दो टूक : अपने समर्थक सपा की दीवार से ही मजबूत ईंट निकाल रही कांग्रेस

राजेश श्रीवास्तव

इन दिनों उत्तर प्रदेश में दो दल जो कभी एक-दृसरे का साथ देने, जीने-मरने की कसमें खाते थे। अब एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहा रहे। जी हां, बात हो रही है समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की। इसमें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने ऐसा अभियान चला रखा है जो अगर कुछ दिन और चला तो जो सपा यह कहती घूम रही है कि यूपी में वह सीट बांटेगी, उसे अपने लिये जिताऊ प्रत्याशी खोजना मुश्किल हो जायेगा। समाजवादी पार्टी का जितना नुकसान भाजपा कभी नहीं कर पायी वह नुकसान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय इन दिनों कर रहे हैं। वह सपा के मजबूत स्तंभों को धीरे-धीरे पार्टी तुड़वाकर अपने हाथ को पकड़वा रहे हैं। लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस काफी सक्रिय हो चुकी है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रचार में कांग्रेस इसी मोड में दिखी है। खासतौर पर यूपी में प्रदेश अध्यक्ष अजय राय सुपर एक्टिव हैं। उनका मानना है कि राहुल गांधी की छवि से यूपी में कांग्रेस चमत्कार कर सकती है। यही वजह है कि पार्टी अपने मूल वोट बैंक को फिर पाने की जुगत में है। राय अपनी सोशल इंजीनियरिंग के बहाने इसे अंजाम देने में जुटे हैं।

दशकों तक यूपी और दिल्ली में राज करने वाली कांग्रेस आज हाशिए पर है । यूपी में उसके पास न तो संगठन बचा न पार्टी के पास अपना वोट बैंक । प्रियंका गांधी ने जब पार्टी की कमान संभाली। यूपी की प्रभारी बनायी गयीं तो पार्टी को ‘प्रियंका दीदी’ से बड़ी उम्मीदें थीं. ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे के साथ प्रियंका ने एक्टिव पॉलिटिक्स में एंट्री ली, पर उनका जादू भी नहीं चल पाया। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बस दो ही सीटों से ही संतोष करना पड़ा। अमेठी से राहुल गांधी की हार के सदमे से यूपी के कांग्रेस अब तक उबर नहीं सकी है। अब पार्टी नेताओं की नजर दूसरे राज्यों के चुनाव पर है। कांग्रेस की जीत ही यूपी के कांग्रेसियों के लिए टॉनिक हो सकता है।

लोकसभा चुनाव को लेकर एक तरफ कांग्रेस अपनी तैयारी में जुटी है तो पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष अजय राय सुपर एक्टिव हैं। उन्हें लगता है राहुल गांधी की छवि के दम पर यूपी में कांग्रेस इस बार चमत्कार कर सकती है। पार्टी फिर से दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण के सहारे अपने खोये जनाधार को पाना चाहती है। हालांकि ब्राह्मण अभी बीजेपी के साथ है। दलितों का झुकाव मायावती के साथ है। जबकि मुसलमान समाजवादी पार्टी के पास । लेकिन कांग्रेस को उम्मीद है कि लोकसभा देश में मुस्लिम समाज अब कांग्रेस को वोट करेगा। इसी उम्मीद से अजय राय पार्टी में सारे कील-कांटों को मजबूत कर रहे हैं। वह अब तक कई दिग्गजों को सपा से तोड़कर कांग्रेस का हाथ मजबूत कर रहे हैं। उधर राहुल गांधी देश में घूम-घूम कर जातिगत जनगणना कराने की बात कह रहे हैं। पर कांग्रेस के पास इन तबकों के नेता ही नहीं हैं। अब बिना चेहरे के उन बिरादरी के वोटरों को कैसे जोड़ा जाए। कांग्रेस इन दिनों इसी पर होम वर्क कर रही है। कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों से इन बिरादरी के नेताओं को तोड़ने की रणनीति बनाई है । कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व अगला लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर लड़ना चाहती है। लेकिन पार्टी के प्रदेश इकाई के लोग तो समाजवादी पार्टी तोड़ने में ही जुट गए हैं।

यूपी में कांग्रेस की नज़र पिछड़ों में कुर्मी वोटर पर है। राज्य में क़रीब छह प्रतिशत कुर्मी मतदाता है। यादवों के बाद राजनैतिक रूप से सबसे अधिक प्रभावशाली इसी बिरादरी के लोग हैं। हालांकि इस समाज का कभी भी कोई सर्वमान्य नेता नहीं रहा। जैसे यादव समाज के लोग मुलायम सिह और फिर अखिलेश यादव के साथ रहे। राजभर बिरादरी के वोटर ओम प्रकाश राजभर को नेता मानते हैं। संजय निषाद निषादों के नेता होने का दावा करते हैं। इसीलिए कांग्रेस ने यूपी में समाजवादी पार्टी के कुर्मी नेताओं को तोड़ने का अभियान चला रखा है। पहले रवि प्रकाश वर्मा को पार्टी में शामिल किया गया। फिर आज एक और मजबूत चेहरा प्रमोद पटेल कांग्रेस बन गए। वे जंग बहादुर पटेल के बेटे हैं। फूलपुर लोकसभा सीट से जंग बहादुर दो बार सांसद रहे। वे समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। रवि प्रकाश वर्मा की तरह वे भी मुलायम सिह के करीबी सहयोगी रहे। समाजवादी पार्टी छोड़ कर कांग्रेस में आने के बाद प्रमोद पटेल ने कहा मुझे वहाँ घुटन हो रही थी। अखिलेश से मिलना मुश्किल था। हम लोग तो नेताजी के कारण इस पार्टी में थे। समाजवादी पार्टी छोड़ने के बाद पूर्व सासंद रवि प्रकाश वर्मा ने भी यही कहा था। वर्मा समाजवादी पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव थे। पार्टी छोड़ने के बाद इन नेताओं का अखिलेश पर नेतृत्व क्षमता की कमी का आरोप लगाना एक राजनैतिक संदेश भी है। ऐसे में क्या कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में गठबंधन संभव है । यह देखने वाली बात होगी।

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