द्वापर युग का इंद्रप्रस्थ है: दिल्ली

  • सदियों से यहां बुना गया राजनीतिक चक्रव्यूह
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

दिल्ली आने पर मेरा मन वृंदावन पहुंच जाता है,मुझे लगता है मैं ब्रज क्षेत्र मे हूं। द्वापर युग का इंद्रप्रस्थ तो यही रहा होगा। जिसे पांडवों‌ ने जंगली भूभाग की सफाई कर बनाया जिसमे साक्षात् विश्वकर्मा ने मदद की। मेरठ यदि रावण की जन्मभूमि क्षेत्र रहा तो मंदोदरी यहां से 100किमी दूर की थी। यह क्षेत्र,जो त्रेता कालीन स्मृतियों का धरोहर रहा तो दिल्ली द्वापर कालीन ऐतिहासिक स्थल रहा। हस्तिनापुर -इंद्रप्रस्थ के बीच करीब दो सौ किमी की दूरी है। 3.30-4 घंटे की वाहन यात्रा करनी होती है। देश का उत्तरी और केंद्रवर्ती भाग साकेत-गोलोक धाम के स्वामियों का परिक्षेत्र है। यह देश का राजनीतिक केंद्र है..आज वही प्रतिष्ठित देश की राजधानी है। जहां से हर काल में राजनीतिक चक्रव्यूह रचा जाता रहा है। हरियाणा मे कुरुक्षेत्र का महासंग्राम हुआ। इसीलिए भारत के आक्रमण कारी जिधर से आए उनकी निगाह दिल्ली मे ही गड़ी रही। धरती, अपना इतिहास दुहराती है। परीक्षित के वंशज हस्तिनापुर -इंद्रप्रस्थ के और श्रीकृष्ण के वंशज कालांतर मे मथुरा के राजा रहे,ऐसा पोराणिक उल्लेख मिलता है।

मुजफ्फर नगर से 25किमी पूर्व शुक्रताल है जहां गंगा के किनारे राजा परीक्षित ने अट्ठासी हजार मुनियों के साथ श्रीमद्भागवत महापुराण सुनी थी। शुक्रताल से 50किमी पूर्व हस्तिनापुर का किला है। गंगा परिक्षेत्र मे ही पितामह भीष्म ने शरीर का त्याग किया था। महाराजा शांतनु ने देवी गंगा से विवाह किया था। हस्तिनापुर गंगा के किनारे ही रहा। जब कि मथुरा -वृंदावन -दिल्ली यमुना किनारे संप्रति हम है। गंगा और यमुना के बीच का क्षेत्र ब्रज क्षेत्र है,जो राजस्थान तक अपनी छाप छोड़ जाता है। हम जबकि अवध क्षेत्र कानपुर-उन्नाव अयोध्या गोंडा, बस्ती ,अंबेडकर नगर, प्रयागराज, बांदा ,चित्रकूट (मध्य प्रदेश कि सीमा) पन्ना,खजुराहो विंध्य क्षेत्र मिर्जापुर बलिया काशी आजमगढ देवरिया गोरखपुर महाराज गंज सिद्धार्थनगर आदि है। बिहार मिथिलांचल है,जहां मैथिली बोली है।

दिल्ली मे रह कर हमें पुराने भरत खंड की स्मृतियां होआई।भारत वर्ष का पुराना वैभव और पुरातात्विक अनुभूतियां मन मे प्रकट हुईं। हमे पुराना वैभव दिखने लगा। विद्वानों की नगरी #काशी, #प्रयाग मध्यप्रदेश मे #उज्जैन,बिहार मे राजगिरि मे #वैशाली और पश्चिम के सिंध प्रांत मे #तक्षशिला सब स्मरण होआया। आसमुद्र पर्यंत चक्रवर्ती महाराजा दशरथ का राज्य रहा।दक्षिण कौशल झारखंड के रायपुर अंतर्गत चंद्रखुरी की रहने वाली कौशल्या जी थीं ,कैकेयी पंजाब प्रांत की थीं जब कि सुमित्रा जी बिहार के राजगिरि क्षेत्र की थीं। तो उत्तर कौशल मे अयोध्या रघुवंशियो ने राजधानी बनाई। जिसमें अलग अलग भाषा भाषी भी लोग रहे। कालांतर मे सुरक्षा हेतु रावण ने लंका मे अपनी राजधानी बनाई थी। वहीं से अयोध्या के राजवंश को घेरता रहा।द्वापर युग मे हस्तिनापुर के राजा शांतनु थे जिनके वंशज कौरव पांडव थे। गांधारी आज के कंधार की थीं।जरासंध मिथिलांचल से कंस को दामाद बनाकर इस ब्रजक्षेत्र को कब्जा करने का प्रयत्न करता रहा। उप्र-बिहार का संबंध बहुत पुराना है। अधिकांशत: दक्षिण भारत आचार्यों का केंद्र रहा। सनातन धर्म को समय समय पर दिशा देने वाले वैष्णव आचार्य हों या शैवाचार्य अधिकांश दक्षिण भारत के थे। तंत्राचार्य -अधिकांशत: पूर्व के( बंगाल- आसाम) तथा भक्तों की शाखायें..बंगाल,उड़ीसा ,उप्र,बिहार, आदि क्षेत्रों के रहे। वैसे किसी को एक क्षेत्र से बांधा नही जासकता।

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