नवरात्रि के आठवें दिन करे मां महागौरी पूजा जाने पूजा विधि, मंत्र, भोग और रहस्य

पंडित सुधांशु तिवारी
पंडित सुधांशु तिवारी

नवरात्रि के आठवें दिन मां भगवती के आठवें स्वरुप मां महागौरी की पूजा की जाती है। मां महागौरी का स्वरूप गौरा है, इसीलिए मां दुर्गा के इस आठवें स्वरूप का नाम महागौरी पड़ा। मां महागौरी उज्जवल स्वरूपा, धन और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं, मां महागौरी की पूजा से शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप नष्ट हो जाते हैं। माता की कृपा से मन पवित्र होता है और वाणी में सौम्यता आती है। वहीं विधि र्ग्वक पूजा करने से मां महागौरी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं। तो आइए जानते हैं मां महागौरी को क्या चीजें पसंद हैं और उन्हें किस चीज का भोग लगाना चाहिए। साथ ही आज के दिन किस मंत्र का जाप करना चाहिए।

नवरात्र के आठवें दिन महागौरी की पूजा का रहस्य जानें

शारदीय नवरात्र अब अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। आज मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा की जाती है। आठवें दिन महागौरी की पूजा देवी के मूल भाव को दर्शाता है। देवीभागवत पुराण के अनुसार, मां के नौ रूप और 10 महाविद्याएं सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं लेकिन भगवान शिव के साथ उनकी अर्धांगिनी के रूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती हैं। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। नवरात्र की अष्टमी तिथि को विशेष महत्व रखती है क्योंकि कई लोग इस दिन कन्या पूजन कर अपना व्रत खोलते हैं। आइए जानते हैं कि मां महागौरी के बारे में विशेष बातें

इस तरह मां का नाम पड़ा महागौरी

देवीभागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती का जन्म राजा हिमालय के घर हुआ था। देवी पार्वती को मात्र 8 वर्ष की उम्र में अपने पूर्वजन्म की घटनाओं का आभास हो गया है और तब से ही उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी। अपनी तपस्या के दौरान माता केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं। बाद में माता ने केवल वायु पीकर तप करना आरंभ कर दिया। तपस्या से देवी पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ था इसलिए उनका नाम महागौरी पड़ा। इस दिन दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है।

 

कल्याणकारी हैं मां महागौरी

माता की तपस्या की प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे गंगा स्नान करने के लिए कहा। जिस समय मां पार्वती स्नान करने गईं तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाईं और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, जो महागौरी कहलाईं। गौरी रूप में माता अपने हर भक्त का कल्याण करती हैं और उनको समस्याओं से मुक्त करती हैं। जो व्यक्ति किन्हीं कारणों से नौ दिन तक उपवास नहीं रख पाते हैं, उनके लिए नवरात्र में प्रतिपदा और अष्टमी तिथि को व्रत रखने का विधान है। इससे नौ दिन व्रत रखने के समान फल मिलता है।

ऐसा है मां का स्वरूप

देवीभागवत पुराण के अनुसार, महागौरी वर्ण पूर्ण रूप से गौर अर्थात सफेद हैं और इनके वस्त्र व आभूषण भी सफेद रंग के हैं। मां का वाहन वृषभ अर्थात बैल है। मां के दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाला हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशुल है। महागौरी के बाएं हाथ के ऊपर वाले हाथ में शिव का प्रतीक डमरू है। डमरू धारण करने के कारण इन्हें शिवा भी कहा जाता है। मां के नीचे वाला हाथ अपने भक्तों को अभय देता हुआ वरमुद्रा में है। माता का यह रूप शांत मुद्रा में ही दृष्टिगत है। इनकी पूजा करने से सभी पापों का नष्ट होता है।

भोग में मां को चढ़ाएं यह चीज

देवीभागवत पुराण के अनुसार, नवरात्र की अष्टमी तिथि को मां को नारियल का भोग लगाने की पंरपरा है। भोग लगाने के बाद नारियल को या तो ब्राह्मण को दे दें अन्यथा प्रशाद रूप में वितरण कर दें। जो भक्त आज के दिन कन्या पूजन करते हैं, वह हलवा-पूड़ी, सब्जी और काले चने का प्रसाद विशेष रूप से बनाया जाता है। महागौरी को गायन और संगती अतिप्रिय है। भक्तों को पूजा करते समय गुलाबी रंग के वस्त्र पहनना चाहिए। गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक है। एक परिवार को प्रेम के धागों से ही गूथकर रखा जा सकता हैं, इसलिए नवरात्र की अष्टमी को गुलाबी रंग पहनना शुभ माना जाता है।

 

पूजा करने से होती है सौभाग्य की प्राप्ति

जो भक्त इस दिन कन्या पूजन करते हैं, वह माता को हलवा व चना के प्रसाद का भोग लगाना चाहिए। इस दिन कन्याओं को घर पर बुलाकर उनके पैरों को धुलाकर मंत्र द्वारा पंचोपचार पूजन करना चाहिए। रोली-तिलक लगाकर और कलावा बांधकर सभी कन्याओं को हलाव, पूरी, सब्जी और चने का प्रशाद परोसें। इसके बाद उनसे आशीर्वाद लें और समार्थ्यनुसार कोई भेंट व दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। ऐसा करने से भक्त की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मां का यह रूप मोक्षदायी है इसलिए इनकी आराधना करने से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।

मां महागौरी का भोगनवरात्रि के आठवें दिन माता महागौरी को श्रीफल का भोग लगाया जाता है। श्रीफल का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती हैं और संतान प्राप्ति का वरदान देती हैं।

मां महागौरी का मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

इस विधि से करें देवी महागौरी की पूजा

  • सुबह जल्दी उठकर देवी महागौरी की तस्वीर या प्रतिमा की स्थापना किसी साफ स्थान पर करें।
  • शुद्ध घी का दीपक जलाएं और देवी को कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी, चावल, फूल, माला आदि चीजें चढ़ाएं।
  • मनोकामना पूर्ति के लिए नारियल या उससे बनी मिठाई का भोग लगाएं। देवी महागौरी का ध्यान करते हुए आरती करें।

मंत्र

श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥

 

देवी महागौरी की कथा

पुराणों के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कई सालों तक घोर तपस्या की। बिना खाए-पीए लगातार तपस्या करते रहने से उनका रंग काला पड़ गया। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने देवी को पुन: गौरा होने का वरदान दिया। देवी के इसी रूप की पूजा नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर किया जाता है। इसलिए इन्हें महागौरी कहा जाता है।

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