जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
कुंडली में भाग्य ही नहीं सेहत का भी राज छिपा होता है। कुंडली के 12 घर शरीर के अलग अलग अंगों के बारे में बताते हैं।
आयुर्वेद और ज्योतिष
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली अध्ययन को वरियता दी गई है। पुरातन काल में वैद्य रोग का पता लगाने के लिए कुंडली का भी अध्ययन किया करते थे। आयुर्वेद और ज्योतिष नाता पुराना है। माना जाता है कि 12 राशियां, नौ ग्रह और 27 नक्षत्र मनुष्य को प्रभावित करते हैं। आयुर्वेद में ऐसा बताया गया है कि मनुष्य का तन और मन से जुड़े रोग, कफ, वात और पित्त पर निर्भर करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में लग्न यानि कुंडली का पहला घर व्यक्ति के शरीर, सूर्य आत्मा और चन्द्रमा मन का कारक बताया गया है। जब इन पर प्रभाव पड़ता है तो रोग बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। कुंडली के किस भाव से किस प्रकार के रोग की संभावना रहती है।
कुंडली के 12 भाव और शरीर के अंग व रोग..
कुंडली का पहला भाव- दिमाग, ऊपरी जबड़ा, मानसिक रोग, सिरदर्द, मलेरिया, रक्ताघात, नेत्र रोग,पाइरिया, मुंहासे, चेचक, मिरगी आदि।
कुंडली का दूसरा भाव- गला, जीभ, नाक, निचला जबड़ा, मोटापा, दांतदर्द, डिप्थीरिया, फोड़ा-फुंसी आदि।
कुंडली का तीसरा भाव- फेफड़ा, कंधा, श्वास नली, हाथ, दमा, मानसिक असंतुलन, मस्तिष्क ज्वर, नशों में जकड़न आदि।
कुंडली का चौथा भाव- छाती, स्तन, फेफड़े, उदर, नीचे का पसली, पाचन क्रिया, क्षय रोग, कफ, गैस, कैंसर आदि।
कुंडली का पंचम भाव- तिल्ली, पिताश्य, हृदय, यकृत, कमर, हृदय रोग, पीलिया, बुखार आदि।
कुंडली का छठा भाव- नाभि, अग्नाशय,आंत, अर्थराईटिस आदि।
कुंडली का सप्तम भाव- गुर्दा, मूत्राशय, अण्डाशय, मूत्रवाहिनी, गर्भाशय, डायबिटीज, रीढ़ की हड्डी का दर्द, पथरी आदि।
कुंडली का आठवां भाव- मलद्वार, मलाशय, भ्रूण, लिंग, योनि, गुप्तरोग, हार्निया आदि।
कुंडली का नवम भाव- जंघा, साइटिका की समस्या, ट्यूमर, गठिया, दुर्घटना आदि।
कुंडली का दशम भाव- घुटना, जोड़, स्कीन, बाल, नाखून, घुटने का दर्द, जोड़ों में दर्द आदि।
कुंडली का एकादश भाव- एड़ी, कान, हृदय रोग, रक्त आदि।
कुंडली का द्वादश भाव- पैर का तलवा, पैर, आंख, एड़ी का दर्द आदि।
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