मनोकामना करनी हो पूरी तो इस तरह आज करें शरद पूर्णिमा की पूजा

जानिएं आख़िर कहीं कोजागर पूर्णिमा तो कहीं क्यों कहते हैं पूनो की रात

आख़िर आज ही के दिन खुले आसमाँ के नीचे क्यों बनती है खीर…?


जयपुर से राजेंद्र गुप्ता


शरद पूर्णिमा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा करने, साथ ही चांदनी रात में खीर बनाकर रखने की परंपरा है।

शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होता है। इस वजह से रात के समय में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते हैं, ताकि चंद्रमा की किरणें उसमें पड़ें। इससे वह खीर औषधीय गुणों वाला हो जाता है। उस खीर का सेवन करने से सेहत अच्छी होती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है।

कोजागर पूर्णिमा 

शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा इसलिए कहते हैं कि इस रात में माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और उन लोगों के घरों में जाती हैं, जिनका घर साफ सुथरा होता है और वे उनके स्वागत के लिए तैयार रहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता लक्ष्मी जानना चाहती हैं कि उनके स्वागत के लिए इस समय कौन जाग रहा है, इस वजह से शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागर पूर्णिमा है।

शरद पूर्णिमा तिथि 

पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 09 अक्टूबर दिन रविवार को तड़के 03 बजकर 41 मिनट पर हो रहा है। इस तिथि का समापन अगले दिन 10 अक्टूबर सोमवार को तड़के 02 बजकर 24 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर इस साल शरद पूर्णिमा 09 अक्टूबर को है।

शरद पूर्णिमा का चंद्रोदय समय

इस साल शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा का उदय शाम 05 बजकर 51 मिनट पर होगा। जिन लोगों को व्रत रखना है वे 09 अक्टूबर को ही शरद पूर्णिमा का व्रत रखेंगे और शाम के समय में चंद्रमा की पूजा करेंगे।

शरद पूर्णिमा की पूजा विधि

-सुबह स्नान के बाद घर के मंदिर की सफाई करें। ध्यान पूर्वक माता लक्ष्मी और श्रीहरि की पूजा करें। फिर गाय के दूध में चावल की खीर बनाकर रख लें।

-लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए लाल कपड़ा या पीला कपड़ा चौकी पर बिछाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा इस पर स्थापित करें। तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई लक्ष्मी जी की स्वर्णमयी मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं।

-भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं, धूप करें। इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत और रोली से तिलक लगाएं।

-तिलक करने के बाद मीठे ( सफेद या पीली मिठाई ) से भोग लगाएं। लाल या पीले पुष्प अर्पित करें। माता लक्ष्मी को गुलाब का फूल अर्पित करना विशेष फलदाई होता है।

– शाम के समय चंद्रमा निकलने पर मिट्टी के 100 दीये या अपनी सामर्थ्य के अनुसार दीये गाय के शुद्ध घी से जलाएं।

-इसके बाद खीर को कई छोटे बर्तनों में भरकर छलनी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रख दें। फिर पूरी रात (तड़के 3 बजे तक, इसके बाद ब्रह्म मुहूर्त शुरू हो जाता है) जागते हुए विष्णु सहस्त्रनाम का जप, श्रीसूक्त का पाठ, भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम् का पाठ और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। पूजा की शुरुआत में भगवान गणपति की आरती अवश्य करें।

-अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके उस खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करें और प्रसाद रूप में वह खीर घर-परिवार के सदस्यों में बांट दें।

-इस प्रकार जगतपालक और ऐश्वर्य प्रदायिनी की पूजा करने से सभी मनवांछित कार्य पूरे होते हैं। साथ ही हर तरह के कर्ज से मुक्ति मिलती है।


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