भाइयों से प्यार दुलार और रक्षा का पर्व है भाई दूज यानी यम द्वितीया,

अनिता मिश्रा दुबे, हैदराबाद
अनिता मिश्रा दुबे, हैदराबाद

लखनऊ। भाई-दूज की पूजा दीपावली के बाद द्वितीया तिथि पर भाइयों की कुशलता और भाइयों द्वारा बहनों की रक्षा के लिए किया जाने वाला एक पर्व भी है। इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। यूँ तो भाई दूज मनाने के पीछे की तमाम मान्यताएं हैं। जिनमे से यह एक सबसे ज्यादा प्रचलित कथा है कि यमराम अपनी प्रिय बहिन यमुना से मिलने उसके घर कार्तिक मास की शुक्ल द्वितीया को गए थे तभी से इसे भाई दूज के नाम से जाना जाने लगा। परंतु ये जानकारी मुझे बहुत समय बाद हुई।

मैने तो बचपन से अपनी दादी जिन्हें हम प्यार से अच्चू अम्मा कहते थे और अपनी प्यारी मम्मी से भाई-दूज की अलग ही कहानी सुनी थी। न सिर्फ कहानी सुनी थी साथ में दूज का घर के आँगन में चित्र चावल के आटे से बनाना और पूजना भी सीखा। सीखा क्या जैसा देखा वैसा अपने आप करने लगी। शुरू में मम्मी दूज की पूजा भूमि पर बनाती थीं फिर पता नही कब ये जिम्मेदारी मैने खुद से ले ली और बनाने लगी। पूजा रखना उसकी तैयारी करना सहज स्वभाव में आ गया। पूजा की कहानी हाथ रंगते और पाग बनाते समय हर साल मम्मी सुनाती थी। कहानी उनकी अपनी अवधी-बैसवारी डायलेक्ट में होती थी जो मन को बहुत भाती थी।

कहानी ऐसे थी कि : बहुत समय पहले सात भाई थे। उनकी एक दुलारी बहिन थी, नाम था उसका सताना। भाइयों को अपनी जान से भी प्यारी थी सताना। एक बार सातों भाई व्यापार के लिए दूसरे शहर बृंदाबन जा रहे थे पर उनको अपनी सताना की चिंता सता रही थी। भाभियों ने आश्वासन दिया कि आप लोग जाओ, सताना का हम पूरा ध्यान रखेंगे। खैर भाई भाभियों को पूरी हिदायत दे कर चले गए। उनके सामने ही सताना ने दूध-भात खा कर कटोरा पनारे (पुराने समय का सिंक) में रखा और भाइयों के साथ ही खेलने निकल गई। थोड़ी देर बाद सताना खेल कर वापस आई और भाभियों से बोली भाभी खाने को दो, भूख लगी है।

भाभियों ने आपस में पहले से ही सलाह कर रखी थी कि बहुत दुलारी बना रखा है भाइयों ने सताना को वो ऐसा दुलार नही करने वाली हैं। उन्होंने कहा ऐसे कैसे खाना मिलेगा पहले कुछ काम करो। सताना ने पूछा क्या करना है तो भाभी बोली जाओ बिन रस्सी बंधना के ईंधन (चूल्हे की लकड़ी) ले कर आओ। अब सताना वन में गई, लकड़ी बीन कर जैसे ही सर पर रखे वो बिखर कर गिर जाएं। परेशान हो कर सताना रोने लगी। रोते रोते बोली “भैया गए वृंदावन मा, सताना रोवें जंगल मा। उसको रोते सुन कर वहां नाग देवता आ गए और पूछने लगे बिटिया क्यों रो रही हो? सताना बोली मेरे भैया वृंदावन गए हैं और मेरी भाभी मुझे खाना नहीं दे रही है और मुझे बोल रही है कि बिन रस्सी बिन बंधन के लकड़ी लेकर आओ । मैं जैसे ही लकड़ी ले रही हूं यह बिखर करके गिर जा रही है। तो नाग देवता बोले, अच्छा बिटिया एक काम करो तुम लकड़ी उठाओ मैं धीरे से इसमें लिपट जाऊंगा, तुम अपने सर पर लेकर जाओ और रसोई में रख देना मैं धीरे से निकल जाऊंगा। इस तरह से सताना नाग देवता की मदद से बिना रस्सी बिना बंधन के लकड़ी घर ले गई। घर ले जाकर उसने भाभी से बोला भाभी अब खाना दे दो मैं तो लकड़ी ले आई। भाभी लोग देख करके आश्चर्य चकित रह गई। उन्होंने तो ठान ली थी कि वह सताना को तंग करके ही रहेंगे। उन्होंने बोला अभी कहाँ, अभी एक काम और करो यह धान लेकर जाओ और इसमें से चावल निकाल कर लेकर आओ। सताना धान लेकर गई और उसमें से चावल निकालने लगी।

चावल निकालते निकालते वह बेचारी रोती जाए और बोलती जाए, भैया गए वृंदावन मा, सताना रोए जंगल मा।उसका रोना सुनकर के वहां पर बहुत सारी चिड़िया थी जो दाना चुग रही थी। वहां आई और उन्होंने पूछा, क्यों रो रही हो बिटिया ? सताना ने अपनी कहानी सुनाई और  बोली भैया गए वृंदावन मा, सताना रोवे जंगल मा। मेरी भाभी खाना मांगने पर बोलती है कि पहले इस धान में से चावल निकाल कर लेकर आओ। चिड़ियों को उस पर दया आ गई । उन्होंने कहा, अरे तुम रो मत हम धान में से चावल निकाल देंगे। जल्दी से सारी चिड़ियों ने मिलकर के उसमें से चावल निकाल दिया। सताना चावल लेकर के घर पहुंची भाभियों से बोली भाभी चावल ले आई हूँ, अब तो मुझे खाना दे दो। भाभी लोग और आश्चर्यचकित; भाभियों ने कहा रुको अभी रुको और उन्होंने चावल गिन कर कहा कि अरे इसमें से तो एक दाना चावल कम है। ये ले कर आओ।  सताना  वापस जंगल में गई फिर रोने लग गई फिर चिड़िया आई बोली अब क्या हुआ, अब क्यों रो रही हो तो सताना ने कहा मेरी भाभी कह रही है कि इसमें एक चावल कम है तो चिड़ियों ने कहा पक्का इस चोर चिड़िया ने तुम्हारा चावल अपने गले में दबा लिया होगा।

उन्होंने उस चिड़िया का गला खोल कर देखा तो एक चावल उसमें फंसा हुआ था। सतना को उन्होंने वह चावल दिया। सताना घर आ गई। भाभी लोग और भी आश्चर्यचकित; भाभियों ने बोला अभी रुको अभी नहीं। अभी एक काम करो तुम ये चलनी लेकर जाओ और इसमें पानी भरकर के लेकर आओ। सताना बेचारी चलनी लेकर गई नदी किनारे। वह जैसे ही उसमें पानी भरती, वैसे ही सारा पानी बह जाए। अब वह फिर रोने लग गई फिर बोले भैया गए वृंदावन मा, सताना रोवे जंगल मा। वहीं पर चीटियां अपना घर बना रही थी रोना सुनकर चीटियां सताना के पास आई उन्होंने पूछा तुम क्यों रो रही हो? सताना ने बताया कि मेरी भाभी मुझे खाना नहीं दे रही है और कह रही है कि इस चलनी में पहले पानी भर के लाओ।मैं जैसे ही पानी भर रही हूं वैसे ही यह तो गिर जा रहा है। चिटियों ने कहा तुम चिंता मत करो हम चलनी के हर छेद में बैठ जाएंगे और पानी रुक जाएगा। तुम पानी भर लो। चीटियों के कहने पर सताना ने चलनी में पानी भर लिया और घर लेकर आ गई फिर भाभियों से बोली भाभी में पानी ले आई हूं अब मुझे खाना दे दो ।भाभिया और दंग रह गई उन्होंने बोला अभी नहीं अभी एक काम करो यह रुई कपास लेकर जाओ और इसमें आग लेकर आओ सताना बेचारी फिर से कपास में आग लाने की कोशिश करने लगीl  लेकिन कपास में भला आज कैसे ली जा सकती थी।जैसे ही वह कपास में आज रखे कपास जल जाए। अब वह फिर से फूट-फूट करके रोने लगी और रो रो के बोली, भैया गए वृंदावन मा, सताना रोवे जंगल मा। तभी वहीं से शंकर पार्वती भ्रमण के लिए निकले हुए थे। पार्वती जी ने कहा हे नाथ मुझे लग रहा है कि कोई रो रहा है शंकर जी ने कहा अरे इस जंगल में कौन रो रहा होगा । पार्वती जी ने कहा आवाज किसी बालिका की आ रही है।

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शंकर जी और पार्वती वहां पहुंचे उन्होंने उससे पूछा बिटिया क्यों रो रही हो सताना ने अपनी पूरी कहानी बताई और कहा यह कपास में तो आग मैं कभी ले ही नहीं जा पाऊंगी ।शंकर जी ने कहा तुम धीरे से आग रख लो और घर पहुंच पहुंच जाएगी। सताना ने शंकर जी के कहे अनुसार कपास में आग ली और घर पहुंच गई । भाभी एकदम से आश्चर्यचकित रह गई बोली, अरे इसको तो जो कुछ बोलो यह वही करके ले आ रही है। इसको कुछ ऐसा काम देना चाहिए जो यह कभी ना कर पाए । उन्होंने कहा अच्छा तुम एक आखरी काम करो यह काला कंबल लेकर जाओ और इस सफेद कर के लेकर आओ। सताना कंबल लेकर के नदी किनारे गई उसको पटक पटक के उसने पूरी कोशिश की कि उसका रंग बदल जाए लेकिन वो न आज बदले और न कल। रो-रो करके पागल हो गई सताना और बोलती जाए, भैया गए वृंदावन मा, सताना रोवे जंगल मा। लेकिन कंबल ना आज सफेद हो ना कल।

ऐसा करते-करते कई दिन बीत गए थे और भाइयों के वापस आने का समय हो गया था। भाई उसी जंगल से वापस आ रहे थे उनमें से एक भाई ने कहा मुझे लग रहा है यहां पर सताना के रोने की आवाज आ रही है । दूसरा भाई बोला अरे जंगल में सताना क्या कर रही होगी भला !वह खेल कूद कर आराम कर रही होगी घर में ।लेकिन जैसे-जैसे भाई आगे बढ़ते जाएं वैसे-वैसे सताना के रोने की आवाज तेज होती जाए। धीरे-धीरे भाइयों ने आवाज की दिशा में अपने पैर बढ़ाए और देखा कि सताना नदी किनारे कंबल लेकर के पटक-पटक करके रो रही है और कह रही है भैया गए वृंदावन मा, सतना रोवे जंगल मा। यह देखते ही भाइयों को बड़ा दुख हुआ। उन्होंने पूछा सताना तुम यहां क्या कर रही हो? तब सताना ने सारी कहानी बताई और भाइयों ने बोला अच्छा ऐसा किया भाभियों ने। भाइयों ने क्या किया कि अपनी जांघ को चीर करके उसमें सताना को अंदर छिपा लिया और घर पहुंच गए। उनके घर पहुंचते ही उनके स्वागत में किसी ने खटिया बिछाई, किसी ने उस पर चादर बिछाई, कोई पानी लेकर आया तो कोई मिठाई लेकर आया तो कोई पंखा छलने लग गया। भाइयों ने कहा यह सब तो ठीक है लेकिन हमारी प्यारी बहन सताना कहां है? उसे बुलाओ भाभियों ने कहा अरे सताना यहीं कहीं खेल रही होगी। उसके पैर घर में थोड़ी ना टिकते हैं। बाहर खेल रही होगी यह देखो दूध भात खाकर के गई है आ जाएगी थोड़ी देर में। वह वही दूध भात का कटोरा था जिसमें सताना ने भाइयों के जाने वाले दिन खाया था और पनारे में रखा था।

लेकिन भाइयों ने एक भी नहीं मानी और जिद करने लगे कि पहले सतना को बुलाओ तब हम पानी पियेंगे। अब भाभियों में हलचल मच गई सब सताना को ढूंढने लग गई। लेकिन सताना कहीं होती तब ना मिलती ।थोड़ी देर इधर-उधर ढूंढने के बाद भाइयों ने अपनी जांघ चीर कर उसमें से सताना को बाहर निकाल कर रख दिया ।भाभियों ने जब देखा तो उनकी सिटी पिट्टी गुम हो गई ।भाइयों ने तुरंत गड्ढा खोदा और सारी भाभियों को जिंदा दबा दिया। तो जिस तरह से इन सात भाइयों ने अपनी बहन सताना की रक्षा करी भगवान करे सारे भाई अपनी बहनों की रक्षा करें। इस कहानी को हम बचपन में बड़े ध्यान से सुनते थे और सोचते थे कि क्या सचमुच में ऐसे भाई होते हैं आज जब मैं यह कहानी अपनी बिटिया को सुनाती हूं तो वह हंसती है और कहती है ऐसा कहां होता है और ऐसे तो करना भी नहीं चाहिए। लेकिन कहानी का सार यह है कि भाइयों को अपनी बहनों की हर हाल में रक्षा करनी चाहिए। जैसे सात भाइयों की दुलारी सताना रहीं भगवान करे सारी बहनों को ऐसा दुलार मिले।

कथा संकलन:- अनिता मिश्रा दूबे, लखनऊ (वर्तमान निवास हैदराबाद।

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