माँ मतलब ममता, मोहब्बत और दुआ

मां। …सिर्फ एक शब्द। मगर यह शब्द समुद्र से गहरा है। आकाश से बड़ा है। पाताल से ज्यादा गहरा। दुनिया का सारा रंग इसके समक्ष फीका। माँ यानी ममता की प्रतिमूर्ति। माँ मतलब अनंत प्यार का सागर। माँ अर्थात् आशीर्वाद से लबरेज़।


मंजू शुक्ला
मंजू शुक्ला

उम्र के सौवें पड़ाव पर पहुँची प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माँ हीरा बाँ 30 दिसम्बर को आखिरी साँस ली। ब्रह्मबेला में सुबह के साढ़े तीन बजे उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। सनातन धर्म में मान्यता है कि ब्रह्मबेला में जो अपनी देह छोड़ता है, उसे सीधे महामोक्ष की प्राप्ति होती है। अत्यंत ही सादगी के साथ माँ हीराबेन के पाँचों पुत्रों ने उन्हें मुखाग्नि दी। अंतत: उनकी यह नश्वर देह पंचतत्व में विलीन हो गई। एक प्रधानमंत्री के रूप में नहीं, बल्कि एक बेटे का फर्ज़़ नरेंद्र मोदी ने उस समय निभाया, जब उन्होंने डबडबाई आँखों में माँ को मुखाग्नि देकर अग्नि के हवाले किया।

मां। …सिर्फ़ एक शब्द। मगर यह शब्द समुद्र से गहरा है। आकाश से बड़ा है। पाताल से ज्यादा गहरा। दुनिया का सारा रंग इसके समक्ष फीका। माँ यानी ममता की प्रतिमूर्ति। माँ मतलब अनंत प्यार का सागर। माँ अर्थात् आशीर्वाद से लबरेज़। बीते वर्ष जब हीराबा ने जीवन के शताब्दी साल में क़दमताल किया था तो प्रधानमंत्री मोदी ने नहीं बल्कि बेटे नरेंद्र ने अत्यंत भावनात्मक ब्लॉग लिखा था-‘मेरी माँ जितनी सामान्य है, उतनी ही असाधारण भी। हर माँ की तरह। माँ ने सिखाया था-‘जिंदगी जियो शुद्धि से, काम करो बुद्धि से।’ कभी घूस मत खाना। कुछ ग़लत नहीं करना। किसी का बुरा न करना। मां की सोच दूरदर्शी थी। मेरी माँ मातृशक्ति की प्रतीक थी। अभाव में हमें पाला। कर्तव्यपथ पर बढऩे का गुरुमंत्र दिया। माँ की गाथा तपस्या से भरी है। एक गौरवशाली माँ। संघर्ष करने वाली माँ। दृढ़संकल्प वाली माँ। माता बच्चों की जान होती है। वे होते है किस्मत वाले जिनकी माँ होती है।’ हीराबां। पीएम की माँ होने के बावजूद सादगी के भरपूर थी। सुर्खियों से दूर थीं। सभी पड़ोसियों के सुख-दुख की साथी थीं। गांधीनगर की वृंदावन बंगला-2 सोसायटी की कीर्ति बेन पटेल ने नम नेत्रों से बताया कि लगता है उन्होंने अपनी माँ को खो दिया।

यकीनन स्मृतियों में डूबकर आँखें तालाब हो जाती हैं। स्मृति तो उस पागल लडक़ी की तरह होती है जो रंगीन चीथड़े को भी संजो कर रखती है। माँ हीराबा का नश्वर शरीर जब आग में जल रहा था, तो वहाँ खड़े नरेंद्र मोदी यादों के समुद्र में हिचकोले खा रहे थे। मगर मौत की किसी का भी नियंत्रण नहीं है। तभी तो फि़ल्म आनंद का डॉयलॉग है-‘…बाबू मोशाय, जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहाँपनाह। उसे न तो आप बदल सकते हैं और न मैं। …हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं, जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथों में बंधी है। कब, कौन, कैसे उठेगा यह कोई नहीं जानता। …हाँ…हाँ।’ इसी फि़ल्म की एक कविता यूँ है- ‘मौत तो एक कविता है, मुझसे इस कविता का वायदा है कि मिलेगी मुझको, डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे, ज़र्द का चेहरा लिए चाँद ऊपर तक पहुँचे। दिन अभी पानी में हो और रात किनारे के कऱीब। न अंधेरा, न उजाला हो, न अभी रात न दिन। जिस्म जब ख़त्म हो जाए और रूह को साँस आए, मुझसे एक कविता का वायदा है मिलेगी मुझको।’

बहरहाल जो जन्म लेता है, उसे एक न एक दिन दुनिया छोडऩा ही पड़ता है। नरेंद्र मोदी भाग्यशाली रहे कि उनकी माँ ने बेटे को तीन बार मुख्यमंत्री और दो मर्तबा प्रधानमंत्री बनते देखा। इसीलिए हमेशा माँ के दिए अल्फ़ाज़ को ज़ेहन में बिठाकर वे दिन की शुरुआत करते थे। सचमुच वे खुशकिस्मत रहे कि उनके साथ माँ थी। अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, नीतू सिंह, परवीन बॉबी और निरुपमा राय अभिनीत फि़ल्म दीवार का एक डॉयलाग अभी बहुत मौजूं लगता है- ‘आज मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बॅलेन्स है, तुम्हारे पास क्या है-मेरे पास माँ है।’ उस फि़ल्म में रुपहले परदे पर शशि कपूर और अमिताभ बच्चन सहोदर भाई बने थे। अमिताभ बच्चन गऱीबी से त्रस्त होकर अपराध का रास्ता चुन लिया था। लेकिन शशि कपूर पुलिस ऑफि़सर थे। हीराबा का नश्वर शरीर तो नष्ट हो गया, लेकिन माँ के आशीर्वाद से नरेंद्र मोदी फलते-फूलते रहेंगे।

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