साधना का सहज मार्ग

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

नवदुर्गा पर्व के नौ दिन आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करते है। यह साधक पर निर्भर करता है कि वह अपने आत्मप्रकाश को कितना जाग्रत करता है। देवी सूर्य की भांति तेजस्वी है। इनका चतुर्थ स्वरूप भी विलक्षण है। उनका भव्य दिव्य स्वरूप साधक को आत्मिक प्रकाश प्रदान करता है। मेघा प्रज्ञा का जागरण होता है। मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। इनके वह कमण्डल,धनुष बाण,कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश,चक्र,जपमाला तथा गदा धारण करती है। इनका वाहन सिंह है। उनका यह स्वरूप जप तप व कर्मयोग की प्रेरणा देता है। उनकी उपासना से कल्याण होता है। इन्हें अष्टभुजा भी कहा गया। पुराणों के अनुसार मां अपनी हंसी से संपूर्ण ब्रह्मांड को उत्पन्न करती हैं। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था,तब इन्होंने अपने हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। वह सृष्टि की आदि स्वरूपा शक्ति हैं। एक मान्यता के अनुसार उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण वह कूष्मांडा देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई।

इनका मंत्र है-

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
देवी दुर्गा का पंचम स्वरूप भी अति कल्याणकारी है। इस रूप में मां का सहज स्वभाविक वात्सल्य भाव है-
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ।।
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। दुर्गा पूजा के पांचवें दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है। कुमार कार्तिकेय सनत कुमार,स्कंद कुमार नाम से भी प्रतिष्ठित है। मां का यह रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है। जब आसुरी शक्तियों का प्रकोप बढ़ता है तब माता सिंह पर सवार होकर उनका अंत करती हैं। देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। वह अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कंद या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिए बैठी हैं। मां का चौथा हाथ भक्तो को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है। देवी स्कंद माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। इन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी पुकारा जाता है। पर्वत राज की पुत्री होने से इन्हें पार्वती कहा गया। इनका विवाह शिव जी से हुआ। इस रूप में वह माहेश्वरी है। वह गौर वर्ण की है। इसलिए इन्हें गौरी कहा गया। किसी भी नाम रूप से इनकी आराधना हो सकती है।

स्कंदमाता नाम इनको भी प्रिय है-

वंदे वांछित कामार्थे चंद्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कंदमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुद्ध चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।

नवरात्रि के छठे देवी कात्यायनी की आराधना होती है। वह ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप में अवतरित हुई थी। इसलिए कात्यायनी के नाम से प्रतिष्ठित हुईं।पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऋषि कात्यायन ने देवी दुर्गा की कठोर तपस्या की थी। ऋषि की तपस्या से देवी दुर्गा प्रसन्न हुईं और उनके सामने प्रकट होकर दर्शन दिए। देवी ने ऋषि कात्यायन से कहा कि वत्स मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं,वर मांगों। ऋषि कात्यायन ने मां दुर्गा से कहा आप मेरे घर पुत्री बनकर जन्म लीजिए। देवी यह वरदान दे दिया। इसके बाद देवी ऋषि के घर पुत्री बनकर जन्म लिया। दिव्य रूप देवी कात्यायनी चार भुजा धारी हैं। उनकी कांति स्वर्ण के समान है। उनका वाहन सिंह है। उनके एक हाथ में तलवार दूसरे में पुष्प कमल है। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। यजुर्वेद में प्रथम बार ‘कात्यायनी’ नाम का उल्लेख मिलता है। देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए आदि शक्ति देवी के रूप में महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई थीं। वह असुरों का नाश करती हैं।

चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

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