गठबंधन का खौफ ही है जो एक एक वोटरों को सहेजना चाह रहे मोदी

यशोदा श्रीवास्तव


लखनऊ। तय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा जमकर पिछड़ा वर्ग कार्ड खेलने जा रही है। यूपी में फिलहाल भाजपा का यह गेम पक्का है। प्रधानमंत्री मोदी की एक खासियत का सबको कायल होना चाहिए कि वे मौका कोई भी हो वोटरों तक अपना मैसेज दे ही देते हैं। केंद्रीय सत्ता की दृष्टि से यूपी का बड़ा महत्व है। यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं। माना जाता है कि यूपी जो फतह कर लिया, केंद्र की सत्ता उसके हाथ। लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन को भाजपा भले ही हल्के में लेने का दिखावा करे,अंदर से इसका खौफ तो उसे है ही। यही वजह है कि मोदी यूपी में अपने एक एक वोटरों को सहेजने की हर कोशिश में लगे हुए हैं। बताने की जरूरत नहीं कि विपक्ष का चेहरा जो भी भाजपा का चेहरा मोदी ही होंगे। अभी कुछ माह पहले यूपी में हुए नगर निकाय के चुनाव भाजपा के लिए बहुत उत्साहजनक नहीं रहे। 17 नगर निगमों पर भाजपा भले ही काबिज है लेकिन इसे आगरा, मुरादाबाद, मथुरा और गोरखपुर नगर निगम के चुनाव में विपक्षी उम्मीदवारों से कड़ी टक्कर से गुजरना पड़ा। 199 नगरपालिका तथा 544 नगर पंचायतों में इनकी एक तरफा जीत नहीं हुई ।लोकसभा चुनाव के पहले ये चुनाव उसके लिटमस टेस्ट के रूप में देखे जा रहे हैं। इसके पहले 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सपा से कड़ी टक्कर मिली। भाजपा इस सब पर गौर करते हुए अपनी चुनावी रणनीति बनाने में जुट गई है।

अभी सात जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी के गोरखपुर आगमन पर महराजगंज के सांसद और केंद्र में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी के गोरखपुर स्थित आवास पर जाने का संकेत साफ है। पंकज चौधरी पिछड़े वर्ग से आते हैं और महराजगंज से लगातार छठवीं बार भाजपा के सांसद हैं। डेढ़ साल पहले मोदी ने इन्हें अपने मंत्रिमंडल में बतौर वित्त राज्य मंत्री दाखिल किया है। पूर्वांचल की राजनीति में कांग्रेस शासन में कुर्मी ठाकुर आरपीएन सिंह के बाद पंकज चौधरी संभवतः पिछड़े वर्ग से दूसरे केंद्रीय मंत्री हैं। आरपीएन सिंह भी अब भाजपा में ही हैं।

बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी का रायपुर से सीधे गोरखपुर आकर रेलवे स्टेशन पर बंदे भारत ट्रेन को अयोध्या होते हुए लखनऊ के लिए हरी झंडी दिखाना और गीता प्रेस के भ्रमण का दो कार्यक्रम था। गोरखपुर अब तक आने वाले प्रधानमंत्रियों का प्रमुख कार्यक्रम गोरखनाथ मंदिर जाना भी होता था। इस बार भी मोदी के तीसरे कार्यक्रम में मंदिर जाने का कयास था लेकिन उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के सहयोगी पंकज चौधरी के यहां जाने का फैसला किया। लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री का यह अचानक का लिया गया फैसला था लेकिन ऐसा नहीं है। यह मोदी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा था जिसका संदेश भी साफ था।

माना जा रहा है कि आसन्न लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नीति गठबंधन में सपा की भूमिका कमतर नहीं होगी। यूपी में सपा निःसंदेह पिछड़ों की पार्टी है। दलित वोट जिस पर बसपा का एकाधिकार था, भाजपा उसे तोड़ने में कामयाब हुई है। इसका उदाहरण यही है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा के सिर्फ एक उम्मीदवार ही जीत पाया। पिछड़े अभी भी सपा को अपने हित की पार्टी मान कर चल रहे हैं। भाजपा पूरी कोशिश में है कि सपा से पिछड़े वर्ग के वोटरों को अपनी ओर खींचा जाय। पश्चिमी यूपी में मोहित यादव नामक एक युवा नेता को भाजपा ने पार्टी में शामिल किया है। मोहित यादव सपा सुप्रीमो स्व.मुलायम सिंह के निकटवर्ती हर शरन सिंह यादव के पौत्र हैं और वे अखिलेश यादव की तरह विदेश से पढ़ाई कर राजनीति में प्रवेश किए हैं। उनके दादा और पिता दोनों पिछड़े वर्ग के बड़े नेता थे। वे लोग राज्य सभा और विधान परिषद में भी रहे। लोकसभा चुनाव में अखिलेश के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भाजपा इस युवा नेता का भरपूर इस्तेमाल जरूर करेगी।

पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति पर गौर करें तो यहां एक दर्जन लोकसभा सीटों पर पिछड़े वर्ग के वोटर ही निर्णायक होते रहे हैं। यहां यादव के बाद कुर्मी मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। यहां भाजपा के बाद सपा ही है जो पिछड़ों पर पकड़ रखती है। कांग्रेस के पास फिलहाल पूरे यूपी में जातिय अंकगणित का नेता ही नहीं है। पार्टी इससे बेफिक्र भी है। भाजपा कांग्रेस के इस बेफिक्री का पूरा का पूरा फायदा उठाना चाहेगी। भाजपा अपना जातीय अंकगणित इसलिए दुरुस्त कर रही क्योंकि उसे इस बात का खतरा भी है कि विपक्षी गठबंधन का फार्मूला यदि कामयाब हुआ तो उसे कई सीटों पर विपक्षी गठबंधन उम्मीदवारों से कड़े मुकाबले से जूझना पड़ सकता है।

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