राजेश जायसवाल
नौतनवा/महराजगंज। दिवाली के पूर्व धनतेरस के अवसर पर वर्तन से लेकर सोने चांदी के गहने तक खरीदने का प्रचलन है। अधिकांश लोग चांदी के बड़े आकार का वह सिक्का भी खरीदते हैं जिनके दोनों तरफ लक्ष्मी गणेश के चित्र उकेरे हुए होते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार यह हमारी श्रद्धा व भक्ति पूर्ण भावना है जिसके तहत हम ऐसा करते हैं। लेकिन जिस श्रद्धा भाव से हम उस चांदी के सिक्के को खरीदते हैं क्या बेचने वाले में भी वैसा ही श्रद्धा भाव होता है? यह विचारणीय प्रश्न है। दरअसल देवी देवताओं के आकृति वाले चांदी का सिक्का बेचने वाले सोनार धनतेरस के चार छः महीने पहले से ही ग्राहकों को कैसे ठगा जाय इसके गुणा गणित में जुट जाते हैं। धार्मिक भावना से ओतप्रोत ग्राहक बुरी तरह ठगा जाता है।
धनतेरस त्यौहार के मद्देनजर ग्राहक चांदी के एक रूपये के ओरिजिनल सिक्कों की खरीदारी करते हैं,ऐसे सिक्के प्रायः मैले कुचैले होते हैं। देखने में वह बिल्कुल असली जैसा लगता है।उसके दोनों तरफ लक्ष्मी गणेश जी की आकृति बनी हुई होती है। ग्राहक ज्यादातर ऐसे ही सिक्के को पसंद करते हैं। इसे खरीद कर इसके असली नकली की पहचान किए बिना वे इसे तिजोरी या पूजा स्थल पर रख देते हैं जो वक्त के साथ और मटमैला हो जाता है जो उसके असली होने की पुष्टि करता है। लेकिन वह असली नहीं होता। धनतेरस पर चांदी के सिक्के का व्यापार करने वाले नकली चांदी के सिक्के को कुछ इस तरह तैयार करते हैं कि वह असली जैसा लगे।
दुकानदार अच्छी तरह जानता है कि ऐसा सिक्का खरीदने वाला ग्राहक न तो उसे बेचेगा और न ही उसकी परख कराएगा लिहाजा बड़ी निश्चिंतता के साथ वह धड़ल्ले से ग्राहक के गले लटका देता है। सोने चांदी के दुकान दार धनतेरस पर ज्यादातर ओरिजिनल की जगह डुप्लीकेट सिक्का तैयार कर ग्राहकों को चूना लगा रहे हैं। नकली और पुराने सिक्कों में परख कर पाना संभव नहीं है। पुराने सिक्के 11646 मिलीग्राम के होते हैं उनका बाजार रेट करीब एक हजार से बारह सौ रूपये तक होता है वहीं पुराने सिक्कों की भेषभूषा में तैयार नकली सिक्कों का रेट छ से सात सौ रूपये तक ही होता है। इस तरह ग्राहक असली की जगह नकली सिक्का खरीदने को मजबूर हो रहे हैं।