कविता : झूठे बोल अमीर के जी हाँ जी हाँ होय

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

कही जो बात गरीब ने सत्य न माने कोय।
झूठे बोल अमीर के जी हाँ, जी हाँ होय॥

मान नहीं इंसान का धन पद का है होत।
सत्य झूठ की जाँच भी धन पद से ही होत।

सर्दी गर्मी देखकर वस्त्र बदलते लोग,
हर स्थित के वस्त्र हों ऐसा हो संयोग।

ऐसी मर्ज़ी प्रभू की किंचित भी जो होय,
होनी तो होकर रहे अनहोनी क्यों होय।

भाग्यवान वे होत हैं जो क्षमा कर देत,
पाकर जिन्हें पराये हैं अपने बन जात।

भाग्यहीन जो होत हैं, अहंकार होय जात,
अपने ना अपने रहत सब पराये होय जात।

ईंटें पत्थर से बना घर लेना सहज दिखात,
मकान को घर बना लें है मुश्किल दिखात।

घर बनाने के लिये प्रेम की ईंटे चाहिये,
त्याग का गारा, सहिष्णु होना चाहिये।

चाहे कोई झूठ हो या मन में हो मैल,
रिश्ते जाते दरक हैं फेल होत है खेल।

आदित्य चतुराई भरी, है समक्ष आ जात,
ऐसी बातें कभी भी हैं ना हीं छिप पात।

 

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