प्रेरणादायक है द्रौपदी मुर्मू का जीवन

दिलीप अग्निहोत्री


साधारण वनवासी परिवार में जन्म लेने वाली द्रौपदी मुर्मू आज देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हैं। उन्होने जीवन में बहुत संघर्ष किया। लेकिन भी विचलित नहीं हुई। विचार धारा पर आधारित समाज सेवा के पर चलती रहीं। भाजपा में उन्हें सम्मान मिला। जो दायित्व दिया गया, उसका बखूबी निर्वाह किया। द्रौपदी मुर्मू ने शिक्षिका के रूप में अपना कैरियर शुरू किया था। उनकी राजनीति पार्षद के रूप में शुरू हुई। फिर भाजपा के एसटी मोर्चा की राज्य उपाध्यक्ष बनीं। दो बार रायरंगपुर विधायक बनी। वह ओडिशा की भाजपा बीजद गठबंधन सरकार में मंत्री भी रहीं। झारखंड की राज्यपाल के रूप में उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने झारखंड के विश्वविद्यालयों के लिए चांसलर पोर्टल शुरू कराया। इसके जरिये सभी विश्वविद्यालयों के कॉलेजों के लिए साथ छात्रों का ऑनलाइन नामांकन शुरू कराया।

राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार घोषित होने के बाद वह मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में महादेव मंदिर पहुंचीं थीं। उन्होंने भगवान शिव की पूजा-अर्चना की। इसके पहले महादेव मंदिर प्रागंण में झाड़ू लगाकर सफाई भी की थी। चुनाव के दौरान उन पर आरोपों की बौछार की गई। जबकि द्रौपदी मुर्मू का आचरण गरिमा के अनुरूप रहा। उन्होंने एक बार भी हल्की राजनीतिक बातें नहीं कीं। विपक्ष पर कोई आरोप नहीं लगाया।

वैसे भी राष्ट्रपति दलगत राजनीति से ऊपर हो जाता है। द्रौपदी मुर्मू ने इसके अनुरूप अपने को तैयार किया था उन्होंने किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया। उनका जीवन प्रेरणादायक है। ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट के समापन समारोह में शामिल होने वह लखनऊ आईं थीं। शाम को वह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनके सम्मान में आयोजित नागरिक अभिनंदन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व वंचितों और नारी शक्ति के लिए प्रेरणादायी बताया। जीवन संघर्ष, सेवा, समर्पण और सादगी की मिसाल है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि एक आदिवासी महिला नेत्री का भारतीय गणतंत्र के सर्वोच्च पद पर आसीन होना गौरव का विषय है।यह हमारी मातृ शक्ति का सम्मान है।

राष्ट्रपति ने कहा कि बाबा विश्वनाथ की काशी, प्रभु श्रीराम की अयोध्या, योगेश्वर श्रीकृष्ण की मथुरा तथा भगवान बुद्ध के सारनाथ से निकलने वाली भारत की परम्पराएं और भाव-धाराएं सभी देशवासियों को एक सूत्र में जोड़ती हैं। महान ऋषि-मुनियों की संगम-स्थली नैमिषारण्य, बाबा गोरखनाथ की तपस्थली गोरखपुर, संत कबीर की मुक्ति स्थली मगहर तथा उत्तर प्रदेश के अनेक पवित्र स्थलों में भारत की आध्यात्मिक शक्ति का उत्कर्ष देखा गया है।प्रयागराज में गंगा-यमुना के संगम पर कुम्भ का आयोजन प्राचीन काल से एक प्रमुख धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन रहा है। वर्ष 2017 में यूनेस्को ने प्रयागराज कुम्भ मेला को विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान की है। वर्ष 2019 में प्रयागराज कुम्भ के अत्यंत विशाल और उत्कृष्ट आयोजन ने समस्त विश्व समुदाय पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।

 

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