बच्चों का पौष्टिक आहार खाकर अफसर हो रहे मालामाल!

राजधानी की बाल विकास परियोजनाएं बदहाल

कहीं आंगनबाड़ी में बच्चे नहीं, तो कहीं बच्चो को बैठाने के लिए कमरा नहीं


आर के यादव


लखनऊ। राजधानी में बाल विकास सेवा एवं पुष्टहार की परियोजनाओं का हाल बेहाल है। परियोजनाओं के 500 फीसद केंद्रों में कार्यत्रियां हैे तो सहायिका नहीं, सहायिका है तो कार्यकत्री नहीं। ऐसे में आगंनबाड़ी कार्यकत्रियों का संचालन सिर्फ कागजों पर चल रहे है। हकीकत यह है कि आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए मिल रहे पौष्टिक आहार को बेचकर अफसर मालामाल हो रहे है। दिलचस्प बात तो यह है कि विभाग के आला अफसर सब कुछ जानकर अंजान बने हुए है। जिम्मेदार तो इस गंभीर मसले पर कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं।

मिली जानकारी के मुताबिक वर्तमान समय में राजधानी लखनऊ में करीब पौने चार हजार छोटी बड़ी परियोजनाएं चल रही है। इन परियोजनाओं का संचालन आंगनबाड़ी कार्यकत्री एवं सहायिकाओं के माध्यम से हो रहा है। 800 से 1000 की आबादी पर एक आंगबाड़ी केंद्र संचालित होता है। केंद्र पर एक आंगनबाड़ी कार्यकत्री व एक सहायिका को तैनात किए जाने का प्रावधान है। बताया गया है कि वर्तमान समय में कार्यकत्रियों की कमी होने की वजह से एक-एक कार्यकत्री के पास दो से तीन केंद्रों की जिम्मेदारी सौंप रखी गई है। यही नहीं दर्जनों की संख्या में केंद्र पर सहायिका तक उपलब्ध नहीं हैं।

विभागीय सूत्रों का कहना है कि विभाग की परियोजनाओं में पचास फीसदी कर्मियों की तैनाती सीधी भरती से होती है और पचास फीसदी पद प्रोन्नति से भरे जाते है। विभाग में लंबे समय से सीडीपीओ और मुख्य सेविकाओं के आधे से अधिक पद खाली पड़े हुए हैं। प्रोन्नति नहीं होने की वजह से कार्यकत्री ही नहीं मुख्य सेविकाओं को भी कई परियोजनाओं का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। बताया गया है कि जो कार्यकत्री व सहायिका तैनात भी हैं उन्हें समय पर मानदेय भी नहीं दिया जाता है।
राजधानी में चल रही पौने चार हजार परियोजनाओं का यह हाल है कि कही मुख्य सेविका के पास कमरा नहीं है तो किसी के पास बच्चो को वितरित किए जाने वाले पौष्टिक आहार को रखने की जगह नहीं है। कई का यह हाल है कि केंद्र की मुख्य सेविका रहती कहीं और है और केंद्र उसका कही और है।

सूत्रों की माने तो आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों और शिशुओं को वितरित करने के लिए आने वाले पौष्टिक आहार को बाजार में बेचकर अधिकारी और कार्यकत्री मालामाल हो रहे है। हकीकत यह है कि आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों की संख्या न के बराबर होती है। केंद्रों का निरीक्षण होने के दौरान मुख्य सेविकाएं केंद्र के आसपास रहने वाले परिवार की महिलाओं से मिन्नतें कर कुछ समय के लिए उन्हें केंद्रों पर बुलाकर औपचारिकताएं पूरी कर लेती है। इसके एवज में चुनिंदा कुछ बच्चों को आहार वितरित करने की औपचारिकता भी पूरी कर देती है। इस सत्य की पुष्टि आंगनबाड़ी केंद्रों का निरीक्षण कर आसानी से को जा सकती है।

डीपीओ नहीं उठाते फोन

राजधानी के आंगनबाड़ी की अस्त व्यस्त व्यवस्थाओं के संबंध एम जब जिला परियोजना अधिकारी अखिलेंद्र दुबे से बात करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने तमाम प्रयासों के बाद भी फोन नहीं उठाया। विभाग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि वह आला अफसरों के करीबी होने की वजह से अपने वरिष्ठ अधिकारियो तक का फोन नहीं उठाते है। उधर जब बाल विकास एवम पुष्टाहार मंत्री बेबी रानी मौर्य से संपर्क करने का प्रयास किया तो उन्होंने कोई जवाब देने के बजाय बात ही नहीं की।

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