2024 के लिए मोदी कॉन्फिडेंट नहीं है..?

 डॉ. ओपी मिश्रा
  डॉ. ओपी मिश्रा

15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से जिन भी लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्र के नाम सम्बोधन सुना। उनके मन में पता नहीं क्यों यह सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के लिए ‘कॉन्फिडेंट’ नहीं है? और अगर कॉन्फिडेंट है तो फिर उन्होंने लाल किला की प्राचीर का इस्तेमाल अपने राजनीतिक भाषण देने के लिए क्यों किया? आखिर क्या मजबूरी आ पड़ी कि उन्हें देश के मतदाताओं से ‘आशीर्वाद’ मांगने की जरूरत पड़ गयी? पीएम मोदी को नजदीक से जानने वाले लोग यह बात भली-भांति जानते हैं कि वह आशीर्वाद देने और लेने दोनों में विश्वास नहीं करते। अधिकांश प्रबुद्ध वर्ग यह बात भली-भांति जानता है कि पब्लिक मीटिंग, पार्टी मीटिंग, चुनावी रैली तथा संसद के अंदर बोलने और लाल किले की प्राचीर से बोलने में जमीन आसमान का अंतर होता है।

स्वतंत्रता दिवस यानि 15 अगस्त को जब प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित कर रहे होते हैं तो उस संबोधन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सुना जाता है, देखा जाता है। इतना ही नहीं उस भाषण की कापी और अब तो वीडियो सभी दूतावासों को भेजा जाता है। क्योंकि उस भाषण में प्रधानमंत्री का या सरकार का ‘स्पष्ट विजन’ होता है, उपलब्धियां खाका होता है तथा सरकार आगे क्या करने वाली है इसका भी जिक्र होता है। लेकिन 2023 के भाषण में तो प्रधानमंत्री ने एक हजार साल की गुलामी के पन्नों को पढ़ते हुए यह बताने का प्रयास किया कि एक हजार साल बाद भारत कैसा दिखेगा।

यह तो वही हुआ  ‘समान सौ बरस का है, पल की खबर नहीं’। प्रधानमंत्री मोदी का भाषण सुनने वाले  लोगों को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि प्रधानमंत्री यह क्यों कह रहे हैं कि 2024 में वह फिर आ रहे हैं? इस फिर आने के गूढ तलाश से जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि क्या वे अपनी पार्टी की जीत के प्रति आस्वस्त नहीं है? और अगर  आस्वस्त है तो अपने कार्यकाल के अंतिम भाषण में उन्होंने भाइयों और बहनों के स्थान पर परिवार जनों का प्रयोग क्यों किया? भक्त कहेंगे कि यह कहकर पीएम ने देशवासियों का एक तरह से सम्मान हीं किया है। चलो मान लिया कि सम्मान किया है तो फिर 9 वर्ष बाद आशीर्वाद और परिवारजन की याद क्यों किया? क्यों यह कहना पड़ा कि यदि 2024 में भी ना आए तो जो कथित दूसरी आजादी 2014 में आयी है उसका बंटाधार हो जाएगा।

इसलिए उनका आना बहुत जरूरी है। उन्हें यह क्यों बताना पड़ा कि अगर हम नहीं होंगे तो क्या होगा? उन्हें मोदी के होने का मतलब भी बताना पड़ा, यानि मोदी है तो मुमकिन है। अपने 90 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री ने 2024 में पुनः आने का संकल्प तो दोहराया लेकिन यह नहीं बताया कि जो सपना उन्होंने देशवासियों को 2014 में दिखाया था उसका क्या हुआ? प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार, परिवारवाद तथा तुष्टीकरण पर प्रहार करते हुए विपक्ष को तो घेरने की जरूर कोशिश की। लेकिन यह बात डंके  की चोट पर नहीं कह सके की भाजपा में या उनकी सरकार में भ्रष्टाचार, परिवारवाद तथा तुष्टीकरण नहीं है। उन्होंने ओबीसी समाज को पुकारने और उनको सहलाने में कतई कोताही नहीं की।  क्योंकि उनकी नजर एक बड़े वोट बैंक पर है। यही कारण रहा कि उन्होंने विश्वकर्मा जयंती की विस्तार से चर्चा की। ‘इंदिरा इज इंडिया’ और ‘इंडिया इज इंदिरा’ की आलोचना करने वाले भक्त जनों को पूरे भाषण में शायद यह एहसास ही नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी भी तो सब कुछ ‘मैं’ पर ही ले आए हैं।

यानी अगर मैं नहीं तो कुछ नहीं यदि मैं नहीं तो भाजपा नहीं, मैं नहीं तो सरकार नहीं और अगर मैं नहीं तो जीत भी नहीं। वैसे इस बात में कोई दो राय नहीं की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाषण की कला में माहिर है लेकिन 15 अगस्त 2023 में लाल किले की प्राचीर से जो उन्होंने भाषण दिया उससे ‘आक्रामकता’ थी ‘संवेदनशीलता’ नहीं। उनके अंदर कथित तौर से ‘गर्व’ का भाव था लेकिन जो 155 करोड़ का देश पर कर्जा है उसका कोई जिक्र नहीं था।  क्या ही अच्छा होता यदि मणिपुर नूहॅ तथा ट्रेन में हुई मौतों का भी वे गंभीरता से जिक्र करते और बताते कि भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति नहीं होगी।

यह हमारा दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है? किसी प्रधानमंत्री ने पहली बार स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से चुनावी भाषण दिया। क्या ही अच्छा होता कि वे इससे बचते और विपक्ष की आलोचना तथा प्रबुद्ध जनों की टिप्पणियों से भी बच जाते। क्योंकि चुनाव में मतदाता किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि पार्टी को चुनता है और पार्टी अपना नेता चुनती। जो प्रधानमंत्री बनता है  अब 2024 में मतदाता किसको चुनेगा यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा कि वे ही आ रहे हैं। वह अपने आप में हास्यापद ही है। और  शायद लोग इसे हजम नहीं कर पा रहे हैं। यहां तक कि भाजपा और संघ परिवार भी दुविधा में है और सोच रहा है कि क्या “वन मैन शो” के जरिए 2024 जीता जा सकता है।

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