दो टूक : भारत रत्न का ऐलान या फिर 2024 में जीत की गारंटी का पैगाम

राजेश श्रीवास्तव

इन दिनों देश में भारत रत्नों की बौछार ऐसे हो रही है मानो मोदी गारंटी का ऐलान हो रहा है। वह गारंटी जो जीत की होती है वही गारंटी भारत र‘  की इन दिनों बन गयी है। वैसे तो ये पुरस्कार हमेशा से राजनीतिक विचारों से प्रभावित रहे हैं, लेकिन इस बार उनका महत्व और भी ज्यादा प्रतीत हो रहा है। अब तक पांच नामों की घोषणा की जा चुकी है-कर्पूरी ठाकुर, लालकृष्ण आडवाणी, पीवी नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिह और एमएस स्वामीनाथन। इनमें से प्रत्येक शख्सियत का राजनीतिक महत्व बहुत अधिक है और उनके चयन से एक स्पष्ट संदेश जाता है। दो भारत र‘ कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह का तो ऐसे ऐलान कर दिया गया कि इंडिया गठबंधन ही चित हो गया। एक से नीतीश मजबूर हो गये तो दूसरे से जयंत बिछ ही गये। तो आडवाणी को राम मंदिर के योगदान का सम्मान मिला है। पीवी नरसिम्हा राव को दिया गया भारत र‘ मोदी के प्राथमिक राजनीतिक प्रतिद्बंद्बी कांग्रेस पार्टी को एक संदेश है। उनके बहाने भाजपा दक्षिण में संदेश देना चाहती है कि जिस कांग्रेस ने राव के पार्थिव शरीर को लौटा दिया था, नफरत का आलम यह था कि गांधी परिवार ने राव का दिल्ली में दाह संस्कार तक नहीं होने दिया था।

उसको वह सम्मान दे रही है। यानि कुल मिलाकर कहें तो भारत र‘ भाजपा की जीत के कील-कांटे हैं। जिन्हें पीएम मोदी या फिर भाजपा के रणनीतिकारों ने बड़ी संजीदगी से फिट किया है। यहां तक कि एक गैर-राजनीतिक व्यक्ति एमएस स्वामीनाथन की पहचान भी एक सूक्ष्म राजनीतिक संदेश देती है। बेहतर कृषि आय की वकालत करने में स्वामीनाथन की भागीदारी किसानों की मौजूदा मांगों के अनुरूप है। किसानों द्बारा उचित व्यवहार के लिए विरोध करने की धमकी देने के साथ, यह पुरस्कार भी एक राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करता है। इन सबके साथ यह पुरस्कारों का ऐलान इस बात की भी चिंता पैदा करता है कि क्या पुरस्कारों की बढ़ती संख्या उनके महत्व को कम करती है।

कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिह क्रमश: प्रमुख ओबीसी और किसान नेताओं के चयन से पता चलता है कि भाजपा हिदी हर्टलैंड में अपने मुख्य ओबीसी वोट को मजबूत करने के साथ-साथ हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के जाट-बहुल क्षेत्रों में जनाधार बढ़ाने पर कितना फोकस कर रही है। इस दृष्टिकोण को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए नए भाजपा मुख्यमंत्रियों की घोषणा के समय नियोजित रणनीति के विस्तार के रूप में देखा जा सकता है। इन नियुक्तियों में विभिन्न जातियों और आदिवासी पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को शामिल किया गया था, जिसका उद्देश्य विभिन्न प्रकार की पहचानों को आकर्षित करना था। सवाल उठता है कि क्या भाजपा लोकसभा चुनावों को लेकर चितित है, इसलिए उसने भारत र‘ देकर उत्तर से दक्षिण भारत तक चुनावी विसात बिछाने की कोशिश की है? सतह पर ऐसा लग सकता है, लेकिन पूरी संभावना है कि मोदी 2024 के चुनावों को अपनी अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज करें। उनका उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर वही रिकॉर्ड बनाना है जिसका ऐलान पीएम मोदी ने संसद में किया है यानि 400 पार का।

मुझे लगता है कि वीर सावरकर और कांशीराम को भी इस सम्मान का ऐलान किया जायेगा। क्योंकि संघ भी चाहता है कि सावरकर को भारत र‘ दिया जाए, लेकिन यह कब दिया जाएगा, यह देखना होगा। मुझे लगता है कि दलित वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए कांशीराम को भी दिया जा सकता है। हो सकता है कि चुनाव के पहले इन लोगों को भी यह सम्मान दे दिया जाए। या फिर नई सरकार के गठन के बाद यह फैसला हो। जहां तक राजनीति की बात है तो कांग्रेस के समय भी कई लोगों को सम्मान दिए गए, जिसमें राजनीति का पुट था। जैसे 2014 के चुनाव के पहले सचिन तेंदुलकर को यह सम्मान दिया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव के समय के लिए बहुत कुछ बचाकर रखते हैं। जब तक चुनाव की घोषणा नहीं होती, तब तक वो कोई न कोई कदम जरूर उठाते रहते हैं। नरेंद्र मोदी की यह रणनीति तब से है, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। भारत र‘ हमारे देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। प्राचीन काल से ही हमारे देश में र‘ की परंपरा रही है। आजादी के बाद भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया गया। अभी तक जितने भी भारत र‘ मिले हैं, उसमें प्रधानमंत्री की भूमिका रही है। हमारे देश के महापुरुषों की एक लंबी श्रृंखला है। क्या उन्हें भारत र‘ नहीं मिलना चाहिए।

इसमें बाल गंगाधर तिलक, विवेकानंद, स्वामी दयानंद, विनायक दामोदर सावरकर, माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, डॉ. केशवराव बलीराम हेडगेवार से लेकर कई ऋषि-महर्षि शामिल हैं। यह अपने आप में एक अलग बहस का विषय है। दुनिया में ऐसा कौन होगा, जो ऐसा काम करेगा, जिससे उसका नुकसान हो। यही बात राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर लागू होती है। राजनीति में जो है, वह राजनीति नहीं करेगा तो क्या करेगा? इसलिए राजनीति होगी और फायदे के लिए होगी। राजनीतिक विमर्श देखिए, जून में इस बात से विमर्श शुरू हुआ था कि किसी भी कीमत पर मोदी को हटाना है। जो लोग कल विकल्प बन रहे थे, उन्होंने अब यह कहना शुरू कर दिया है कि हम मोदी को जितायेंगे। जो राजनीति में है, सत्ता तक पहुंचना उसका लक्ष्य होता है। जमीन से जुड़ा जो व्यक्ति है, उसे अहसास है कि आने वाले वक्त में क्या होने जा रहा है। डूबती नाव में कोई सफर नहीं करना चाहता है।

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