कृषि उधमिता के दावे एवं किसान आत्महत्या की हकीकत!

राकेश राज


सिद्धार्थ नगर। कृषि उधमिता का अर्थ कोई भी कृषि क्षेत्र में आर्थिक क्रिया जिनमें हम उत्पादन करते हैं और लाभ प्राप्त करते हैं। कृषि में उधमिता के विकास के कारण सामान्य कृषक को उत्पादक से उद्यमी बनाने का अवसर प्राप्त हुआ है। उधमिता के माध्यम से ग्रामीण युवाओं, महिलाओं और समस्त कृषक समुदाय के आर्थिक सशक्तिकरण के नए द्वार खुले हैं। भारत सरकार ने किसानों सहित ग्रामीण समाज की आजीविका में सुधार और प्रति व्यक्ति प्रतिदिन आमदनी में वृद्धि के लिए कृषि उधमिता के विकास को एक प्रमुख राणनीतिक क्षेत्र माना है और इसके लिए  प्रयास भी किए जा रहे हैं। परंतु आमतौर पर कोई भी कारोबार शुरू करने से पहले जिन फैकटरो का विशेष ध्यान रखा जाता है। उनमें एक होता है कि संभावित ग्राहक उस कारोबार के उत्पादन या सेवा के लिए कितना भुगतान कर सकते हैं।

इस लिहाज से देखा जाए तो किसान सबसे कमजोर वर्गों में शामिल है । साफ है कि उससे बहुत ज्यादा मुनाफा हासिल करना लंबी अवधि के कारोबार के लिहाज से एक मूर्खतापूर्ण रणनीति होगी। इसी तरह देखा जाए, तो शिक्षा और जागरूकता दूसरा फैक्टर है जिससे कोई भी नया उद्यमी किसानों के साथ कारोबार करने में हिचकिचाता है। किसान गरीब और कम शिक्षित होने के कारण शून्य जोखिम पर काम करना चाहता है। एक अन्य समस्या घटती जोत के साथ खेती की बढ़ती लागत और कम होती उत्पादकता है। इन परिस्थितियों में किसानों के लिए खेती अव्यवहारिक हो जाती है और किसान खेती की जगह कोई अन्य व्यवसाय अपनाने पर बाध्य हो जाता है। कृषि उद्यमों के लिए यह नुकसान दायक स्थिति है परंतु जो किसान सक्षम है वे कृषि उधमिता को अपनाकर ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार लाए जा सकते हैं। महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र इसका बेहतरीन मॉडल है।

देश के कुल कार्यबल का 54.6% हिस्सा कृषि क्षेत्र में कार्यरत है यानी देश की आधी आबादी को कृषि से रोजगार मिलता है। आर्थिक समीक्षा 2020 -21 के मुताबिक सकल मूल्य संवर्धन में कृषि और संबंधित गतिविधियों का योगदान 17.8% है। नाबार्ड द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक 22 करोड लोग अब भी गरीब है। एक ओर आबादी के बड़े अनुपात के लिए कृषि आजीविका का सबसे बड़ा जरिया है वहीं कृषि क्षेत्र में निम्न और अनिश्चित आय नीति निर्धारण के लिए चुनौती भी है। 70 के दशक में हरित क्रांति खाद्यान्न उत्पादन के क्षेत्र में अहम बदलाव लेकर आई यह बदलाव वर्तमान में दिख तो रहा है।

लेकिन किसान की आत्महत्या करने के कारणों को व्यवहार में दूर करने में असफल रहा। कृषि में संभावनाओं के दृष्टिकोण से बात करें, तो आज भी भारत अपनी कृषि एवं मानव संसाधन क्षमता का मात्र 10% मूल्य ही प्राप्त कर पाता है, क्योंकि कृषि उत्पादों के लिए कृषि बाजार, भंडारण और युवा वर्ग को रोजगार की कोई उपर्युक्त व्यवस्था नहीं है। कृषि गतिविधियों में उनकी रचनात्मक भागीदारी को सुनिश्चित कर कौशल विकास एवं उद्यमिता में उनकी क्षमताओं को प्रोत्साहित करने में सरकार नाकाम साबित हुई है। अब देखना है कि क्या कृषि उधमिता किसानों को आत्महत्या करने से कहा तक रोक पाती है?  वर्ष 2021 में देश में कूल लगभग 10881 किसानों की आत्महत्या से मौत होने की सूचना दी गई।

 

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विश्लेषण में जो बड़ी बात सामने आई उसकी मुताबिक साल 2018 के आंकड़ों की तुलना में साल 2021 में रोजगार करने वाले उद्यमियों की आत्महत्या के मामले में 54 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। NCRB डाटा में कारोबारियों की मौत के कारण का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि इनकी पीछे का प्रमुख कारण दिवालिया होना और कर्ज का बोझ बढ़ना है। भारत में किसान आत्महत्या के मामलों की बढ़ती संख्या के लिए जिम्मेदार अन्य कारकों में कम उत्पादन की कीमतें, सरकारी नीतियों में बदलाव ,खराब  सिंचाई व्यवस्था है। यह दुख की बात है कि किसान आत्महत्या कर लेते क्योंकि वे अपने जीवन में वित्तीय और  भावनात्मक उथल-पुथल का सामना नहीं करने में असमर्थ हैं। अब देखना है कि कृषि उद्यमिता कहां तक इन किसानों की आत्महत्या को रोकने में सफल होती है।

यह बहुत दुख की बात है लेकिन यह सच है कि भारत में किसानों की आत्महत्या के पीछे कई कारण हैं जिनमें प्रमुख हैं अनियमितत मौसम की स्थिति ,ऋण बोझ, परिवार के मुद्दे तथा समय-समय पर सरकारी नीतियों में बदलाव। भारत में किसान आत्महत्या ने पिछले कुछ समय की अवधि में काफी वृद्धि दिखी है। ग्लोबल वार्मिंग ने देश के अधिकांश हिस्सों में सूखा और बाढ़ जैसी चरम मौसम की स्थिति पैदा की है ,ऐसी चरम स्थिति से फसलों को नुकसान पहुंचाता है और किसानों को खाने के लिए कुछ नहीं बचता है। जब फसल की उपज पर्याप्त नहीं होती तो किसान अपने वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए ऋण लेने पर मजबूर हो जाते हैं।  ऋण चुकाने में असमर्थता किसान आत्महत्या करने का कदम उठाते हैं। सरकार ऋणो पर ब्याज दरों को कम करके और कृषि ऋण को बंद करके आर्थिक रूप से किसानों का समर्थन करें तभी किसानों की आत्महत्या करने की दर में कमी आ सकती है। अब देखना है कि मध्य भारत एवं उत्तर भारत के तराई क्षेत्रों में आए हुए बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा से किसानों की दैनिक जीवन में काफी उथल-पुथल हुई है। इसके लिए सरकार कौन सी कदम उठाती है? और वह कदम कितना सार्थक होगा किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए?

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