अग्निकर्म अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान का चमत्कार

लखनऊ। अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली में विभिन्न प्रकार के रोगों का इलाज आयुर्वेद के माध्यम से किया जाता है। निश्चित रूप से इलाज की पद्धतियां बहुत ही अलग और अनोखी होते हैं बहुत सी पद्धतियों को आप सब जानते ही होंगे ।आयुर्वेद की पंचकर्म पद्धति से तो लगभग आप परिचित होंगे, आइए आज आपको अग्निकर्मा( थर्मल माइक्रोक्यूटरी )के बारे में बताते हैं। लोह,ताम्र, रजत, वंग, कांस्य या मिश्रित धातु से बनी अग्नि शलाका से रोगी के शरीर के दर्द वाले हिस्से पर विशेष उर्जा (गर्मी) देकर राहत दिलाने की सदियों पुरानी तकनीक ही “अग्निकर्म’ है। यह शरीर की विभिन्न मांसपेशियों और उनके विकारों को दूर करने के लिए उपयोगी है। इससे उपचार करने पर मरीज को कोई कष्ट महसूस नहीं होता।अग्निकर्म में शलाका यंत्र से शरीर के एक ही भाग पर उष्णता भेज दी जाती है| इससे वात तुरंत कम होके दर्द कम हो जाता है| ये चिकित्सा सिर्फ अगर ज्यादा दर्द हो और एक ही भाग पे हो तो बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकती है।

ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद विभाग के प्रोफेसर डॉ आनंदरमन ने बताया कि घुटने, कमर दर्द, एड़ी, मोच, सिर दर्द, कटिस्नायुशूल और गठिया जैसे रोगों के उपचार के लिए अग्निकर्म कारगर है। इससे उपचार करने में सामान्यतया एक बार में दो से पांच मिनट ही लगते हैं और मरीज को तात्कालिक लाभ भी महसूस होता है।सियाटिका जैसे असहनीय और लंबे दर्द से बहुत वर्षों से परेशान लोगों को पांच मिनट में इस पद्धति के द्वारा राहत प्राप्त करते है। डॉक्टर अनंतरमन के निर्देशन में डॉक्टर लतिका और उनकी टीम इस चिकित्सा को संपन्न करते हैं । अग्निकर्मा (चिकित्सीय गर्मी जलाना) में बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के स्थानीय वात और कफ दोष को संतुलित करके दर्द से तुरंत राहत देता है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले रोगी को सीधा लिटाया जाता है और दर्द के अनुसार यदि मान लीजिए दर्द एड़ी में हो रहा है तो उसे सीधा लिटा कर एड़ी में दग्ध व्रण के ओवरलैपिंग से बचने के लिए दो अग्निकर्म बिंदुओं के बीच न्यूनतम स्थान निर्धारित किया जाता है अर्थात कुछ पॉइंट निश्चित कर लिए जाते हैं इनके बीच एक न्यूनतम दूरी होती है और इसे गर्म शलाका से ऊतक स्तर पर जलाया जाता है।

दहन के उपकरण स्थान विशेष एवं अन्य की तीव्रता के आधार पर अलग-अलग प्रयोग किए जाते हैं। अग्निकर्म के बाद ताजा घृतकुमारी का गूदा दग्ध पर लगाने से जलन के दर्द में राहत मिलती है। इसी प्रकार घुटने कमर और गर्दन के पीछे के दर्द का इलाज किया जाता है। घृतकुमारी एलुवेरा के गुदे से उन बिंदुओं पर लेप करने के कुछ समय बाद घी और शहद लगाकर छोड़ दिया जाता है लगभग चार घंटे तक पानी से पैर यह जिस अंग में चिकित्सा हुईं है, को बचाया जाता है। यह बात अलग है कि जैसे ही आप ड्रेसिंग टेबल से नीचे उतरेंगे आपको दर्द छूमंतर महसूस होगा ,थोड़ी सी जलने के दर्द के साथ और वह भी कुछ घंटों बाद नहीं रहता। निश्चित रूप से इस बात पर यकीन करना मुश्किल है कि आयुर्वेद के पास बहुत ही विलक्षण तकनीक आज भी है हमें एलोपैथिक दवाओं के पीछे भागने से बचना चाहिए तथा बिना किसी साइड इफेक्ट के आयुर्वेद के इन विलक्षण तकनीकों का इस्तेमाल गृध्रसी ( सियाटिका ) असहनीय दर्द को खत्म करने के लिए करना चाहिए।

अग्निकर्म उपचार के उपरांत ठीक हुए रोग की पुनरावृत्ति नहीं होती क्योंकि इस प्रक्रिया में शलाका द्वारा अग्निकर्म उत्तक स्तर पर होता है अतः रक्तस्राव भी नहीं होता जिस कारण पकने और पस इत्यादि की समस्या भी भविष्य में उत्पन्न नहीं होती । अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली की डायरेक्टर प्रोफेसर तनुजा मनोज नेसरी ने बताया कि औषधि द्वारा असाध्य रोग भी अग्निकर्म द्वारा नियंत्रित किए जा सकते हैंऔर आयुर्वेद संस्थान की पूरी कुशल टीम इस प्रकार की चिकित्सा में वरद हस्त है अतः देश के सभी इस प्रकार के रोगियों से अनुरोध है कि इस सरल चिकित्सा से अपना इलाज कराएं ताकि उन्हें दर्द से शीघ्र राहत मिल सके। निश्चित रूप से अग्निकर्म जैसी आयुर्वेद पद्धति का यह मेरा अनुभव है और आशा ही नहीं यह विश्वास है कि आज भी अत्याधुनिक,वैश्वीकरण और भौतिकवादी युग में अक्सर महिलाएं एड़ी कमर और घुटनों के दर्द से परेशान रहती हैं और अग्निकर्म चिकित्सा उनके इस दर्द से राहत का एक आसान उपाय है।

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