स्वयं विष्णु स्वरूप हैं शालिग्राम, उसी रूप में पूजिए

  • अखिलेश के केदारेश्वर

संजय तिवारी

शालिग्राम भगवान विष्णु के स्वरूप हैं। ठाकुर जी हैं। इसीलिए शालिग्राम शिला से विष्णु अवतार भगवान श्रीराम की प्रतिमा बनाकर अयोध्या जी में स्थापित की गई। समाजवादी शिवभक्तों  के कौन से आचार्य सलाहकार हैं जिन्होंने नारायणी की शालिग्राम शिला से उन्हें महादेव की स्थापना की सलाह दी और कल्पित केदारेश्वर को बाबा केदार नाथ की प्रतिकृति के रूप में स्थापित करने को आगे कर दिया। महाकाल की प्रथम प्रतिक्रिया राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अस्तित्वहीन परिणाम के रूप में सामने है और आसन्न लोकसभा चुनाव के प्रणाम भी स्पष्ट दिखने लगे है। भगवान का स्वरूप बदलने और आस्था में भ्रम उत्पन्न करने का प्रभाव अब किसी के रोकने से रुकने वाला भी नहीं है, ऐसी सनातन वैदिक मान्यता बहुत स्पष्ट संदेश देती है।

दरअसल अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्रतिमा निर्माण के लिए नारायणी नदी से शालिग्राम शिला लाई गई और उसकी पूजा अर्चना की गई। उसी शिला से श्रीविष्णु के स्वरूप भगवान राम की प्रतिमा का निर्माण किया गया। जब अखिलेश यादव की पार्टी ने यह सब देखा तो उन्हें लगा कि अयोध्या तो वे जायेंगे नहीं, इसलिए अपने गृहनगर में ही महादेव को स्थापित करते हैं। तय हुआ दस एकड़ भूमि पर भगवान केदारनाथ की तरह केदारेश्वर मंदिर स्थापित करने का और लाई गई शालिग्राम शिला। अब समाजवादी चिंतक को कौन बताए कि शालिग्राम शिला से केवल भगवान विष्णु की प्रतिमा ही बन सकती है क्योंकि शालिग्राम स्वयं ठाकुर हैं। शिव तो ठाकुर के भक्त हैं। स्वयं विष्णु से शिव नहीं गढ़े जा सकते क्योंकि अवतार केवल विष्णु के होते हैं। शिव तो काल से भी परे, अकाल हैं। यदि स्वरूप के साथ कोई पैवर्तन किया जाता है। तो शिव तांडव की मुद्रा में तो आयेंगे ही। इस बारे में लोगों का मानना है कि जो लगातार श्रीराम की अवहेलना कर रहा हो, उसको शिव की कृपा तो मिलने से रही। इतनी सामान्य सी लोक श्रुति भी समाजवादी दिग्गजों को नहीं पता?  श्रीराम के प्रति आस्था रखने वाले अनेक समाजवादी चेहरों को घुटन होना अस्वाभाविक भी नहीं है।

इस वर्ष 22 जनवरी को अयोध्या में प्रभु राम अपने भव्य मंदिर में विराजमान हो गए। इसी के साथ पूरा देश पूरा राममय हो गया। प्राण प्रतिष्ठा के बाद पीएम मोदी ने साफ कहा कि राम सिर्फ हमारे नहीं हैं, राम तो सबके हैं। सदियों के इंतजार के बाद ये पल आया है। अब हम रुकेंगे नहीं। राम मंदिर के सहारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 लोकसभा का चुनावी बिगुल फूंक दिया , ताकि रिकॉर्ड सीटों के साथ सत्ता की हैट्रिक लगाकर इतिहास रचा जा सके। बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए सपा ने भी ‘मंदिर पॉलिटिक्स’ का दांव चल दिया है लेकिन इसके लक्षण लाभकारी नहीं दिख रहे। राम मंदिर उद्घाटन समारोह में न्‍योता मिलने के बावजूद सपा अध्‍यक्ष अखिलेश यादव नहीं गए थे। इसके बाद जब उन पर उठने लगा तो उन्होंने कहा कि वे बाद में अपने परिवार के साथ रामलला का दर्शन करने जाएंगे। प्राण प्रतिष्ठा के बाद से अब तक अखिलेश यादव रामलला का दर्शन करने नहीं गए। बजट सत्र के दौरान विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना की तरफ से रामलला का दर्शन करने के लिए सभी विधायकों को निमंत्रण दिया गया। इस पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने निमंत्रण को अस्वीकार करते हुए कहा कि हमें भगवान श्रीराम बुलाएंगे, तब जायेंगे। इसके बाद अखिलेश यादव पर सवाल उठने लगा।

राम मंदिर को लेकर सवालों से घिरे अखिलेश यादव अचानक राहुल गांधी की तरह ही शिवभक्‍त बन गए। अखिलेश यादव देवों के देव भगवान शिव का मंदिर इटावा में बनवाने की तैयारी में लग गए। ‘केदारेश्वर’ मंदिर के लिए नेपाल से शालीग्राम की शिला लाई गई। अखिलेश यादव ने पत्‍नी डिंपल यादव के साथ सपा दफ्तर में शालीग्राम की पूजा- अर्चना की। इस अवसर पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, डिंपल यादव, शिवपाल यादव समेत 101 विधायक इस अनुष्ठान में शामिल हुए। इसमें वे सभी विधायक शामिल थे जिनके वोट कल भाजपा प्रत्याशी के साथ गए हैं। इस दौरान ‘हर- हर महादेव के जयकारे लगे। इसे इटावा लायन सफारी के पास बनाए जा रहे केदारेश्वर मंदिर में स्थापित किया जा रहा हैं।

काली गंडकी से लाई गई शिला

पवित्र शालिग्राम की शिला को आंध्र प्रदेश के श्रीमधु बोट्टा और जौनपुर के कृपाशंकर नेपाल से लेकर सोमवार की रात लखनऊ पहुंचे। नेपाल की काली गंडकी नदी में ही ऐसी शिलाएं मिलती है। इन्हें देवशिला कहते हैं। वर्तमान देवशिला सात फिट ऊंची छह फिट चौड़ी और 13 टन की है। केदारेश्वर मंदिर का निर्माण 10 एकड़ क्षेत्र में हो रहा है। यह मंदिर का निर्माण ज्योतिर्लिंगों, जैसे केदारनाथ (उत्तराखंड में) और बाबा विश्वनाथ (वाराणसी) मंदिर के अनुरुप होगा। इस अवसर पर अहिरवा नृत्य का भी आयोजन हुआ। अब अखिलेश जी को कौन बताए कि भगवान शालिग्राम स्वयं विष्णुस्वरूप हैं। शालिग्राम शिला से शिवस्थान नहीं बनता। शिव का निवास मां नर्मदा की शिलाओं में हैं।

शालिग्राम शिला का महात्म्य

पद्मपुराण के अनुसार-गण्डकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँ से निकलनेवाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो उसके फल के विषय में कहना ही क्या है, वह भगवान के समीप पहुँचाने वाला है। बहुत जन्मों के पुण्य से यदि कभी गोष्पद के चिह्न से युक्त श्रीकृष्ण शिला प्राप्त हो जाय तो उसी के पूजन से मनुष्य के पुनर्जन्म की समाप्ति हो जाती है। काशी विद्वतपरिषद और सनातन परंपरा के अनेक आचार्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि भगवान शालिग्राम साक्षात विष्णु स्वरूप हैं। शालिग्राम को शिवस्वरूप देना संभव नहीं।

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