राजेश श्रीवास्तव
प्रधानमंत्री मोदी सात साल बाद उस धरती पर पहुंचे हैं जहां से हमें पाकिस्तान से ज्यादा खतरा है। पाकिस्तान अगर हमारा घोषित दुश्मन है तो चीन उससे कम नहीं है। हमारी आबादी के बड़े हिस्से पर आज चीन का कब्जा है तो हमारी व्यवस्था को चरमराने में भी चीन की कम भूमिका नहीं है। करीब नौ महीने पहले अक्टूबर 2024 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से पीएम मोदी की मुलाकात रूस में हुई थी । तब से अब तक बहुत परिवर्तन आया है। अभी पिछले दिनों पाकिस्तान के भारत पर हमले के दौरान भी चीन की भूमिका भारत के विरोध में ही दिखायी पड़ रही है। ऐसे में पीएम मोदी की चीन यात्रा को लेकर देश के अदंर ही सियासत में चर्चा तेज हो गयी है। 2018 के बाद यह पहली बार है जब मोदी चीन पहुंचे हैं और और लद्दाख सीमा विवाद के बाद भी यह पहली यात्रा है। हालांकि, अक्टूबर 2024 में रूस के कजान में एक समिट के दौरान मोदी और शी जिनपिग की साइडलाइन मुलाकात हो चुकी है।
ये मुलाकात पांच साल बाद हुई थी और इसमें सीमा पर शांति बनाए रखने पर दोनों नेता सहमत हुए थे। मोदी ने उस मुलाकात में साफ कहा था, ‘सीमा पर शांति और स्थिरता दोनों देशों की प्राथमिकता होनी चाहिए। हमने सीमा से जुड़े मुद्दों पर जो सहमति बनाई है, उसका पालन जरूरी है। भरोसा, सम्मान और संवेदनशीलता हमारे रिश्ते की बुनियाद होनी चाहिए।’ जवाब में शी जिनपिग ने कहा था कि हमें मतभेदों को सही तरीके से संभालना होगा। संचार और सहयोग बढ़ाना होगा। भारत और चीन को विकासशील देशों की एकता का उदाहरण बनना चाहिए।
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लेकिन तब से पिछले नौ महीने में गंगा में बहुत पानी बह चुका है। बहुत बदलाव हो चुके हैं। जून 2025 में भारत-चीन के बीच व्यापार और आर्थिक मुद्दों पर बातचीत हुई। दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि व्यापारिक सहयोग बढ़े और डायरेक्ट फ्लाइट्स दोबारा शुरू हों जो 2020 से बंद हैं। अप्रैल में चीन के क़िंगदाओ में हुई डिफेंस मीटिग में रक्षा मंत्री राजनाथ सिह ने साझा बयान पर साइन करने से इनकार कर दिया। वजह थी 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले को उस दस्तावेज में शामिल न करना। दस्तावेज में सिर्फ पाकिस्तान के एक रेल हाइजैक को शामिल किया गया था, जबकि भारत के आतंकी हमले का जिक्र नहीं था।
जब अमेरिका ने टीआरएफ को आतंकी संगठन घोषित किया, जो कि पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ले चुका है, तब चीन ने अचानक सुर बदले। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, हम हर तरह के आतंकवाद की निदा करते हैं। 22 अप्रैल का हमला निदनीय है। क्षेत्रीय देशों को मिलकर आतंकवाद से लड़ना होगा।’ ये वही चीन है जो हमेशा पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क का बचाव करता रहा है। एससीओ में पाकिस्तान को लेकर चीन का झुकाव अभी भी भारत को खटकता है। ऑपरेशन सिदूर के दौरान भी चीन ने पाकिस्तान को कूटनीतिक समर्थन दिया था। मगर धीरे-धीरे चीन अब भारत के प्रति लचीला रुख दिखा रहा है। लद्दाख में युद्ध जैसी स्थिति अब नहीं है, लेकिन भारत अब भी सतर्क है। चीन ने सीमाओं पर कुछ कदम पीछे लिए हैं, लेकिन पूरी तरह से भरोसा बहाल नहीं हुआ है। अब जब पीएम मोदी चीन पहुंच ही गये हैं तो निश्चित रूप से यह यात्रा सिर्फ एससीओ तक सीमित नहीं रहेगी। यह भारत-चीन के नए समीकरणों की परीक्षा भी होगी। दुनिया अब बहुपक्षीय हो रही है। अमेरिका और चीन की खींचतान में भारत की भूमिका अहम हो गई है। ऐसे में बीजिग की जमीन पर भारत की आवाज कितनी बुलंद होगी, यह आने वाला वक्त बताएगा।
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हाल ही में अमेरिका ने चीन के कई सामानों पर 125% से भी अधिक का टैरिफ लगाया है और भारत पर भी 50% तक के टैरिफ लगा दी है, जिसने भारत और चीन दोनों को प्रभावित किया है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन दौरा बेहद महत्वपूर्ण है। वैश्विक नेता की छवि बना चुके पीएम मोदी की मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिग से भी होगी। कयास लगाए जा रहे हैं कि एक बार फिर से दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध बहाल हो सकते हैं और अमेरिका को स्पष्ट मैसेज भी चला जाएगा कि दोनों एशियाई शक्तियां उसके टैरिफ वॉर के सामने झुकेंगी नहीं। हालांकि, भारत और चीन के रिश्ते हमेशा से उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। एक तरफ जहां दोनों देश दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से हैं, वहीं दूसरी ओर उनके बीच सीमा विवाद और सैन्य तनाव बना रहता है। लेकिन जब-जब चीन से करीबी बढ़ी है, तब-तब दगाबाजी भी मिली है। हालांकि, गलवान घाटी की हिसक झड़प के बाद मोदी की चीन यात्रा सिर्फ एक राजनयिक दौरा नहीं है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक अवसर है, जो दोनों देशों के भविष्य की दिशा तय कर सकता है। हो सकता है कि भारत-चीन अपनी मैत्री को अगले लेवल तक ले जाएं और एकजुट होकर दुनिया को दिखा दें कि एशिया के दो दिग्गज एक साथ हैं। हो सकता है कि इस दौरे के बाद भारत अपनी शर्तों पर एक बार फिर से टिकटॉक, यूसी ब्राउजर जैसी तमाम चीनी ऐप्स को एंट्री भी दे दे।
लेकिन क्या ये दोस्ताना वाकई में पाक-साफ होगा, क्योंकि चीन अक्सर दगाबाजी करने में आगे रहता है। इसके लिए अगर हम हम पिछले एक दशक के संबंधों को ही देखें तो बहुत कुछ साफ हो जाता है। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत-चीन के रिश्ते के बीच एक जटिल पैटर्न दिखता है. सितंबर 2014, मई 2015 में पीएम मोदी चीन गए, जहां व्यापारिक समझौते हुए। लेकिन संबंधों में उतार-चढ़ाव आने में देर नहीं लगी। 2017 में डोकलाम में लंबा सैन्य गतिरोध हुआ, जिसका भारतीय सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब दिया। इसके बाद अप्रैल 2018 में वुहान और अक्टूबर 2019 में मामल्लपुरम में हुए अनौपचारिक शिखर सम्मेलनों ने संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश की। लेकिन चीन ने एक बार फिर से धोखेबाजी की। मई-जून 2020 में गलवान घाटी में हुई हिसक झड़प ने दोनों देशों के संबंधों को दशकों के सबसे निचले स्तर पर ला दिया। इसके जवाब में भारत ने चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए और निवेश के नियमों को सख्त किया। ऐसे में चीन दगा नहीं करेगा, कहा नहीं जा सकता।
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