कलश स्थापना शुभ मुहूर्त और सम्पूर्ण विधि
22 मार्च 2023 बुधवार
चैत्र शुक्ल (बसंत नवरात्र) शुक्ल प्रतिपदा दिनांक 22 मार्च 2023 बुधवार को चैत्र नवरात्र प्रारंभ होंगे।
घटस्थापना (देवी आह्वान) के लिए देवी पुराण व तिथि तत्व में प्रातः काल का समय ही श्रेष्ठ बताया गया है अतः इस दिन प्रातः काल में द्विस्वभाव लग्न में घट स्थापना करनी चाहिए।
इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बुधवार को सूर्योदय 5:59 बजे होगा और द्विस्वभाव लग्न प्रातः 7:31 बजे तक रहेगा। अतः 6:00 से 8:30 बजे तक घट स्थापना कर नवरात्र शुरू करने का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा।
इसके बाद भी द्विस्वभाव मिथुन लग्न में दिन में 11:14 से 12:00 बजे तक भी घटस्थापना की जा सकती है।
चौघड़िया के हिसाब से घट स्थापना करने वाले प्रातः 6:00 से 9:28 बजे तक लाभ व अमृत के चौघड़िया में व दिन में 11:14 से 12:00 बजे तक शुभ चौघड़िये में के पूर्वार्ध में घट स्थापना कर सकते हैं।
नवरात्रि कलश स्थापित करने की दिशा और स्थान-
कलश को उत्तर या फिर उत्तर पूर्व दिशा में रखें। जहां कलश बैठाना हो उस स्थान पर पहले गंगाजल के छींटे मारकर उस जगह को पवित्र कर लें इस स्थान पर दो इंच तक मिट्टी में रेत और सप्तमृतिका मिलाकर एक सार बिछा लें कलश पर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और सिंदूर का टीका लगाएं कलश के गले में मौली लपेटें।
कैसे करें कलश स्थापना
नवरात्रि की पूजा में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. कलश को श्रीविष्णु का रूप माना जाता है, इसलिए नवरात्रि से पहले घटस्थापना या कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना अगर शुभ मुहूर्त में की जाए तो इसका विशेष फल मिलता है।
कलश स्थापना से पहले घर के मंदिर को अच्छी तरह से साफ कर लें। इसके बाद पूजा के स्थान पर लाल कपड़ा बिछाएं। कलश के लिए वैसे तो मिट्टी का कलश सबसे शुभ होता है लेकिन अगर वो नहीं है तो तांबे का कलश भी चलेगा। इसे लगातार नौ दिनों तक एक ही स्थान पर रखा जाता है। कलश में गंगा जल या स्वच्छ जल भर दें।
अब इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का डालें। इसके बाद कलश के किनारों पर अशोक या आम के पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें। एक नारियल पर लाल कपड़ा या चुन्नी लपेट दें। अब नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र या मोली से बांधें। इसे तैयार करने के बाद चौकी या जमीन पर जौ वाला पात्र (जिसमें आप जौ बो रहे हैं) रखें। अब जौ वाले पात्र के ऊपर मिटटी का कलश और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रखें।
उसके बाद आप विधि विधान से पाठ- पूजा उपासना करें। माता का ध्यान स्मरण करें व मंत्र जप करें। उसके बाद माता के प्रसाद का भोग लगाएं और माता की आरती करें।