दो टूक : विपक्ष नहीं बन पा रहा 2024 में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती

राजेश श्रीवास्तव


वर्ष 2024 का लोकसभ्ज्ञा चुनाव बेहद करीब है ओर अब समय बचा है जोड़-तोड़ का और अपनी रणनीति को अमली जामा पहनाने का। दोनों ओर से तैयारिंयां तेज हैं एक ओर सत्तापक्ष यानि कि भाजपा समर्थित राजग है तो दूसरी ओर कांग्रेस की अगुवाई वाला विपक्ष। पहले बात कर लेते हैं विपक्ष की। जिसकी ओर देश का एक बड़ा वर्ग इस उम्मीद से देख रहा है कि वह शायद देश को भाजपा से मुक्ति दिला सके। लेकिन अगर विपक्ष की रणनीति को देखेंगे तो साफ हो जाता है कि वह जिस रीति-नीति पर चल रहे हैं उससे भाजपा की पेशानी पर बल पड़ना तो बहुत दूर उसके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं दिख रहा है। कल से विपक्ष अपनी बड़ी बैठक करने जा रहा है।

लेकिन अंदरखाने देखेंगे तो साफ है कि कई मुद्दे ऐसे हैं जो विपक्ष की एकता पर पलीता लगा रहे हैं। मसलन विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा, नीतिश कुमार, राहुल गांधी या फिर कोई और। राहुल और नीतिश तो प्रबल दावेदार हैं। दूसरा मुद्दा विपक्षी दलों को एक गाइडलाइन पर चलाना भी मुश्किल है। दो राज्यों में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी अपने अध्यादेश को लेकर चिंतित है और वह कांग्रेस से ही लड़कर यहां तक पहुंची है ऐसे में वह कांग्रेस का कितना साथ देगी, यह देखने वाली बात होगी। शरद पवार भी अब इस क्षमता में नहीं हैं कि वह अपने महाराष्ट्र में भी पार्टी को कोई चुनौती दे सकें। कुछ उम्मीदें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से जरूर दिखती हैं वह अपने राज्य में भाजपा के सामने बड़ा विकल्प बनने की स्थिति में हैं। अगर उत्तर प्रदेश की बात करें जो सबसे बड़ा राज्य हैं और यहीं से भाजपा को सबसे ज्यादा ऊर्जा मिलने की उम्मीद है। यहां उसका रास्ता रोकने के लिए अगर कोई दल सक्षम है तो वह है अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टीã ।

लेकिन अगर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव जब से बने हैं तब से उनका रिकार्ड देखेंगे तो मिलेगा कि वह एक भी चुनाव नहीं जीत सके हैं, यानि ऐसी स्थिति में भी नहीं रहे कि सम्मानजनक सीटें भी दिला सके हैं। हाल-फिलहाल की बात करें तो उन्होंने पिछले चुनाव में भी जिन दलों से हाथ मिलाया था, वह भी हाथ झटक कर दूर चले गये हैं। कहते हैं कि जब अपना कोई दुश्मन बनता है तो बड़ी मुसीबत खड़ी करता है। सपा की भी हालत ऐसी ही है। महान दल के केशव देव मौर्य बसपा के ख्ोमे को बढ़ाते दिख रहे हैं। सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर भाजपा के साथ दौड़ते दिख रहे हैं। उधर करीब आये दारा सिंह चौहान भाजपा छोड़ चुके हैं और तो और कई और बड़े विधायक भाजपा का कमल खिलाने को आतुर हैं। और अगर इन सबका ठीक से विश्लेषण करेंगे तो पायेंगे कि दोषी अखिलेश ही हैं। चुनाव के बाद उन्होंने सहयोगी दलों से किनारा कर लिया। किसी की गाड़ी वापस ले ली तो किसी को बैठकों से दूर कर दिया। किसी की हैसियत बतानी शुरू कर दी तो दारा सिंह चौहान का चुनाव जीतने के बावजूद उनके हाल पर छोड़ दिया उनकी बेटी की शादी तक में नहीं पहुंचे। जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव हारे फिर भी उन्हें संगठन में जगह दी और एमएलसी बनाया। रालोद के जयंत चौधरी भी खीर खाने को आतुर दिख रहे हैं। अखिलेश की इसी लचर नीति के चलते यह साफ कहा जा सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वह भाजपा को कितनी बड़ी चुनौती दे पायेंगे, यह यक्ष प्रश्न है।

अब बात सत्तारूढ़ दल भाजपा की। अभी अगस्त माह में ही अमित शाह की मुलाकात शरद पवार से होनी हैं। हरियाणा में भी ईडी के सहारे उन्होनें सेंध लगा ही दी है। भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने बिहार और उत्तर प्रदेश में खासा जोर लगा रखा है। कहा जा रहा है कि इन दिनों बिहार में सरकार में तेजस्वी के तेजी से दखल के चलते कई लोग नाराज हैं और उनकी कार्यशैली से जनता में भी आक्रोश है। चूंकि नीतिश मजबूर हैं इसलिए ज्यादा दबाव नहीं डाल पा रहे हैं। ऐसे में भाजपा के लिए बिहार में भी कुछ राह सुगम हुई है। यही हाल उत्तर प्रदेश का है वहां पर भाजपा के सबसे मजबूत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। जहां बसपा उसके कांदो से कांधा मिलाकर खड़ी है। कांग्रेस कितनी सीटों पर चुनौती दे पायेगी, यह कहना मुश्किल है । सिर्फ कुछ चुनौती है तो सपा से, इसीलिए भाजपा अभी सपा तोड़ो अभियान चला रही है। कहा जा रहा है कि करीब दर्जन भर विधायक एक महीने के भीतर कमल खिलाते दिखाएंगे।। लिहाजा साफ है कि भाजपा के सामने विपक्ष हाल-फिलहाल बड़ी चुनौती बनता नहीं दिख रहा है।

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