू विरोधी मानिसकता की पराकाष्ठा है। राजनीतिक पार्टी के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को इस तरह के धर्म विरोधी बयान नहीं देने चाहिए, जिसके नुकसान की भरपाई में सदियां गुजर जाएं।

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