राजेन्द्र गुप्ता
प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होता है। इस शुभ अवसर पर क्रमशः संकष्टी और विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। संकष्टी और विनायक चतुर्थी पर भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा की जाती है। साथ ही मनचाहा वरदान पाने के लिए चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। संकष्टी और विनायक चतुर्थी के दिन व्रत रखने वाले साधकों पर भगवान गणेश की विशेष कृपा बरसती है। उनकी कृपा से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त संकटों से मुक्ति मिलती है।
कब है विनायक चतुर्थी?
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के अगले दिन विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। इस साल 25 अक्टूबर को विनायक चतुर्थी है। इस शुभ अवसर पर भगवान गणेश की पूजा की जाएगी। साथ ही चतुर्थी तिथि का व्रत रखा जाएगा।
विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, 25 अक्टूबर को देर रात 01 बजकर 19 मिनट पर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी की शुरुआत होगी। वहीं, 26 अक्टूबर को सुबह 03 बजकर 48 मिनट पर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि समाप्त होगी। चतुर्थी तिथि पर चंद्र दर्शन किया जाता है। इसके लिए 25 अक्टूबर को विनायक चतुर्थी मनाई जाएगी।

विनायक चतुर्थी शुभ योग
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में शिव परिवार की पूजा की जाएगी। इस शुभ अवसर पर शोभन और रवि योग का संयोग है। भद्रावास योग का संयोग रात भर है। इन योग में भगवान गणेश की पूजा करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होगी।
विनायक चतुर्थी का धार्मिक महत्व
भगवान गणेश को ‘विघ्नहर्ता’ कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से व्रत और पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट, बाधाएं और संकट दूर हो जाते हैं। इस व्रत के प्रभाव से घर में सुख-समृद्धि, धन-वैभव और ऐश्वर्य का आगमन होता है। भगवान गणेश को बुद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है। यह व्रत रखने वाले भक्तों को भगवान गणेश ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। जो श्रद्धालु इस दिन श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। विनायक चतुर्थी के दिन दान-पुण्य करना भी बहुत ही शुभ माना जाता है, इसलिए अपनी क्षमता अनुसार अन्न और धन का दान अवश्य करें।
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विनायक चतुर्थी पूजा विधि
स्नान और संकल्प : सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा शुरू करने से पहले व्रत का संकल्प लें।
गणेश स्थाना : घर के पूजा स्थल पर एक साफ चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
पूजा सामग्री अर्पित करें : भगवान गणेश को रोली, चंदन, कुमकुम का तिलक लगाएं। उन्हें लाल रंग के फूल (विशेषकर गुड़हल), अक्षत (चावल), दूर्वा (घास) अर्पित करें। दूर्वा गणेश जी को बहुत ही प्रिय है।
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भोग और मंत्र जाप : गणेश जी को मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। साथ ही, उन्हें शुद्ध घी और गुड़ भी अर्पित करें। पूजा के दौरान ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
कथा और आरती : विनायक चतुर्थी की कथा का पाठ करें और अंत में भगवान गणेश की भावपूर्ण आरती करें।
व्रत का पारण : दिन भर उपवास रखें। संध्याकाल में चंद्रमा के दर्शन कर उन्हें अर्घ्य दें (पानी में चंद्रमा की परछाई देखें, सीधे चंद्रमा को देखने से बचें) और फिर व्रत का पारण करें।
प्रसाद वितरण : पूजा के बाद प्रसाद सभी लोगों में वितरित करें।
