राहुल के मंच से अखिलेश ने साधा यूपी, तेजस्वी को CM चेहरा बनाकर खेला बड़ा दांव

अजय कुमार                               

लखनऊ। बिहार की सियासत इस समय चुनावी गर्माहट के दौर से गुजर रही है। विधानसभा चुनाव की तारीख़ों का ऐलान अभी भले ही नहीं हुआ है, लेकिन पूरे राज्य में चुनावी माहौल अपने चरम पर है। इस माहौल को और तेज करने का काम राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की निकाली गई ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने कर दिया है। 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई यह यात्रा लगभग 16 दिनों तक बिहार की सड़कों पर चलती रही और 23 जिलों के करीब 1300 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद 1 सितंबर को पटना में भव्य समापन के साथ समाप्त हुई। इस यात्रा का मकसद सिर्फ भीड़ जुटाना या रैलियां करना नहीं था, बल्कि यह सीधे तौर पर मतदाता सूची में गड़बड़ियों और मताधिकार को लेकर चुनाव आयोग पर दबाव बनाने की कवायद के रूप में पेश की गई। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र बचाने की कवायद बताया तो सत्तारूढ़ एनडीए ने इसे जनता को गुमराह करने वाला अभियान कहा। लेकिन इन आरोप-प्रत्यारोपों से इतर यह तय है कि इस यात्रा ने बिहार की सियासी फिजा में एक नया रंग भर दिया है।

यात्रा की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि इसमें कांग्रेस और आरजेडी के साथ-साथ समाजवादी पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे दलों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। यात्रा के अंतिम दिन पटना में हुए समापन समारोह में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ अखिलेश यादव भी मौजूद थे। अखिलेश की मौजूदगी ने इस यात्रा को बिहार की राजनीति के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति से भी जोड़ दिया। अखिलेश यादव ने खुले मंच से तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने का समर्थन किया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि बिहार में तेजस्वी यादव से बेहतर मुख्यमंत्री कोई नहीं हो सकता और वह हमेशा तेजस्वी के साथ खड़े रहेंगे। यह बयान न केवल बिहार की राजनीति को प्रभावित करता है बल्कि यूपी की राजनीति के लिए भी एक संकेत है।

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दरअसल कांग्रेस और RJD के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर स्थिति अभी साफ नहीं है। कांग्रेस लगातार इस सवाल पर चुप्पी साधे हुए है कि महागठबंधन की ओर से सीएम चेहरा कौन होगा। तेजस्वी यादव ने कई बार राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताया, लेकिन कांग्रेस ने कभी यह नहीं कहा कि वह तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार मानती है। इस असमंजस की स्थिति में अखिलेश यादव का तेजस्वी के समर्थन में आना राहुल गांधी और कांग्रेस पर दबाव बनाने जैसा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अखिलेश का यह कदम सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह 2027 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए भी एक संकेत है। अखिलेश जानते हैं कि जिस तरह कांग्रेस ने बिहार में सीएम चेहरे पर सस्पेंस रखा है, वैसा ही कुछ यूपी में भी हो सकता है। इसलिए उन्होंने पहले ही अपना पत्ता खोल दिया ताकि कांग्रेस भविष्य में किसी तरह का राजनीतिक दांव न खेल सके। ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान जनता का जो उत्साह देखने को मिला, उसने विपक्ष को नई ताकत दी। पटना में यात्रा के समापन मौके पर ‘गांधी से अंबेडकर मार्च’ आयोजित किया गया, जिसमें राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, टीएमसी के नेता और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान समेत कई विपक्षी नेता शामिल हुए। यह मार्च गांधी मैदान से शुरू होकर अंबेडकर पार्क तक पहुंचा। इस यात्रा और मार्च के जरिए विपक्ष ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह सिर्फ चुनावी गठजोड़ तक सीमित नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा और मतदाताओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए भी एकजुट है।

इस यात्रा का एक बड़ा राजनीतिक नतीजा यह भी रहा कि कांग्रेस को बिहार में अपनी ‘बर्गेनिंग पावर’ बढ़ाने का मौका मिला। अब तक महागठबंधन में कांग्रेस को अक्सर राजद की बी-टीम कहा जाता रहा है, लेकिन इस यात्रा ने कांग्रेस को भीड़ जुटाने और एजेंडा सेट करने की ताकत दिखाई। राहुल गांधी के भाषणों में लगातार ‘वोट चोरी’ और ‘लोकतंत्र बचाओ’ का मुद्दा रहा, जिससे यह संदेश गया कि कांग्रेस सिर्फ सहयोगी नहीं बल्कि नेतृत्वकारी भूमिका निभाने का दावा कर रही है। यह बात आरजेडी और कांग्रेस दोनों के रिश्तों में नया समीकरण गढ़ सकती है। हालाँकि यात्रा विवादों से भी अछूती नहीं रही। दरभंगा में यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी मां को लेकर की गई विवादित टिप्पणी ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया। भाजपा ने इसे विपक्ष की हताशा करार दिया और कहा कि महागठबंधन का कोई नेता सीएम का चेहरा घोषित नहीं कर पा रहा क्योंकि तेजस्वी यादव भ्रष्टाचार के मामलों में आरोपी हैं और एजेंसियां जांच कर रही हैं। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने कहा कि राहुल गांधी की चुप्पी इस बात का सबूत है कि महागठबंधन अंदरूनी विरोधाभासों से घिरा हुआ है।

वहीं विपक्षी खेमे का दावा है कि जनता अब पूरी तरह उनके साथ है। तेजस्वी यादव ने कहा कि जैसे यूपी में अखिलेश यादव ने बीजेपी के ‘400 पार’ के नारे को आधे पर रोक दिया, वैसे ही बिहार में भी विपक्ष मिलकर बीजेपी को रोक देगा। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार की जनता जागरूक है और इस बार वोट की ताकत से सत्ता परिवर्तन करेगी। राहुल गांधी ने भी कहा कि यह यात्रा बिहार की जनता के हक की लड़ाई है और अब जनता ही तय करेगी कि लोकतंत्र की रक्षा कैसे करनी है। अगर इस यात्रा को व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है। यह विपक्ष के लिए एक प्रयोगशाला की तरह है। कांग्रेस, राजद, सपा और झामुमो जैसे दल इस यात्रा के जरिए अपने मतदाताओं को यह दिखाना चाहते हैं कि वे सिर्फ गठबंधन की राजनीति नहीं कर रहे बल्कि जनता के अधिकारों के लिए भी संघर्षरत हैं। दूसरी ओर भाजपा इसे सिर्फ चुनावी नौटंकी बताकर खारिज करने में लगी है। लेकिन यह इनकार नहीं किया जा सकता कि इस यात्रा ने विपक्ष को एकजुटता का मंच जरूर दिया और भीड़ ने यह साबित किया कि विपक्ष का संदेश जनता तक पहुंच रहा है।

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अब सवाल यह है कि क्या यह भीड़ वोट में तब्दील होगी? राजनीतिक इतिहास बताता है कि भीड़ जुटाना और वोट पाना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। बिहार में जातिगत समीकरण और स्थानीय मुद्दे अभी भी सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। आरजेडी का यादव-मुस्लिम समीकरण, कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक, सपा का सीमित प्रभाव और झामुमो की मौजूदगी ये सब मिलकर चुनाव में कितना असर डालेंगे, यह कहना अभी मुश्किल है। लेकिन यह तय है कि इस यात्रा ने चुनावी नैरेटिव को बदलने का काम किया है। अब चुनाव सिर्फ विकास या रोजगार के मुद्दे पर नहीं, बल्कि मताधिकार और लोकतंत्र की रक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी लड़ा जाएगा। कांग्रेस और राजद की इस जोड़ी ने अपने अभियान से भाजपा पर दबाव जरूर बढ़ाया है, लेकिन भाजपा का संगठनात्मक ढांचा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अनुभव अभी भी महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है। भाजपा लगातार यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि विपक्ष सिर्फ परिवारवाद और भ्रष्टाचार की राजनीति करता है, जबकि एनडीए विकास और सुशासन का मॉडल लेकर चुनाव मैदान में उतरेगा।

आखिरकार, बिहार की इस ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने यह साफ कर दिया है कि विधानसभा चुनाव अब सीधी टक्कर का रूप ले चुके हैं। एक तरफ एनडीए अपने मजबूत संगठन और शासन के अनुभव पर भरोसा कर रहा है, तो दूसरी तरफ महागठबंधन अपने जनसमर्थन और एकजुटता का प्रदर्शन कर रहा है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी के साथ अखिलेश यादव की मौजूदगी ने इस टक्कर को और रोचक बना दिया है। आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि यात्रा की यह सियासी ऊर्जा वास्तविक वोटों में तब्दील होती है या नहीं, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इसने बिहार की राजनीति को नई दिशा देने का काम किया है और 2025 के विधानसभा चुनाव अब पहले से कहीं ज्यादा दिलचस्प हो गए हैं।

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