- प्रबुद्ध होकर जीना सीखिये
- अहिंसा करुणा दया और व्यापक चेतना रखिये
- मत्यु नहीं अमरत्व की ओर चलें
बुद्ध कोई प्रतिमा नहीं,बुद्ध हमारी आत्मिक शक्ति हैं। जीवों पर करुणा करना ,मन बुद्धि वाणी से भी किसी को पीड़ा न पहुंचाना है तब बुद्ध को स्वीकार कर सकते। हम न तो शरीर से और न आत्मा से संकुचित विचारों के संवाहक बनने को स्वीकार करते हैं और न सीमित सोच रखते है,तभी बुद्ध को अपना पाते हैं। बुद्ध के अनुयायी बनना आसान नहीं। पंचशील को जीवन मे उतारने वाला बौद्ध है। समस्त जीवों पर दया करने वाला बौद्ध है। विश्वशांति का अनुयायी बौद्ध है। कैसी विडंबना है,दूसरे के धर्म का खंडन करने के लिए हम बौद्ध बन रहे। जाति पांति के चक्कर मे हम बुद्ध को अपना रहे। बुद्ध को किनारे कर मनमानी आचरण के लिए हम बुद्ध का नाम ले रहे। बुद्ध तो जीवन भर निर्वैर रहे। किसी को शत्रु माना ही नहीं,लड़ाई झगड़े के कभी पक्षधर नहीं रहे। हिंसा को सदा निंदनीय कहा और आज हम लड़ने के लिए बौद्ध बनने का पाखंड कर रहे।
आनंद उनका बेटा बुद्ध का अनुयायी बना,नृशंस डाकू अंगुली माल,विश्वविजेता अशोक,मगध का राजा बिंबसार उनका अनुयायी बना । युद्ध करना त्याग, वे सभी अहिंसक बन शांति और प्रेम से जीने और दूसरों को जीने देने का पाठ पढ़ा गये। बुद्धतो वेश्या को भी धर्म संघ मे जोड़ कर संयम और चरित्र की सीख देगए। मत्यु से ऊपर उठ कर अमरत्व मे जीने का सबक सिखा गए। उन्हीं के अनुयायी बनने का ढोंग रचकर हम दूसरे राष्ट्रों को डरानै धमकाने में लगे हैं। दूसरे के धर्म पर प्रतिघात कर उसे नीचा दिखाने मे लगे हैं। मूर्ति पूजा का विरोध कर बुद्ध की प्रतिमा सजाने मे और अपनी पद प्रतिष्ठा के लिए दूसरों को नीचा दिखाने में लगे हैं। वास्तव में हमने बुद्ध का उपहास उड़ाया है। सभी मे समानता का सिद्धांत हम भूल गए। सबको आदर देने और सबकी रक्षा करने का स्वभाव हमने खो दिया है।
बुद्ध ने नर- नारी को प्रव्रज्या दी तो सबको संयम की सीख भी दी। उदारता का पाठ पढ़ाया,निर्वैरता से जीना सिखाया। द्रष्टा बन कर जीने का राह सिखाया। हम उनके उपदेशों को भूल कर मनमानी आचरण कर रहे। श्रीलंका चीन जापान आदि देश कितना बुद्ध को मान रहे। सिर्फ डफली बजाकर बुद्ध की इति करने का मतलब बुद्ध होना नहीं। शादी विवाह का मंत्र नहीं लिखा बुद्ध ने। शांति प्रेम और करुणा के साथ गृहस्थी चलाने का उपदेश दिया। मृत्यु से उबरने और प्रबुद्ध होकर जीने का राह दिखाया। हम सिर्फ उनकी मूर्ति गढ़ कर पूजा पाठ आरती तक सीमित रह गए। आत्मोन्नयन को एक दम भूल गए। वाह! ऐसे बनने चले हैं बौद्ध?