राजेश श्रीवास्तव
सियासत की भाषा भी अनोखी होती है और इसकी समझ रखने वालों की बुद्धि भी तीक्षण होती है। अभी बिहार में लगभग आधी सीटों पर चुनाव बाकी है। पहले चरण का मतदान हो चुका है दूसरा चरण 11 तारीख को होगा। बिहार में लंबे समय बाद 65 फीसद मतदान हुआ है। इस बढ़े हुए मतदान के बाद सभी दल अपनी-अपनी जीत की दावेदारी ठोंक रहे हैं। लेकिन एक दिलचस्प तथ्य यह सामने आया है कि जो एनडीए यानि भाजपा और जदयू गठबंधन 220 सीटों पर जीतने का ऐलान कर रहा था अब वह खुद ही 150-160 सीटों पर आ गया है। शनिवार को अमित शाह ने खुद ही कह दिया कि हम लगभग डेढ़ सौ सीटों पर चुनाव जीत रहे हैं। ऐसे में समझने की जरूरत है कि अगर पहले चरण के बाद भाजपा के चाणक्य अमित शाह अपनी सीटें 60 घटा चुके हैं तो दूसरे चरण के बाद भी अगर इतनी ही सीटें उनके अपने आंकड़े के हिसाब से कम हो गयीं तो चुनाव कहां जाकर रुकेगा।
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बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चरण में शामिल 121 सीटों पर छह नवंबर को वोटिग हो चुकी है और 11 नवंबर को दूसरे चरण में 122 सीटों पर मतदान होगा। फिलहाल पहले चरण के मतदान के बाद से राजनीतिक दल अलग-अलग दावे कर रहे हैं। यदि इन सभी दावों पर विश्वास कर लें तो बिहार में दोनों प्रमुख गठबंधन सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी दलों का महागठबंधन सरकार बनाने जा रहा है! महागठबंधन पहले चरण की आधी से अधिक सीटों पर विजय मिलने का दावा कर रहा है। बीजेपी जो पहले बिहार की 223 में से एनडीए के 200 से अधिक सीटें जीतने की दावा कर रही थी, पहले चरण के बाद थोड़ी नीचे उतर आई है। वह अब 160 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही है। महागठबंधन में शामिल कांग्रेस का दावा है कि पहले चरण में एनडीए का सफाया हो गया है और बीजेपी कह रही है कि महागठबंधन का सूपड़ा साफ हो गया है। दरअसल बिहार की जनता बदलाव चाहती है और यह बहुत स्पष्ट है। जनता ऊब चुकी है, थक चुकी है और इस बार ध्यान भटकाने वाली बातें नहीं चल रही हैं। जनता सभी नेताओं और पार्टियों को कह रही है कि हमारी बात करो, हमारे विकास की बात करो, हमारे भविष्य की बात करो। जहां-जहां भी हम गए, हर व्यक्ति परिवर्तन के मूड में है और परिवर्तन होगा क्योंकि नौजवान अपने भविष्य के लिए परेशान है, किसान अपनी लागत-मूल्य के लिए परेशान है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्णिया में कहा कि इस चुनाव में दो खेमे लगे हैं, एक ओर बिखरा हुआ ठगबंधन है और दूसरी ओर पांच पांडवों की तरह एनडीए है। आधे बिहार ने वोट डाल दिए हैं। पहले चरण के चुनाव में लालू और राहुल की पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है। बिहार में 160 से ज्यादा सीटों के साथ एनडीए की सरकार बनने वाली है। मोदी जी और नीतीश बाबू के नेतृत्व में बिहार बहुत आगे बढ़कर एक विकसित राज्य बनने जा रहा है। अमित शाह ने कटिहार में भी यही दावा किया। पहले चरण के मतदान से पहले बीजेपी 220 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही थी। बिहार में दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को होगा। इस चरण में 122 सीटों पर वोटिग होने के बाद एग्जिट पोल के अनुमान सामने आएंगे जो अगली सरकार को लेकर संकेत देंगे। फिलहाल राजनीतिक दलों के दावे जारी हैं- ‘दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है।’यह दावे कितने सच, कितने झूठ हैं, यह 14 नवंबर को जनता का फैसला सामने आने पर ही पता चलेगा।
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यहां समझने की जरूरत भी है कि पहले चरण में शामिल 18 जिलों की 121 सीटों पर सन 2005 में करीब 46 प्रतिशत, 2010 में 52.6 प्रतिशत, 2015 में 56.8 प्रतिशत और 2020 में 57 प्रतिशत मतदान हुआ था। बिहार में इस बार पहले चरण के मतदान ने पिछले 20 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि दूसरे चरण में भी मतदान पिछले चुनाव से ज्यादा हो सकता है। वोटिग का बढ़ना किस ओर इशारा करता है? यह मौजूदा सरकार के पक्ष में है या उसके खिलाफ है? आम तौर पर माना जाता है कि मत प्रतिशत का बढ़ना मौजूदा सरकार के खिलाफ होता है, लेकिन यह भी सच है कि ऐसा हमेशा नहीं होता। बिहार के पिछले विधानसभा चुनावों के पहले चरण के वोटिग के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह कुछ हद तक यह संकेत मिलते हैं कि इस बार मतदाता बदलाव चाहता है। सन 2020 में पहले चरण की 121 सीटों में से आरजेडी 42 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। बीजेपी ने 32 सीटें जीती थीं जबकि जेडीयू के खाते में 23 सीटें आई थीं।
बिहार के 2020 के चुनाव में पहले चरण की 121 सीटों में से आरजेडी 42 सीटों पर विजयी हुई थी। बीजेपी को 32 सीटें मिली थीं। जेडीयू को 23, वामपंथी दलों को 11, कांग्रेस को 8 और अन्य उम्मीदवारों को 5 सीटें मिली थीं। मतदान 2015 के चुनाव की तुलना में करीब दो प्रतिशत ज्यादा हुआ था। साल 2020 के चुनाव में राज्य की कुल 243 सीटों में से आरजेडी को 75 सीटें और 23.1 प्रतिशत वोट मिले थे। जेडीयू को 43 सीटें और 15.3 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी को 74 सीटें और 19.4 प्रतिशत वोट, कांग्रेस को 19 सीटें और 9.4 फीसदी वोट मिले थे। अन्य उम्मीदवारों को 32 सीटें और 32.5 प्रतिशत वोट मिले थे। बिहार में गठबंधनों के आंकड़ों को देखें तो 2020 में एनडीए को 122 और महागठबंधन को 114 सीटें मिली थीं। साल 2015 में एनडीए को 129 और महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं। आम तौर पर माना जाता है कि जब चुनाव में मतदान बढ़ जाए तो यह सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ होता है। माना जाता है कि ज्यादा वोटिग का मतलब एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर हावी है यानि सत्ता में मौजूदा पार्टी से नाराजगी के कारण ज्यादा वोट डाले गए हैं। सिर्फ एक-दो प्रतिशत वोटों का अंतर भी नजीजे बदल सकता है। हालांकि बीते कुछ सालों में देखा गया है कि एंटी इन्कम्बेंसी से अधिक प्रो-इन्कम्बेंसी के कारण मतदान में वृद्धि हुई। सवाल यह उठता है कि लोग मतदान नाराजगी के कारण (निगेटिव वोटिग) कर रहे हैं या सरकार को समर्थन देने के लिए कर रहे हैं।
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कम मतदान का अर्थ यह भी होता है कि, मतदाता उदासीन है और वह स्थतियों में बदलाव का इच्छुक नहीं होता है, जबकि ज्यादा वोटिग का मतलब बदलाव की चाहत है। कई बार मिलाजुला रुझान भी देखने में आता है। हिमाचल प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ा था और सरकार बदल गई थी। बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड में सन 2019 में 2014 की तुलना में जिन 17 सीटों पर वोटिग का प्रतिशत बढ़ा था, उनमें से 12 सीटों पर तत्कालीन विजयी दलों को हार का सामना करना पड़ा था। विशेषज्ञ मानते हैं कि कम या अधिक मतदान का सत्ता के विरोध या समर्थन से कोई संबंध नहीं होता। हालांकि यदि अंतर 6 से 7 फीसदी का हो तो इसे मतदाताओं की प्रतिक्रिया से जोड़कर देखा जा सकता है। यह आम तौर पर तब देखा जाता है जब कोई सत्ता विरोधी लहर हो या फिर किसी के पक्ष में जनता की सहानुभूति हो। बिहार में इस बार मतदान बढ़ने को सिर्फ सत्ता के विरोध, या सत्ता के समर्थन से इसलिए भी नहीं जोड़ा जा सकता क्योंकि राज्य में एसआईआर के तहत मतदाताओं की संख्या में कम आई है।
