ए अहमद सौदागर
लखनऊ। हत्या, लूट या फिर डकैती जैसे अपराधों को अंजाम देने वाले शातिर अपराधियों को पकड़ने के लिए करीब दो दशक पहले से जमीनी मुखबिर तंत्र पुलिस के लिए खास रहा करती थी, लेकिन इस दौर की बात करें तो अब सर्विलांस पर ही निर्भर नज़र आ रही है। गौर तो कड़वा सच यही है कि पुलिस और मुखबिर की दूरियां बढ़ती गई और अपराधी बेलगाम होते गए।
कुछ साल पहले की बात करें तो जमीनी मुखबिर तंत्र के सहारे राजधानी लखनऊ पुलिस ने तीन वारदातों का राजफाश कर आरोपियों को सलाखों के पीछे भेजा था। पांच अप्रैल 2010 – इंदिरा नगर में महिला सर्राफा कारोबारी रितु शर्मा की बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस सनसनीखेज मामले हत्याकांड के आरोपी रमेश पासी की जुबान से अकेले में निकली भड़ास पुलिस के लिए काम आ गई।
मुखबिर के जरिए यह बात पुलिस तक पहुंचीं, तंत्र सक्रिय हुआ और 120 दिन बाद हत्यारोपी सलाखों के पीछे पहुंच गए। इसी तरह से जमीनी मुखबिर तंत्र पर नजर डालें तो राजधानी लखनऊ के अलावा यूपी के अलग-अलग जिलों में अधिकतर एनकाउंटर में पुलिस को जमीनी तंत्र की काम आया और अपराधी सलाखों के पीछे पीछे या फिर मुठभेड़ में मारे गए।