शारदीय नवरात्र मे देवी आराधन

नौ दुर्गा प्रकीर्तिता

आंतरिक शक्ति के नौ विंदुओं को जगाना


बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

आश्विन शुक्लपक्ष~ देव पक्ष है,इस काल में सभी देवी -देवता धरती के समीप आजाते है। पौराणिक आख्यान के अनुसार दुष्ट शक्तियों ने जब धरती पर उत्पात मचाया और स्वर्ग को भी कब्जे में करने की कोशिश की तो सभी देवताओं की शक्ति पुंजीभूत होकर दुर्गा रूप मे अवतरित हुईं। दुर्गा के नौ स्वरुप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री… नौ दिन मे देवी का विविध रूप मिला। इन्होंने दैत्यों की लोकविध्वंसकारी शक्तियों जैसे चंड-मुंड,शुंभ -निषुंभ,मधु -कैटभ आदि का वध किया।मानव व देव संस्कृति की रक्षा की।

भगवान राम ने लंकाविजय के पूर्व देवी शक्ति का आह्वान किया और विजय दशमी को लंका विजय हेतु प्रस्थान किया। इसीलिए मानव इस पक्ष मे नौ दुर्गा का आह्वान करते हैं,उनकी वंदना कर अनुग्रह चाहते हैं। ज्योतिषीय दृष्टि से इस काल में शुक्र सूर्य कन्या राशि मे होते है,बुध भी उच्च राशि मे आजाता है। इसलिए देवी की आराधना कर शुक्र को बली बनाते हैं। प्रकृति मे शरद ऋतु का आगमन होने से यह शारदीय नवरात्रि कहलाता है। देवी इस बार हाथी पर सवार होकर आई हैं। जो लोककल्याण कारी है।

देवी शैलपुत्री  संकल्पशक्ति

जिन जिन कारणों से आपके शरीर में शक्ति का संचार होता हैं ,आपकी चेतना जगती है,वह सब देवी का आपके शरीर मे अवतरण है। इस महाशक्ति का आपको एहसास नही होता।नलिकाविहीन ग्रंथियो( डक्टलेसग्लैंड्स) से होने वाला स्राव आपसे चमत्कारिक कार्य कराता है। आप इस महाशक्ति का अनुमान नहीं कर सकते‌। माता का नवरात्र के प्रथम दिन का स्वरूप देवी की संकल्प शक्ति है, जब वे दृढ़ता पूर्वक गुरु के उपदेश से मन ही मन संकल्प करती हैं कि वे शिव का वरण करेंगी।

यह स्वरुप शैलपुत्री का है। हमे भी अविचल दृढ़ संकल्प शक्ति का वरण करना है । वह भी संकल्प किसका ?शिवत्व का संकल्प ‘तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु’…। अपने और जगत के कल्याण का। जब हमारे भीतर शुभकर्म करने का संकल्प उठता है तो यह कार्य के शुभारंभ का सूचक है। संकल्प जितना दृढ़ होगा उसका प्रयत्न भी उसी गंभीरता से होगा। कमजोर संकल्प वाले बहुधा शक्तिहीन ही रह जाते हैं।

ब्रह्मचारिणी  संयमिनी शक्ति

देवी का दूसरा स्वरूप संयमिनी शक्ति का है,शिव को पाने के लिए देवी ने ब्रह्मचारिणी के रूप में आत्मसंयम किया ,फिर एकांत में साधना में तत्पर हुई। ऐसे ही अपने  संकल्प की सिद्धि के लिए आत्मसंयम करते हुए एक निष्ठा हो उद्यमशीलता होनी चाहिए। तभी सफलता मिलती है।

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