पुलिस है, खुद को बचा ही लेगी

होती रही वारदात होती रही खाकी

पिछले साल की घटनाओं को छोड़ो, दो वारदातें खोली पोल


ए अहमद सौदागर


लखनऊ। पुलिस अफसर, मातहत, गश्त, सुरक्षा ये चार ऐसे गंभीर शब्द हैं, जिनके कंधों पर लोगों की सुरक्षा का जिम्मा होता है। इसके बावजूद शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण इलाकों में हो रही संगीन घटनाओं को रोकने में सफल नहीं बल्कि असफल होकर रह जाती है। इससे साफ है कि कहीं न कहीं अफसरों का फरमान अधीनस्थों के लिए मायने नहीं रखता और बेलगाम दरिंदे या कातिल अपने नापाक मंसूबों में कामयाब होकर भाग निकलते हैं। यह खेल है सुस्त दांव पेंच का। पुलिस इसमें माहिर है। यही वजह है कि लापरवाह पुलिस सुधरने का नाम भी नहीं लेती। उन्हें निलंबन और बर्खास्तगी का भय भी नहीं सताता और नाक के नीचे खूनी दरिंदे वारदात को अंजाम देकर भाग निकलते हैं और सुरक्षा व गश्त का डंका पीटने वाली पुलिस हाथ मसल कर रह जाती है।

पिछले साल की घटनाओं की बात छोड़ दें सिर्फ वर्ष 2022 में नवंबर महीने में हुई दो वारदातें पुलिस की सक्रियता की पोल खोलने के लिए काफी हैं। दुबग्गा थानाक्षेत्र के मौरा खेड़ा निवासी 17 वर्षीय किशोरी को जिस तरह से कातिलों ने बेरहमी से कत्ल किया कि रुह कांप गई। घटनास्थल और शव के हालात खुद बयां करती है कि वह जान बचाने के लिए चीख पुकार की लड़ी, लेकिन न तो कोई स्थानीय शख्स के कान तक आवाज पहुंची और न ही पुलिस को भनक लग सकी। नतीजतन घरवालों को जगाने वाली बेबस किशोरी हमेशा के लिए सो गई।

यह सनसनीखेज मामला शांत भी नहीं पड़ा था कि गोसाईगंज क्षेत्र में एक युवती को बंधक बनाकर गैंगरेप कर महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए। हालांकि पुलिस की लापरवाही का पहला मामला नहीं इससे पहले भी कई घटनाओं में फेल साबित हो चुकी है। ताज्जुब की बात यह है कि पूरे साल में कई जघन्य अपराध हुए हर समय चौकन्ना रहने का दावा करने वाली पुलिस की पोल खुल गई। सच तो यह है कि अपराधियों पर लगाम कसने के दावों की पोल करीब हर माह खुलती है। घटना होने की जानकारी मिलते ही पुलिस के आलाधिकारी मौके पर पहुंचकर जांच पड़ताल कर लापरवाही सामने आने पर वे तत्काल प्रभाव से बीट इंचार्ज पर गाज गिरा खुद पल्ला झाड़ लेते हैं, लेकिन कड़वा सच यह भी है कि यह भी कम जिम्मेदार नहीं हैं।

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