संघ कार्य का हो विस्तार

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्थापना काल से ही सहज स्वाभाविक समरसता को महत्त्व दिया.संघ के कार्यक्रमों में उसी समय से बिना किसी भेदभाव के सहभोज आयोजित होते रहे हैं। इसकी सराहना महात्मा गांधी ने भी की थी। संघ के कार्यक्रमों में जातिगत भेदभाव को कभी महत्त्व नहीं दिया गया। कुछ दिन पहले सर संघचालक मोहन भागवत ने जाति विहीन व्यवस्था कायम करने का आह्वान किया था। शरद पूर्णिमा उत्सव में भी संघ की समरसता प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देती है। इस बार डॉ मोहन भागवत शरद पूर्णिमा को कानपुर पहुँचे थे। रात्री में संघ की शाखाओं में खीर बनाने और उसके वितरण का कार्यक्रम होता है। इसके पहले डॉ मोहन भागवत कई कार्यक्रमों में शामिल हुए। कानपुर प्रांत में आयोजित स्वर संगम घोष शिविर के चौथे दिन रविवार को स्वयंसेवकों ने पथ संचलन किया। पथ संचलन का निरीक्षण कंपनी बाग चौराहे पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने किया।

पांच दिवसीय स्वर संगम घोष शिविर का आयोजन पंडित दीनदयाल स्कूल में किया गया है। तीसरे दिन देररात सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत शिविर में पहुंचे। रविवार को स्वयंसेवकों की दो टोली ने पथ संचलन किया। दोनों टोली पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्कूल से निकलीं। पहली टोली गंगा बैराज होते हुए वापस विद्यालय लौट गई जबकि दूसरी टोली कोहना से होते हुए कंपनी बाग पहुंची। पथ संचलन में ड्रम और बांसुरी समेत सत्रह वाद्य यंत्रों को स्वयंसेवकों ने बजाया। शरद पूर्णिमा पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने महर्षि बाल्मीकि की प्रतिमा का पूजन किया। डॉ. भागवत ने वाल्मीकि जयंती पर फूलबाग के नानाराव पार्क में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होने कहा कि वाल्मीकि समाज विद्वान धर्मचरित्र को धारण करने वाले वाल्मीकि भगवान की पूजा करता है। वह भगवान जिन्होंने ऐसे आदर्श चरित्रवाले राजा राम का जीवन परिचय प्रस्तुत किया। ऐसे भगवान को पूरे विश्व में पूजा जाना चाहिये। महर्षि वाल्मीकि ने अपने ग्रंथ में करुणा को धर्म का एक पैर बताया है। मानव को भगवान राम के चरित्र के आदर्श पर आगे बढ़ना चाहिए।

महर्षि वाल्मीकि ने मनुष्यों के लिए ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया जिसमें व्यक्ति को कैसे रहना है। समाज का कैसे सहयोग करना है। समाज में व्याप्त छुआछूत और भेदभाव को दूर करने के लिए संगठन के माध्यम से अनवरत कार्य किया है। उन्होने कहा कि हिंदू समाज को वाल्मीकि समाज पर गर्व करना चाहिए। भगवान राम को हिंदू समाज से परिचित कराने वाले भगवान वाल्मीकि ही थे। वह अगर रामायण नहीं लिखते तो आज हिंदू समाज को भगवान राम नहीं मिलते। इतना ही नहीं भगवती सीता को बेटी की तरह वाल्मीकि ने ही रखा था। उनके दोनों पुत्रों का लालन-पालन भी उन्हीं के आश्रम में हुआ था। वाल्मीकि जयंती हमारे लिए राष्ट्रीय उत्सव है। संघ अपनी पूरी ताकत के साथ वाल्मीकि समाज के साथ खड़ा है। हमारे लोग आपके पास स्वयं आएंगे। आपको आने की जरूरत नहीं। उन्हें पता है कि पूरा हिंदू समाज हमारा है। ये समाज अपना है। सामाजिक स्वतंत्रता के लिए द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी ने कार्य शुरू किया। वह आज भी अनवरत जारी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वाल्मीकि समाज के बीच लगातार पहुंच रहा है।

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