जम्मू कश्मीर: Target Killing वाले शोपियां जिले के इस गांव में आखिरी पंडित ने भी घर छोड़ा

1990 के दशक में लौट रहा कश्मीर..?

रंजन कुमार सिंह

शोपियां जिले के इस गांव में पूरन कृष्ण भट्ट की हत्या के बाद 10 कश्मीरी पंडित परिवार पहले ही जम्मू शिफ्ट हो गए थे। अब गांव में कश्मीरी पंडित नहीं बचे। जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की तरफ से लगातार चुन-चुनकर कश्मीरी पंडित समुदाय की हत्या करने का खौफ असर दिखाने लगा है। कश्मीरी पंडित घाटी से अपने गांव और घर छोड़-छोड़कर सुरक्षा की आस में जम्मू में शिफ्ट होने लगे हैं। इसका ताजा उदाहरण शोपियां जिले के चौधरीगुन्ड गांव बन गया है, जहां कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट्ट की हत्या के बाद ऐसा खौफ फैला है कि इस गांव के सभी कश्मीरी पंडित जम्मू शिफ्ट हो गए हैं। गांव में बची आखिरी कश्मीरी पंडित डॉली कुमारी भी बृहस्पतिवार शाम को घाटी छोड़कर जम्मू के लिए प्रस्थान कर गईं। अब गांव में कोई भी कश्मीरी पंडित नहीं बचा है।

10 परिवार पहले ही हो गए थे शिफ्ट

चौधरीगुन्ड गांव से सात परिवार पहले ही अपने घर छोड़कर जम्मू के लिए चले गए थे। इन सभी का कहना है कि लगातार आतंकी हमलों ने उनके मन में खौफ पैदा कर दिया है और सरकार की तरफ से सुरक्षा को लेकर उन्हें यकीन नहीं रहा है। डॉली कुमारी ने भी अपना घर छोड़ने से पहले एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि यहां भय का माहौल है। मैं इसके (घर छोड़ने के) अलावा क्या कर सकती हूं। उन्होंने कहा, कुछ दिन पहले जब अन्य कश्मीरी पंडित परिवार गांव छोड़ रहे थे, तब मैंने बहादुरी दिखाने की भरसक कोशिश की और यहीं रुक गई। लेकिन अब हालात बिगड़ रहे हैं। हालांकि डॉली ने यह भी कहा कि हालात सुधरने पर वह गांव में फिर से वापस लौटेंगी। उन्होंने कहा, यह मेरा घर है। हालात सुधरने पर मैं वापस आऊंगी। अपना घर कौन छोड़ना चाहता है। अपने घर से सब प्यार करते हैं। अपना घर छोड़ते हुए मैं बेहद दुखी हूं।

सेब की पेटियों से भरे पड़े गोदाम, फिर भी छोड़ा घर

आतंकियों का खौफ इस गांव के कश्मीरी पंडितों पर किस कदर है, इसका अंदाजा उनके घर के गोदाम में सेब की पेटियों से लग सकता है। गोदामों में सेब की नई फसल से भरी हजारों पेटियां रखी हैं, जो कश्मीरी पंडितों की आय का साधन हैं। इन पेटियों को खुद मंडियों में पहुंचाने के बजाय कश्मीरी पंडितों ने यह जिम्मेदारी पड़ोसी मुस्लिम परिवारों पर छोड़ दी है। खुद डॉली के भी गोदाम में 1,000 सेब की पेटियां रखी हैं, जिन्हें मंडी पहुंचाने की जिम्मेदारी उन्होंने पड़ोस में रहने वाले 76 वर्षीय पूर्व सैनिक गुलाम हसन पर छोड़ी है।

जिला प्रशासन टारगेट किलिंग को नहीं मान रहा कारण

कश्मीरी पंडित समुदाय के लगातार पलायन के बावजूद शोपियां जिला प्रशासन इसकी वजह टारगेट किलिंग को नहीं मान रहा है। जिला प्रशासन की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि इस तरह की सभी रिपोर्ट निराधार हैं। प्रशासन की तरफ से उचित और मजबूत सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। पहले से ही सर्दी की शुरुआत में और फसली सीजन खत्म होने पर बहुत सारे परिवार यहां से जम्मू जाकर शिफ्ट होते रहे हैं। खौफ के कारण पलायन का कोई मामला नहीं है।

1990 के दशक की तरह ही हो रही टारगेट किलिंग

दक्षिणी कश्मीर के शोपियां जिले के चौधरीगुन्ड गांव में 15 अक्टूबर को आतंकियों ने पूरन कृष्ण भट्ट की उनके घर के बाहर ही गोलियों से भूनकर हत्या कर दी थी। इसके बाद आतंकियों ने घोषणा की थी कि ये हमले अभी रुकने वाले नहीं हैं। इससे करीब दो महीने पहले शोपियां के ही छोटीगाम गांव में भी सेब के बाग मालिक कश्मीरी पंडित की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। घाटी में पिछले कुछ महीनों के दौरान लगातार स्कूलों, कार्यालयों और घरों में घुसकर कश्मीरी पंडित समुदाय के लोगों की हत्याएं की गई हैं। पिछले एक साल में करीब पांच कश्मीरी पंडितों की हत्या हो चुकी है, जबकि बाहर से आने वाले मजदूरों व कर्मचारियों की भी हत्या हो रही है। केंद्र सरकार बार-बार दावे के बावजूद इसे रोकने में असफल रही है।
चौधरीगुन्ड के पड़ोसी गांव छोटीपाड़ा से भी कश्मीरी पंडित परिवार जम्मू शिफ्ट हो गए हैं। दोनों गांव में कुल 11 कश्मीरी पंडित परिवार थे, लेकिन अब एक भी नहीं बचा है। कश्मीरी पंडितों के इस माइग्रेशन को देखकर 1990 के दशक की याद ताजा हो रही है, जब आतंकियों की टारगेट किलिंग के चलते कश्मीर घाटी रातोंरात कश्मीरी पंडितों से खाली हो गई थी।

केंद्र सरकार के प्रयासों पर फिर रहा पानी

मौजूदा केंद्र सरकार पिछले आठ साल से लगातार कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए तरह-तरह के प्रयास कर रही है। करीब 6,000 कश्मीरी पंडित कर्मचारी केंद्र की विशेष रोजगार योजना के कारण घाटी में वापस लौटे हैं, लेकिन पिछले छह महीने से वे टारगेट अटैक के डर से ऑफिस नहीं जा रहे हैं। ऐसे सभी कर्मचारी लगातार अपना ट्रांसफर जम्मू करने की मांग कर रहे हैं।

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