महाप्राण निराला की रचना ‘राम की शक्तिपूजा’ मंच पर नौटंकी रूप में

‘कथा बस राम रावण की नहीं, मुक्त सीता करानी है….

लखनऊ। अपनी सीतारूपी भारतीय और सनातनी संस्कृति को अपहरण और क्षरण से बचाना है तो हमें राम की तरह जूझते हुए इसे बचाना होगा। ये संदेश छायावादी महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रची अमूल्य काव्य रचना- ‘राम की शक्ति पूजा’ का लोक नाट्य विधा नौटंकी में हुआ मंचन दे गया। वाल्मीकि रंगशाला गोमतीनगर में बिम्ब सांस्कृतिक समिति के कलाकारों ने रामकिशोर नाग द्वारा किये नौटंकीकरण को निर्देशक गुरुदत्त पाण्डे और सहनिर्देशक महर्षि कपूर ने मंच पर पेश किया। प्रस्तुति रंगविद् डा.उर्मिलकुमार थपलियाल को समर्पित थी। मंचन में- कथा बस राम रावण की नहीं, मुक्त सीता करानी है…. पंक्तिया मंचन के उद्देश्य को प्रेक्षकों तक पहुंचाती हैं। राम की शक्ति-पूजा का शिल्प उसके द्वन्द्वात्मक वस्तु विधान के कारण द्वन्द्वात्मक है।

निराला ने पूरी कविता में ही विरोधाभास गूंथ रखा है। इसी द्वन्द्वात्मकता से इसके रचना विधान नाटकीयता उभरती है। इसकी द्वन्द्वात्मकता रचनाकार और नायक राम के स्तर पर है। नायक राम विपरीत परिस्थितियों में निरंतर संघर्ष की प्रेरणा और विरोधियों के सामने किसी भी हालात में हार नहीं मानकर हमेशा हार को जीत में बदलने को प्रयत्नशील हैं। कुल 312 पंक्तियों की इस कविता के नौटंकीकरण में दोहा, चौबोला इत्यादि परम्परागत छंदों का प्रयोग लेखक रामकिशोर नाग ने कुशलता से किया है। इसमें मानवीय रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के द्वंद्व को दर्शाया है। राम को विखण्डित शक्ति नहीं, समग्रता के साथ शक्ति चाहिए।

राम आज भी अपनी सीता को मुक्त करा के उनके सम्मान को बचाये रखने का प्रयास कर रहे है ये संघर्ष तभी सफल होगा जब जन शक्ति उनके साथ जुड़ जाये। प्रस्तुति के बिम्ब समाज की वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों से जुड़ते और उभरते हैं। प्रस्तुति में श्रीराम द्वारा छोडे गए तीक्ष्ण बाण रावण के पास पहुंचने से पूर्व ही दिशाहीन निस्तेज होते खोते जा रहे हैं। राम को हतोत्साहित होते हैं कि क्या सीता रावण के बन्धन से मुक्त न हो पाएंगी।ऐसी दशा देख हनुमान जी अत्यन्त क्रोधित हो जाते हैं। कैलाश पर्वत पर ध्यानमग्न शिवजी भी विचलित हो जाते हैं और अपनी शिव शक्ति को आह्वान कर समझाते हैं कि हनुमान को उत्तेजित्त न करें और माता अन्जना का रूप धारण कर उन्हें शान्त करने का प्रयास करें।

माता अन्जना रूप में शिव शक्ति हनुमानजी को समझाने का सफल प्रयास करती हैं। जामवंत जी और विभीषण लक्ष्यपूर्ण करने के लिये राम को पुनः शक्ति का आह्वान कर शक्ति पूजा को प्रेरित करते हैं। श्री राम माँ दुर्गा का 108 कमल द्वारा पूजन करने का संकल्प लेते है। श्री हनुमान जी सारी पूजन सामग्री एवं उचित संख्या में कमल का प्रबन्ध करते है तो राम पुनः अनिष्ट होने के भय से व्याकुल हो जाते है और अपनी माताओं द्वारा खुद को कमल नयन सम्बोधित करे जाने का स्मरण कर अन्तिम कमल के रूप में अपनी दाहिनी आँख समर्पित करने वाले होते ही हैं कि माँ दुर्गा प्रकट हो उन्हें आशीष और शक्ति प्रदान करती है।

रचना और प्रस्तुति में लोकनाट्य तत्वों का उपयोग भी एक अभिनव शिल्प प्रयोग की तरह सामने आता है। लगभग दिवास्वप्न की दशा में राम के सम्मुख कभी पुष्पवाटिका प्रसंग उभरता है, कभी ऊपर उठते हुए बाण, कभी वियोगिनी सीता की स्मृति और कभी माता की छवि उभरती है। प्रस्तुति की कथा अतीत औ वर्तमान में घूमती है तो कभी भविष्य को इंगित करती है। प्रस्तुति में मुख्यतः करुण, शृंगार, शौर्य, भयानक और फिर करुण रस भावों के साथ उभरते हैं।

मंच पर राम- बृजेश कुमार चौबे, लक्ष्मण- शुभरेश कुमार शर्मा, सीता-इशिता वार्ष्णेय, हनुमान- महर्षि कपूर, रावण- गिरिराज शर्मा, दुर्गा व पार्वती- कंचन शर्मा, शिव- चन्द्रकांत सिंह, विभीषण- सुशील पटेल, जामवंत- राकेश खरे, सूत्रधार-उत्कर्ष मणि त्रिपाठी, नट- अभिषेक कुमार पाल, नटी- दीप्ति सक्सेना, बाल गणेश- दक्ष कपूर, सैनिक- डा.अरुण त्रिपाठी, सुहेल शेख, गौरव वर्मा, उत्कर्ष, सूर्यांश प्रताप सिंह, राहुल गौतम, रोहित कुमार, अजीत कुमार और सखियां- सरिता कपूर, हरितिमा जायसवाल, नियति नाग व खुशी अरोड़ा बनकर उतरीं। मंच पार्श्व के पक्ष में आशुतोष विश्वकर्मा, शहीर अहमद, तमाल बोस, गिरिराज शर्मा, गौरव वर्मा और इशिता वार्ष्णेय ने सम्भाले। संगीत पक्ष में हारमोनियम- अरिवन्द कुमार वर्मा, नक्कारा- मोहम्मद सिद्दीकी, ढोलक- मो.माजिद व शंख वादन- नीलेश बनर्जी ने किया। संगीत संयोजक व निर्देशक गुरुदत्त के साथ गायन मोनिका अग्रवाल ने किया।

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