देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि “उत्तराखंड लोक विरासत” मात्र एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान, हमारी परंपराओं और हमारी जड़ों का उत्सव है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति सदियों पुरानी समृद्ध धरोहर है। उन्होंने बताया कि हमारे लोकनृत्यों, लोकगीतों, वेशभूषाओं, लोककलाओं और पर्व-त्योहारों में हमारा जीवन, हमारी भावनाएँ और हमारी सामाजिक व्यवस्था गुंथी हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि झोड़ा, छपेली, चांचरी, पंवारी जैसे लोकगीत व नृत्य सिर्फ कलात्मक अभिव्यक्ति नहीं हैं, बल्कि सामूहिकता, प्रेम, वीरता और समाज की संवेदनाओं के प्रतीक हैं।
सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल, देहरादून में आयोजित “उत्तराखंड लोक विरासत–2025” कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने पारंपरिक वेशभूषा पिछोड़ा, घाघरा, लहंगा, फेटूआ, पगड़ी को मात्र पहनावे नहीं, बल्कि संस्कृति के प्रतीक बताते हुए कहा कि रिंगाल शिल्प, काष्ठ कला, चांदी के आभूषण, ऊनी वस्त्र और धातुकला जैसी विधाएँ सदियों से उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था का आधार रही हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि बग्वाल, फूलदेई, हरेला, इगास-बग्वाल, मकर संक्रांति जैसे त्यौहार प्रकृति से हमारे जुड़ाव और सामाजिक एकता के प्रतीक हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि लोक संस्कृति वह माध्यम है जिसके जरिए पुरानी पीढ़ी अपना ज्ञान, अनुभव और परंपराएँ नई पीढ़ी को सौंपती है। इसलिए इसका संरक्षण सरकार के साथ-साथ हर नागरिक का कर्तव्य है।
