जगदलपुर। 700 साल पहले माचकोट जंगल में एक गाय ने जिस स्थान पर अपना दूध गिराया था वहीं पर शिवलिंग प्रकट हुआ था। यह स्थल अब झाड़ेश्वर महादेव के नाम से चर्चित है। छत्तीसगढ़ और उड़ीसा राज्य की सीमा पर देवड़ा शिवालय बस्तर का ऐसा मंदिर है, जहां साल में दो बार मेला आयोजित किया जाता है। भक्तों की मनौती पूरी होने पर नंदी की प्रतिमाएं अर्पित करने से यहां हजारों मूर्तियों का ढेर लग चुका है। श्रावण मास में भोलेनाथ का दर्शन करने हजारों भक्त यहां रोज पहुंच रहे हैं। संभागीय मुख्यालय से 23 किमी दूर माचकोट जंगल के मध्य यह शिवालय है। मंदिर के ठीक पीछे बड़ा तालाब और नंदीराज का अलग से मंदिर है। यहां प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि तथा कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। जिसमें दोनों राज्यों के लाखों भक्त भोलेनाथ को पंचद्रव्य अर्पित करने पहुंचते हैं। यह शिवधाम बेहतर पिकनिक स्पॉट के रुप में भी विकसित है।
समाज ने ठुकराया वे भोले की शरण में,
देवड़ा मंदिर के पास 15 झोपड़ियों की एक बस्ती है। इस बस्ती में दोनों राज्यों के वे लोग रहते हैं जिन्हें कोढ़ अर्थात कुष्ठ रोग की वजह से परिजनों ने छोड़ दिया है। जन आस्था है कि देवड़ा तालाब में स्नान करने और भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने से चर्म रोग ठीक हो जाता है इसलिए सैकड़ों वर्षो से कुष्ठ मरीज यहां रहते आ रहे हैं।
देवड़ा मंदिर की लोकमान्य कथा
लगभग 700 साल पुरानी बात है । देवड़ा का एक धोरई अर्थात चरवाहा मवेशी चराने माचकोट जंगल आता था। एक गाय भी रोज आती किंतु घर लौटकर दूध नहीं देती थी। गाय का मालिक चरवाहे पर दूध चोरी का आरोप लगाता था। इस बात से चरवाहा परेशान था। वह गाय पर नजर रखने लगा। उसने गौर किया कि गाय रोज चरते – चरते एक जगह पहुंच खड़ी हो जाती है। उसके मन में प्रश्न उठा कि यह गाय रोज एक ही जगह क्यों खड़ी हो जाती है? दूसरे दिन वह गाय के पीछे गया। वहां उसने देखा कि गाय के थनों से दूध की धारा लगातार जमीन में गिर रही थी। वह दौड़ते हुए गो मालिक के घर पहुंचा और पूरी घटना बता दी। गाय मलिक को ग्वाले की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। वह भी जंगल पहुंचा और उस स्थान को देखा जहां गाय दूध गिराई थी। बात गांव में फैली। लोगों ने सोचा कि जहां गाय दूध गिराती है। वहां जमीन के नीचे कुछ तो है। ग्रामीणों ने खुदाई शुरू की। कुछ समय बाद एक चिकना पत्थर नज़र आया। खुदाई जारी रही। कुछ देर बाद शिवलिंग नज़र आया। माचकोट जंगल में यह वही स्थल है। जहां पर अब झाड़ेश्वर महादेव का मंदिर है।