बांदा लोकसभाः क्या खत्म होगा ‘हैट्रिक’ पर ग्रहण,अब तक किसी की नहीं लगी तिहरी जीत

  • विडम्बनाः बाहरी प्रत्याशियों के बूते लोकसभा में पहचाना जाता है बांदा
  • 17 में 11 बार सांसद बन चुके हैं बाहरी प्रत्याशी, अबकी बार कौन, चार जून को मिलेगा जवाब

देवेंद्र नाथ मिश्र की रिपोर्ट…

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में भी लोकसभा चुनाव को लेकर हलचल बनी हुई है। बांदा संसदीय सीट पर कभी किसी दल का लंबे समय तक दबदबा नहीं रहा है। यहां पर अब तक हुए चुनाव में किसी भी दल ने चुनावी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। समाजवादी पार्टी साल 2014 में हार के साथ ही हैट्रिक से चूक गई, लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) भी हैट्रिक की रेस में है। हालांकि इस बार मुकाबला कांटे का होने वाला है क्योंकि वर्ष 2019 के चुनाव में BJP को कड़े मुकाबले में जीत मिली थी। इस बार चुनाव में यूपी में सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। आजादी के बाद बांदा चित्रकूट संसदीय सीट पर अब तक 17 बार हुए लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने 11 बार चित्रकूट या गैर जनपदों के प्रत्याशियों के सिर पर ताज सजाया है। बांदा के प्रत्याशियों में सिर्फ छह को सांसद बनने का मौका मिला है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बांदा या चित्रकूट में से कौन प्रत्याशी निर्वाचित होगा, यह मतगणना के बाद पता चलेगा।

बांदा शहर का नाम बामदेव नाम के महान ऋषि के नाम पर पड़ा। पहले इसे बाम्दा कहते थे फिर बाद में बांदा पड़ा। बांदा जिले का इतिहास पाषाण काल और नवपाषाण काल के दौर का माना जाता है। इस क्षेत्र के सबसे पहले ज्ञात शासक यायात्री को माना जाता है जिनके बड़े पुत्र यदु को यह क्षेत्र विरासत में मिली, बाद में उनकी संतानों ने इस इलाके का नाम चेदि-देश रख दिया। यहां पर कालिजर के नाम की एक पहाड़ी है जिसे पवित्र माना जाता है। वेदों में भी इसका उल्लेख किया गया है। साथ ही यह भी माना जाता है कि भगवान राम ने अपने 14 साल के निर्वासन में 12 साल चित्रकूट में बिताए थे, जो कुछ साल पहले तक यह बांदा जिले का हिस्सा हुआ करता था। कहते हैं कि प्रसिद्ध कालिजर-पहाड़ी (कलंजराद्री) का नाम भगवान शिव के नाम पर है, जो कालिजर के मुख्य देवता हैं जिन्हें आज भी नीलकंठ कहा जाता है।

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पिछले चुनाव में किसे मिली जीत

साल 1998 में चित्रकूट नाम के नए जिला का गठन दो तहसीलों जैसे कारवी और मऊ के साथ किया गया था। बांदा जिले में 5 तहसील बबेरू, बांदा, अतर्रा, पेलानी और नरैनी रह गए। चित्रकूट धाम नाम से नई कमिश्नरी का गठन किया गया जिसका मुख्यालय बांदा बनाया गया। इस मंडल में बांदा, हमीरपुर, महोबा और चित्रकूट जिले रखे गए। बांदा जिले के तहत बाबेरू, नारैनी, बांदा, चित्रकूट और माणिकपुर विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें नारैनी सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है। 2022 के विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर BJP तो दो सीटों पर समाजवादी पार्टी (SP) को जीत मिली, जबकि एक सीट अपना दल के खाते में गई थी।

साल 2019 के संसदीय चुनाव की बात करें तो बांदा लोकसभा सीट पर BJP के आरके सिह पटेल और समाजवादी पार्टी के श्यामा चरण गुप्ता के बीच मुख्य मुकाबला रहा था। चुनाव से पहले सपा और बसपा के बीच गठबंधन की वजह से यह सीट सपा के खाते में गई। आरके सिह पटेल को चुनाव में 477,926 वोट मिले तो श्यामा चरण गुप्ता के खाते में 418,988 वोट आए। जबकि कांग्रेस के बालकुमार पटेल को 75,438 वोट ही मिले। दोनों उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला रहा लेकिन आरके सिह पटेल ने अंत तक चले संघर्ष के बाद यह चुनाव 58,938 मतों के अंतर से जीत लिया। तब के चुनाव में बांदा संसदीय सीट पर कुल 16,59,357 वोटर्स थे जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 9,09,518 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 7,49,767 थी। इनमें से 10,34,549 (63.5%) वोटर्स ने वोट डाले। चुनाव में नोटा के पक्ष में 19,250 वोट पड़े थे।

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बांदा का राजनीतिक इतिहास

बांदा संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां पर हर बड़े दलों को जीत मिली है। यहां पर अब तक हुए 17 चुनावों में सबसे अधिक ब्राह्मण बिरादरी के प्रत्याशी को जीत मिली है और सात बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं। जबकि पांच बार कुर्मी उम्मीदवार को जीत मिली। यहां पर अब OBC वर्ग को छह बार जीत मिल चुका है। संसदीय सीट के शुरुआती चुनाव को देखें तो 1957 में कांग्रेस के राजा दिनेश सिह को जीत मिली। 1962 में सावित्री निगम को जीत मिली। 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के प्रत्याशी जोगेश्वर यादव ने उलटफ़ेर करते हुए जीत अपने नाम कर लिया। जनसंघ के राम रतन शर्मा ने 1971 के चुनाव में जीते थे। जनता पार्टी के अंबिका प्रसाद पांडे 1977 में विजयी हुए थे।

साल 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर वापसी की और रामनाथ दुबे सांसद बने। 1984 में कांग्रेस के भीष्म देव दुबे के खाते में यह जीत गई। 1989 में सीपीआई को दूसरी बार यहां से जीत मिली और राम सजीवन सांसद चुने गए। 1991 में BJP ने राम लहर के बीच इस सीट पर भी अपना खाता खोल लिया। प्रकाश नारायण त्रिपाठी सांसद चुने गए। 1996 में बसपा के राम सजीवन ने जीत हासिल कर पार्टी के खाता खोला। सजीवन इससे पहले 2 बार सांसद चुने गए थे। 1998 में BJP के रमेश चंद्र द्बिवेदी को जीत मिली। 1999 में राम सजीवन ने एक बार फिर बसपा के लिए जीत हासिल की।

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बांदा का जातीय समीकरण

वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के श्याम चरण गुप्ता ने जीत अपने नाम करते हुए पार्टी के लिए खाता खोला। श्यामा चरण गुप्ता श्यामा ग्रुप ऑफ कंपनीज के संस्थापक हैं। 2009 में सपा के टिकट पर आरके सिह पटेल पहली बार सांसद चुने गए। 2014 के चुनाव में देश में मोदी लहर का असर दिखा और लंबे इंतजार के बार फिर से भगवा पार्टी को यहां पर जीत मिली। BJP के भैरों सिह मिश्रा ने इस बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले सांसद आरके सिह पटेल को 1,15,788 मतों के अंतर से हरा दिया। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आरके सिह पटेल ने फिर से दलबदल किया और अब BJP में शामिल हो गए। पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए आरके सिह पटेल ने सपा के पूर्व सांसद श्यामा चरण गुप्ता को 58,938 मतों के अंतर से हरा दिया। बांदा सीट पर अब तक सात बार ब्राह्मण उम्मीदवार तो पांच बार कुर्मी उम्मीदवार को जीत मिल चुकी है। इसलिए इस क्षेत्र को ब्राह्मण और कुर्मी बाहुल्य माना जाता है। चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही सपा ने ओबीसी वर्ग के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री शिव शंकर सिह पटेल को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। वह 2022 में सपा में शामिल हुए थे। शिव शंकर पहले BJP सरकार में मंत्री थे और जिले की बबेरू सीट से विधायक रहे। वह यूपी सरकार में सिचाई एवं लोक निर्माण राज्यमंत्री भी थे।

बांदा संसदीय क्षेत्र में 1952 से लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। 90 के दशक में तत्कालीन मायावती सरकार ने बांदा को विभाजित कर पहले साहू जी महाराज नगर बनाया, जिसे मुलायम सरकार ने पुन: चित्रकूट नाम दिया। इसी तरह कल्याण सरकार ने बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट और महोबा को मिलाकर चित्रकूट धाम मंडल बनाया था। इसी दौरान लोकसभा सीट को बांदा चित्रकूट कहा जाने लगा, लेकिन इसके पहले ही लोकसभा क्षेत्र में चित्रकूट का दबदबा था। इस क्षेत्र में सिर्फ दो विधानसभा सीटे हैं। यह दोनों विधानसभा सीटे बांदा में भारी पड़ती हैं। मतदाताओं के लिहाज से भी चित्रकूट में संख्या कम है, बांदा में ज्यादा है। इसके बाद भी चित्रकूट के प्रत्याशी ही ज्यादातर लोकसभा चुनाव में सफल होते रहे हैं।

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फतेहपुर निवासी पहला सांसद बना

सबसे पहले 1952 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान फतेहपुर के निवासी शिवदयाल उपाध्याय सांसद बने थे। दूसरा चुनाव 1957 में हुआ, जिसमें प्रतापगढ़ के कालाकांकर रियासत के राजा दिनेश सिह के सिर ताज सजा था। तब वह कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे। 1962 में कांग्रेस की सावित्री निगम, 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जागेश्वर यादव, 1971 में भारतीय जनसंघ से रामरतन शर्मा, 1977 में जनता पार्टी से अंबिका प्रसाद पांडे, 1980 में कांग्रेस से रामनाथ दुबे और आखरी बार 1984 में कांग्रेस के भीष्म देव दुबे शामिल है। इस तरह छह बार बांदा के लोगों को सांसद बनने का मौका मिला। 1984 के बाद बांदा का कोई भी सूरमा लोकसभा चुनाव जीतने में नाकाम रहा।

1989 के बाद चित्रकूट का जलवा बरकरार

इसके बाद 1989 में बसपा के राम सजीवन, 1991 में भाजपा के प्रकाश नारायण त्रिपाठी, 1996 में बसपा के राम सजीवन, 1998 में भाजपा के रमेश चंद्र द्बिवेदी, 2004 में सपा के श्याम चरण गुप्ता, 2009 में सपा के आर के सिह पटेल, 2014 में भाजपा के भैरव प्रसाद मिश्र और 2019 में भाजपा के आर के सिह पटेल निर्वाचित हुए। इनमें रमेश चंद द्बिवेदी को छोड़कर सभी चित्रकूट जनपद के रहने वाले हैं। रमेश चंद्र द्बिवेदी मूल रूप से कौशांबी जिले के रहने वाले हैं।

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दो विधानसभा बांदा पर भारी

इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार सुधीर निगम का मानना है कि राजनीतिक दृष्टिकोण से चित्रकूट जनपद बांदा में हमेशा भारी रहा है। इसका कारण केन और यमुना नदी के बीच बसे बांदा जिले के सवर्ण और पिछड़ी जातियों का निर्णायक होना है। इनका वोट जिसकी तरफ जाता है, वही लोकसभा पहुंचने में सफल हो जाता है। इसी वजह से बांदा चित्रकूट लोकसभा सीट से ब्राह्मण और कुर्मी नेताओं को सबसे ज्यादा सांसद बनने का मौका मिला है।

बड़े दलों से ज्यादा छोटे दलों के प्रत्याशी ज्यादा पढ़े-लिखे, भाजपा प्रत्याशी सबसे अमीर

उत्तर प्रदेश के बांदा-चित्रकूट लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र (48) में नाम वापसी के बाद 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में बच गए हैं। इन प्रत्याशियों में 10 स्नातक और परास्नातक है जबकि दो प्रत्याशी सिर्फ साक्षर हैं। समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी श्रीमती कृष्णा देवी पटेल ने संस्कृत से मध्यमा और बिशारद किया है। इनमें भाजपा समेत चार ऐसे प्रत्याशी हैं, जिनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। इनमें सबसे अमीर उम्मीदवार भाजपा के आरके सिह पटेल हैं, जिनके पास 8 करोड़ की संपत्ति है। बांदा-चित्रकूट लोकसभा में जो 12 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं। इनमें से 10 प्रत्याशी मयंक द्बिवेदी (बसपा), आरके सिह पटेल (भाजपा), प्रमोद कुमार (अपना दल कमेरावादी), बाबूलाल (लोग पार्टी), गुलाबचंद वर्मा (राष्ट्रीय उदय पार्टी), रामचंद्र सरस (सीपीआई), दिनेश कुमार पटेल (सरदार पटेल सिद्धांत पार्टी) और राम सिह गौर (भारतीय भारतीय शक्ति चेतना पार्टी) स्नातक हैं। सपा प्रत्याशी श्रीमती कृष्णा देवी पटेल ने संस्कृत से मध्यमा और बिशारद की शिक्षा ली है। इसे स्नातक के समकक्ष माना जाता है।

इन प्रत्याशियों में दो प्रत्याशी ऐसे भी हैं जो बड़े राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों से ज्यादा पढ़े लिखे हैं। इनमें सीपीआई के रामचंद्र सरस न केवल स्नातक हैं बल्कि वह आयुर्वेदाचायã भी हैं। इसी प्रकार स्वतंत्र जनता पार्टी के सुरेंद्र सिह परास्नातक (एम काम) है। इसी तरह दो ऐसे प्रत्याशी हैं जो सिर्फ साक्षर हैं। इनमें निर्दलीय रामचरण कक्षा 7 और पंचा उर्फ पंचम लाल सिर्फ साक्षर है। इन्होंने प्रौढ शिक्षा हासिल कर नाम लिखना व हिसाब किताब करना सीखा है।

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भाजपा के आरके पटेल सबसे ज्यादा अमीर

इनमें सबसे ज्यादा अमीर प्रत्याशियों में भाजपा के आर के सिह पटेल हैं। दो बार सांसद और एक बार के विधायक आर के सिह पटेल के पास साढे आठ करोड़ की संपत्ति है। इसके बाद बहुजन समाज पार्टी के मयंक द्बिवेदी हैं जिनके पास साढ़े चार करोड़ की संपत्ति है। पुरुषोत्तम नरेश द्बिवेदी के पुत्र मयंक द्बिवेदी एक बार जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। वहीं समाजवादी पार्टी की श्रीमती कृष्णा देवी पटेल के पास ढाई करोड़ की संपत्ति है।

श्रीमती कृष्णा देवी पटेल एक बार जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं और पूर्व मंत्री शिव शंकर सिह पटेल की पत्नी है। इनके अलावा दो प्रत्याशियों के पास 50 हजार से कम की संपत्ति है। जो करोड़पति प्रत्याशियों के सामने ताल ठोंक रहे हैं। कम संपत्ति होने के बावजूद इनके हौसले बुलंद है। इनका कहना है कि चुनाव पैसे से नहीं अपने कामों के दम पर जीता जाता है। वह गरीबी और गरीबों के दर्द को समझते हैं।

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इन पर अपराधिक मामले

चुनाव लड़ रहे इन प्रत्याशियों में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी आरके सिह पटेल पर एक अपराधी मुकदमा है। इस मुकदमे में उन्हें एक साल की सजा हुई थी लेकिन एमपी एमएलए कोर्ट में अपील के बाद सजा पर रोक लगी है। इसी तरह बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी मयंक द्बिवेदी पर दो अपराधिक मुकदमे दर्ज हुए लेकिन इनमें पुलिस की फाइनल रिपोर्ट लगी है। प्रत्याशी ने अपने शपथ पत्र में इस बात का उल्लेख किया है। समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी कृष्णा देवी पटेल पर कोई आपराधिक मुकदमा नहीं है जबकि दो अन्य प्रत्याशियों पर भी अपराधिक मामले दर्ज हैं। सभी प्रत्याशियों की तस्वीर साफ हो चुकी है अब इनमें से कौन बाजी मारेगा आने वाली 20 मई को मतदाता करेंगे। प्रत्याशियों के शिक्षा के मामले में अधिवक्ता सुरेश चंद्र गुप्ता कहते हैं की संसद में कानून बनते हैं। इसलिए जो प्रत्याशी चुना जाए, उसे पढ़ा लिखा होना चाहिए।

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