43 साल पहले आज के दिन मदर टेरेसा को दिया गया था नोबेल पुरस्कार, दीन-दुखियों के लिए समर्पित रहा पूरा जीवन

शंभू नाथ गौतम

अपना पूरा जीवन दीन-दुखियों और गरीबों के लिए समर्पित करने वालीं दुनिया की महान महिला मदर टेरेसा को 43 साल पहले आज ही के दिन नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था। मदर टेरेसा के अनुयायियों के लिए आज का दिन बहुत ही खास है। ‌‌‌‌भारत से विशेष रूप से स्नेह रखने वाली मदर टेरेसा को 17 अक्टूबर 1979 को मदर टेरेसा को ‘शांति’ का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। 26 अगस्त 1910 को अल्बेनिया के स्काप्जे में उनका जन्म हुआ। नाम था गोंझा बोयाजिजू। सिर्फ 12 साल की थीं, तब अनुभव हो गया था कि सारा जीवन मानव सेवा में लगाएंगी। 18 साल की उम्र में सिस्टर्स ऑफ लोरेटो में शामिल होने का फैसला लिया। आयरलैंड जाकर अंग्रेजी सीखी। 1929 में कोलकाता में लोरेटो कान्वेंट पहुंचीं।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बंगाल में भीषण अकाल पड़ा। तब मदर टेरेसा ने गरीबों की सेवा शुरू की। उन्होंने अक्टूबर 1950 में वेटिकन से मिशनरी ऑफ चैरिटी बनाई। 1951 में भारतीय नागरिकता ली। उनकी मौत के वक्त यानी 1997 तक 120 देशों में उनकी मिशनरी 594 आश्रमों में और 3480 सिस्टर के रूप में फैल चुकी थी। मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए भारत सरकार ने पहले 1962 में पद्मश्री और बाद में 1980 में भारत रत्न से सम्मानित किया। मानव सेवा और गरीबों की देखभाल करने वाली मदर टेरेसा को पोप जॉन पॉल द्वितीय ने 19 अक्टूबर 2003 को रोम में धन्य घोषित किया। 15 मार्च 2016 को पोप फ्रांसिस ने कार्डेना परिषद में संत की उपाधि देने की घोषणा की।

टेरेसा ने गरीब लोगों के इलाज और गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ नाम से आश्रम स्थापित किये थे। एक रिपोर्ट के अनुसार उनकी स्थापित की गई मिशनरीज ऑफ चैरिटी की शाखाएं 130 देशों में फैल कर 700 मिशन स्थापित कर चुकी हैं। 5 सितंबर 1997 को दिल का दौरा पड़ने से मदर टेरेसा निधन हो गया । उन्होंने अपना पूरा जीवन बीमार, अनाथ, गरीब, असहाय लोगों की सेवा में लगा दिया। मदर टेरेसा के सेवा कार्यों को देखते हुए 2012 में संयुक्त राष्ट्र ने उनकी पुण्यतिथि को इंटरनेशनल चैरिटी डे के रूप मनाने का फैसला लिया। 2012 से उनकी पुण्यतिथि इंटरनेशनल चैरिटी डे के रूप में मनाई जाती है।

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