तुलसी जितना जितना अपने मूल का विस्तार करती है, उतने ही सहस्त्र युगों तक मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित होता है। यदि कोई तुलसीयुक्त जल में स्नान करता है। तो वह सब पापों से मुक्त हो भगवान विष्णु के लोक में आनंद का अनुभव करता है।जो लगाने के लिए तुलसी का संग्रह करता है और लगाकर तुलसी का वन तैयार कर देता है वह उतने से ही पापमुक्त होकर ब्रह्मभाव को प्राप्त होता है। जिसके घर में तुलसी का बगीचा विद्यमान है उसका घर तीर्थ के समान है, वहां यमराज नहीं आते। तुलसीवन सब पापों को नष्ट करने वाला, पुण्यमय तथा अभीष्ट कामनाओं को देने वाला है। जहाँ तुलसीवन की छाया होती है, वहीँ पितरों की तृप्ती के लिए श्राद्ध करना चाहिए।
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जो आदर पूर्वक प्रतिदिन तुलसी की महिमा सुनता है वह सब पापों से मुक्त हो ब्रह्मलोक को जाता है। इसलिए कार्तिक मास में तुलसी का पौधा लगायें, पूजन करें तथा सुबह और संध्या को दीपदान करें। स्कन्दपुराण में श्रीभगवान स्वयं कहते हैं कि जो तुलसीकाष्ठ की माला (तुलसी लकड़ी की माला) मुझे भक्तिपूर्वक निवेदन करके फिर प्रसाद रूप से उसको स्वयं धारण करता है। उसके पातकों का नाश हो जाता है और उसके ऊपर में सदैव प्रसन्न रहता हूँ। इसीलिए कार्तिक मास में प्रत्येक व्यक्ति को अपने पापों का नाश करने के लिए तुलसीकाष्ठ माला धारण करने का विशेष विधान है।