जलवायु परिवर्तन पर असर डालती गाय

रंजन कुमार सिंह

यह सुनने में अजीब लग सकता है कि आजकल चर्चा में बनी रहने वाली गाय का डकार लेना और पादना जलवायु को प्रभावित करता है। लेकिन भारत के एक फार्म की गायें जलवायु परिवर्तन में अन्य गायों की तुलना में कम योगदान दे रहीं हैं। गऊ डेयरी फार्म भारत के डेयरी उत्पादन क्षेत्र में एक बड़ा नाम है। यहां रहने वालीं गायें देश के अन्य फार्मों के मुकाबले पर्यावरण में गैसों का रिसाव कम करतीं हैं। सुनने में शायद रोचक न लगें लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया की एक अरब गाय मिलकर ग्रीन हाउस गैस मीथेन का जितना उत्पादन करतीं हैं वह कार्बनडाइऑक्साइड की तुलना में 25 गुना अधिक प्रभावी होता है। राजस्थान के कोटा में बने इस गऊ फार्म में करीब 130 गायें रहतीं हैं। फार्म भी तकरीबन 40 एकड़ में फैला हुआ है। इस फार्म का नाम गऊ जरूर है लेकिन इसका सीधा संबंध गाय से नहीं है बल्कि इस फार्म के तीन निदेशक भाइयों के नाम पर हैं। फार्म के तीन निदेशक हैं गगनदीप, अमनप्रीत और उत्तमज्योत सिंह।

इनके पिता ने इस फार्म को 15 साल पहले एक साइड प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया था लेकिन अब यह एक बड़े कारोबार का रूप ले चुका है। डायरेक्टर अमनप्रीत ने बताया, “फार्म में यह सावधानी बरतते हैं कि गाय बारीक कटी हुई जैविक घास और मक्का के स्प्राउट्स ही चबायें। नतीजतन अब इन गायों में उत्सर्जन का स्तर घट गया है।” उन्होंने अनुसार, “चारे में कमी कर मीथेन उत्सर्जन को लगभग 70 फीसदी तक घटाया गया है, साथ ही फार्म स्थानीय “मक्खन” घास का भी प्रयोग करता है। इसके अलावा ज्यादातर चारा पानी के अंदर मिट्टी का उपयोग करे बिना उगाया जाता है और इस प्रक्रिया को हाइड्रोपोनिक्स कहा जाता है।” उत्सर्जन में आ रही कमी को जांचने के लिए ये भाई, सल्फर हेक्साफ्लोराइड का इस्तेमाल करते हैं और गाय के नाक और मुंह के पास के नमूनों को गैस क्रोमेटोग्राफ पर लेते हैं।

गऊ फार्म ही मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने की कोशिश नहीं कर रहा है, बल्कि भारत के तमाम वैज्ञानिक भी पशुओं से होने वाले मीथेन उत्सर्जन में कमी करने के लिए रणनीतियां बना रहे हैं। ऐसी ही एक रणनीति के तहत पशुओं को फरमेंटेड अनाज और साग दिया जाता है। राजस्थान लाइवस्टॉक न्यूट्रिशन लैब में पशुओं की न्यूट्रिशिनिस्ट सीमा मीधा के मुताबिक, “तिलहन और कुछ भारतीय जड़ी बूटियों के इस्तेमाल से भी मीथेन उत्सर्जन में कमी आएगी।” स्थानीय स्तर पर अब ऐसी नीतियों पर बल दिया जा रहा है जिससे मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सके। राजस्थान की नयी पशु चारा नीति में चारे से जुड़े ऐसे सुझावों को शामिल किया गया है जो मीथेन उत्सर्जन में कमी करते हैं साथ ही दूध की उत्पादकता में वृद्धि करते हैं। इस नीति में पशुपालन से जुड़े इन किसानों के लाभ की बात कही गयी है। राजस्थान में गौहत्या पूरी तरह से प्रतिबंध है और इस राज्य में इन पशुओं का मुख्य इस्तेमाल दूध और घी उत्पादन के लिए ही किया जाता है लेकिन अब गोबर को भी इस्तेमाल में लाया जा रहा है।

गोबर का इस्तेमाल

मीथेन उत्सर्जन में आई कमी के बावजूद गऊ फार्म में गायों के गोबर में कमी नहीं आई है। गाय के गोबर से भी बड़ी मात्रा में मीथेन का उत्सर्जन होता है जिसका इस्तेमाल अब ये भाई बायोगैस पावर प्लांट में कर रहे हैं। गायों की पेशाब और गोबर से रोजाना 40 किलोवाट बिजली पैदा की जाती है। अमनप्रीत के मुताबिक, “इतनी बिजली पूरे फार्म के लिए पर्याप्त होती है।” इसके अलावा धार्मिक कर्मकांडों के इस्तेमाल में आने वाले गोबर के उपलों को ये फार्म ई-कंपनी अमेजन को बेचता भी है। भारत पर साल 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में तय किये गए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने का दबाव भी है। ऐसे में इन भाइयों को उम्मीद है कि देश को उनके प्रयासों से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

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