
शरद पूर्णिमा रात में कृष्ण रचाई रास।
चंदा देख विभोर हो की अमृत बरसात।।१।।
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सभी वनस्पतियां जगीं, किया अमृत रस पान।
रोग निरोधक हो गई,कर सोमामृत पान।।२।।
प्रेम पगी गोपी चली सुन मुरली की तान ।
क्लीं सुधा बरसा रहे कृष्ण लिए मुसकान।।३।।
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यमुना की कल कल ध्वनि खिले पुष्प चहुं ओर।
चार चार चंदा उगे चितवत नंद किशोर।।४।।
राधा चितवत श्याम को, श्याम तकें चहुंओर।
नभ से चितवत चंद्रमा यमुना बीच अजोर।।५।।

गोपीश्वर भी चल पड़े महारास की ओर।
सभी देव गोपी बने ऋषि मुनि भए विभोर।।६।।
कामदेव लज्जित भया नहीं मिला कोई ठौर।
सबके चित्त चुरा लियो नटवर नंद किशोर।।७।।
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महारास की रात में भूलि गयो धन धाम।
रसमाती गोपी फिरें लै लै इक घनश्याम।।८।।
लीला यूं हरि ने कियो उमड्यो प्रेम अथाह।
कालिंदी भी भूलि गै अपनो प्रेम प्रवाह।।९।।
