कविता : वो पारखी नज़र कहाँ से लाऊँ

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

सफलता की कहानी ख़ुशी देती है,
पर उसे पढ़ते रहने से क्या फ़ायदा है,
यह तो बस एक रास्ता बताती है,
सफलता अक्सर अहंकार बढ़ाती है।

असफल प्रयास हौंसला देते हैं,
निरन्तरता से अनुभव मिलते हैं,
असफलता कई राहें दिखाती है,
सफलता के द्वार तक ले जाती है।

पूर्ण विराम से किसी सत्य तथ्य
का अंत तो कभी भी नहीं होता है,
क्योंकि पूर्ण विराम के पश्चात ही,
एक नया वाक्य भी प्रारंभ होता है।

कौन हमसफ़र व कौन हमराज
बनाना चाहता है व कौन नहीं,
मैं यह कैसे निश्चित कर पाऊँ,
वो पारखी नज़र कहाँ से लाऊँ।

हमारे यहाँ स्त्रियाँ तो देवी होती हैं,
आदित्य हर सज्जन पुरुष जानता है,
जिसने माँ बहनों का सम्मान किया है,
वह स्त्री में उनकी ही छवि देखता है।

 

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