ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

जगदंबा दुर्गा का दूसरा स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी के नाम से प्रतिष्ठित है। इन्होंने स्वयं तपस्या के माध्यम से प्राणिमात्र को सन्देश दिया। उन्होंने तपोबल के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। तपस्या के बल पर परमात्मा की कृपा को प्राप्त किया जा सकता है। सामान्य भक्त भी देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना से सर्वसिद्धि को प्राप्त कर सकता है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।कठोर तप से सच्चे साधक विचलित नहीं होते है। साधना में मंत्र जाप का विशेष महत्व होता है-दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

ब्रह्मचारिणी कठोर तप की प्रतीक है। ब्रह्म का भाव तपस्या से है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप,त्याग,वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली है। यह जप की माला व कमण्डल धारणी करती है। पूर्वजन्म में इन्होंने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। नारद जी की प्रेरणा से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। कठिन तपस्या के कारण वह तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी रूप में प्रतिष्ठित हुईं। इनकी मनोकामना पूर्ण हुई।

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